वर्ष 2014 के चुनाव में भाजपा और नरेंद्र मोदी ने बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर सृजित करने के वादे किये थे. सरकार ने बीते तीन सालों में आर्थिक सुधारों को तेज करने और निवेश बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल जरूर की हैं, पर रोजगार के मोर्चे पर प्रगति निराशाजनक है. सरकार ने वित्तीय अनुशासन बनाये रखने के दबाव के बावजूद सार्वजनिक खर्च बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन निवेश अपेक्षाकृत नहीं बढ़ सका. निजी क्षेत्र में पूंजी निर्माण की दर 2016 के वित्तीय वर्ष की तुलना में 2017 में महज दो फीसदी ही बढ़ी. कुल पूंजी निर्माण में इस क्षेत्र का हिस्सा 75 फीसदी है. रोजगार बढ़ाने और सकल घरेलू उत्पादन को तेज करने में यह एक बड़ी बाधा है. भारत में व्यवसाय करने में सुगमता को बेहतर करने की दिशा में सरकार के प्रयास के बावजूद उसकी रेटिंग में बहुत सुधार न हो सका.
ताजा रिपोर्ट के अनुसार, न सिर्फ रोजगार का विकास बहुत धीमा है, बल्कि नये रोजगारों का वितरण भी असंतुलित है. नये 2.31 लाख नौकरियों में से करीब आधा यानी 1.1 लाख महज दो सेक्टरों- शिक्षा और स्वास्थ्य- से संबद्ध हैं. मैनुफैक्चरिंग सेक्टर में लगभग एक फीसदी रोजगार बढ़ा है. हालांकि इस पर जानकार आशंकित है क्योंकि नोटबंदी की वजह से बड़ी संख्या में रोजगार की कटौती हुई थी.
इसके पहले..
10 लाख से अधिक नये रोजगार सृजित हुए 2009 में यूपीए सरकार के दौरान.
बड़ा गैप : हर साल भारत में 1.3 करोड़ युवा रोजगार के बाजार में प्रवेश करते हैं, परंतु 2012 के बाद किसी भी साल पांच लाख से अधिक रोजगार उपलब्ध नहीं कराये जा सके हैं.
कई सेक्टरों में घटीं नौकरियां : पिछले साल श्रम ब्यूरो ने अपने सर्वे में पाया था कि वस्त्र, चमड़ा, धातु, ऑटोमोबाइल, रत्न एवं आभूषण, यातायात, सूचना तकनीक और हथकरघा सेक्टरों में नौकरियां कम हो रही हैं. ये सेक्टर अर्थव्यवस्था के सबसे बड़े सेक्टर हैं.
2016 में नये रोजगार
मैनुफैक्चरिंग- 95
कंस्ट्रक्शन- 25
ट्रेड- 26
ट्रांसपोर्ट- 18
होटल- 07
आइटीव बीपीओ- 22
शिक्षा- 67
हेल्थकेयर- 35
आगे बड़ी चुनौतियां
तीन सेक्टरों- आइटी, टेलीकॉम और बैंकिंग एवं वित्तीय क्षेत्र में अगले दो-तीन सालों में 10 लाख नौकरियां जा सकती हैं.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 15 से 29 साल के 30 फीसदी से अधिक युवा रोजगार, शिक्षा या प्रशिक्षण से बाहर हैं.
कृषि क्षेत्र में कार्यरत लोगों का एक हिस्सा वहां से अन्य सेक्टरों की ओर रुख करेगा.
भाजपा ने घोषणापत्र में हर साल दो लाख रोजगार पैदा करने का वादा किया था. पर आज छंटनी हो रही है. आठ सेक्टरों में रोजगार में मात्र 1.1% की वृद्धि हुई है. भाजपावाले किस बात का जश्न मना रहे हैं? 6-7% वृद्धि दर का मतलब क्या है!
– अभिषेक मनु सिंघवी, नेता, कांग्रेस
हमारे यहां बड़े पैमाने पर स्वरोजगार व असंगठित क्षेत्र के कारण हमें मानना होगा कि रोजगार और नौकरियों पर भरोसेमंद डाटा व्यवसायों और परिवारों के सर्वे से ही मिल सकता है. अन्यथा हमें हमेशा अधूरी तसवीर मिलेगी.
– बिबेक देबरॉय, सदस्य, नीति आयोग