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साधु-संतों के हाथों में हो मंदिरों की व्यवस्था

बोधगया : टेकुना फार्म स्थित औद्योगिक क्षेत्र में आयोजित संत समागम कार्यक्रम के दूसरे दिन गुजरात से आये स्वामी परमात्मानंद जी सरस्वती ने कहा कि हिंदू समाज के निष्ठावान और समर्पित लोग व साधु-संतों के हाथ में मंदिरों की व्यवस्था होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि मंदिर बोर्ड का गठन होना चाहिए और मंदिरों के संचालन […]

बोधगया : टेकुना फार्म स्थित औद्योगिक क्षेत्र में आयोजित संत समागम कार्यक्रम के दूसरे दिन गुजरात से आये स्वामी परमात्मानंद जी सरस्वती ने कहा कि हिंदू समाज के निष्ठावान और समर्पित लोग व साधु-संतों के हाथ में मंदिरों की व्यवस्था होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि मंदिर बोर्ड का गठन होना चाहिए और मंदिरों के संचालन की जिम्मेवारी भी साधु-संतों पर ही होनी चाहिए.
मंदिरों की दुर्दशा का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि सरकारी हस्तक्षेप के बंद होने के बाद ही मंदिरों की हालत में सुधार आयेगी. साथ ही मंदिरों में सरकारी अधिग्रहण को भी बंद किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि बिहार सरकार द्वारा मंदिरों के धर्मार्थ कार्य को रोकने व मंदिरों के संपत्ति को हड़पने के लिए धार्मिक न्यास बोर्ड का गठन किया गया है.
यह गलत है. समागम के दूसरे दिन तीन सत्रों में विभिन्न वक्ताओं द्वारा अलग-अलग विषयों पर व्याख्यान दिये गये. इसमें संत सभा की भूमिका, सामाजिक समरसता में संत समाज व मठ-मंदिरों की भूमिका, हिंदू समाज की उत्कृष्ट परंपरा, धरती को जनसंख्या से खतरे, मतांतरण, लव-जेहाद, जोसुआ मिशन, वर्ल्ड विजन प्रमुख थे. रविवार को इसका समापन होगा. इसमें दो सत्रों में विभिन्न बिंदुओं पर व्याख्यान दिये जायेंगे.
संत समागम में पारित हुए दो प्रस्ताव : संत समागम की धर्मसभा में सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया गया कि सरकार न्यास बोर्ड की जगह हिंदू साधु-संतों की कार्यकारिणी बनाएं, जो स्वायत्त शासी निकाय की तरह कार्य करे. सरकार को धार्मिक न्यास बोर्ड की कुल संपत्ति की घोषणा करनी चाहिए व आय-व्यय का लेखा-जोखा सार्वजनिक करनी चाहिए.
इसके साथ ही हिंदुओं की संपत्ति को हिंदुओं के कल्याण के लिए खर्च हो व हिंदू मठ-मंदिरों से प्राप्त आय का प्रयोग दूसरे उद्देश्यों में न किया जाये. इस पर रोक लगाने की मांग की गयी है. दूसरे प्रस्ताव के रूप में कहा गया कि कोई हिंदू पतित नहीं होता है. हमारे समाज में कोई ऊंचा व कोई नीचा नहीं है. कोई भी अछूत नहीं है. सभी जातियां समान हैं. इस कारण हिंदू समाज में सामाजिक समरसता की दृष्टि से मठ-मंदिरों की विशेष भूमिका रही है.
शंकराचार्य, कबीरदास, संत रविदास, रामानुजाचार्य, रामनंदाचार्य व अन्य संतों ने हिंदू समाज की समरसता के लिए विशेष भूमिका निभायी है. यही कारण रहा कि रामानंद स्वामी ने हिंदू समाज की समरसता के लिए प्रत्येक वर्ग को दीक्षित कर शिष्य बनाया था. अतएव धर्म सभा चाहती है कि इन परंपराओं को और भी प्रभावी तरीके से स्थापित कर बढ़ाया जाये व सामाजिक समरसता के परम उद्देश्य को प्राप्त किया जा सके.

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