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प्रसिद्ध वामपंथी आलोचक मैनेजर पांडेय की तसवीर वायरल, गदर के बाद दूसरे वामपंथी धर्म की राह पर

ये तसवीर प्रसिद्ध वामपंथी लेखक (आलोचक) मैनेजर पांडेय की है. इस तसवीर में वे अपने परिवार के साथ बैठकर कथा सुनते नजर आ रहे हैं. तसवीर सोशल मीडिया पर काफी शेयर की जा रही है. कहा जा रहा है कि वामपंथी विचारधारा को मानने वाले मैनेजर पांडेय जनेऊ तक धारण नहीं करते, फिर वे पूजा-पाठ […]

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ये तसवीर प्रसिद्ध वामपंथी लेखक (आलोचक) मैनेजर पांडेय की है. इस तसवीर में वे अपने परिवार के साथ बैठकर कथा सुनते नजर आ रहे हैं. तसवीर सोशल मीडिया पर काफी शेयर की जा रही है. कहा जा रहा है कि वामपंथी विचारधारा को मानने वाले मैनेजर पांडेय जनेऊ तक धारण नहीं करते, फिर वे पूजा-पाठ में कब से यकीन करने लगे.

आपको बताते चलें कि इसी प्रकार कुछ दिनों पहले वामपंथी गायक गदर की तसवीर भी सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी. उस तसवीर में गायक गदर मंदिर में माथा टेकते नजर आ रहे थे. सोशल मीडिया पर सवाल पूछा जा रहा है कि उम्र के अंतिम पड़ाव में वामपंथी विचारों को मानने वाले इन लोगों में भक्ति कैसे जाग जाती है.

प्रसिद्ध वामपंथी आलोचक मैनेजर पांडेय का जन्म 23 सितम्बर, 1941 को बिहार गोपालगंज जनपद के लोहटी गांव में हुआ. उनकी आरं‍भिक शिक्षा गांव में तथा उच्च शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हुई, जहां से उन्होंने एमए और पीएचडी की उपाधियां लीं. पांडेय जी को गम्भीर और विचारोत्तेजक आलोचनात्मक लेखन के लिए पूरे देश में जाना-पहचाना जाता है. शब्द और कर्म, साहित्य और इतिहास-दृष्टि, साहित्य के समाजशास्त्रा की भूमिका, भक्ति आन्दोलन और सूरदास का काव्य, अनभै सांचा, आलोचना की सामाजिकता जैसी कई उनकी कई किताबें प्रकाशित हुई हैं.

पांडेय जी को आलोचनात्मक लेखन के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. जिनमें हिन्दी अकादमी द्वारा दिल्ली का साहित्यकार सम्मान, राष्ट्रीय दिनकर सम्मान, रामचन्द्र शुक्ल शोध संस्थान, वाराणसी का गोकुल चन्द्र शुक्ल पुरस्कार और दक्षिण भारत प्रचार सभा का सुब्रह्मण्य भारती सम्मान आदि शामिल हैं.

उन्होंने सत्ता और संस्कृति के रिश्ते से जुड़े प्रश्नों पर भी लगातार विचार किया है. जीविका के लिए अध्यापन का मार्ग चुनने वाले मैनेजर पांडेय जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भाषा संस्थान के भारतीय भाषा केन्द्र में हिन्दी के प्रोफेसर रहे हैं. इसके पूर्व बरेली कॉलेज, बरेली और जोधपुर विश्वविद्यालय में भी प्राध्यापक रहे. इस दौरान उन्‍हें एक वामपंथी समर्थक के रूप में भी पहचाना गया. वे ब्राह्मणवाद के विरोधी भी माने जाते रहे हैं.

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