धनबाद: पहले गांवों में रहनेवाला महाजन आज भी मौजूद है. आज उसका चेहरा बदल गया है. प्रेमचंद ने पूंजीवादी सभ्यता को ही महाजनी सभ्यता कहा. उन्होंने अपने लेख में जागीरदारी सभ्यता का भी जिक्र किया है, जिसमें कई अच्छे गुण थे.
मैत्री का निर्वहन करता था. लोगों में ज्ञान पाने की होड़ थी. आज की तरह सन्नाटा नहीं था. उस समय पूंजीवाद का रूप अलग था. महाजनी सभ्यता के आधुनिक संस्करण और आज के संकट के संदर्भ में ये विचार प्रख्यात हिंदी आलोचक प्रो रविभूषण के हैं. रविभूषण स्थानीय बार परिसर में आयोजित ‘समकालीन चुनौतियां एवं प्रेमचंद, संदर्भ महाजनी सभ्यता’ को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे.
और भयावह हुआ है महाजन : रविभूषण ने कहा कि प्रेमचंद भविष्य को लक्षित करके लिख रहे थे. उन्होंने महाजनी सभ्यता के जरिये पूंजीवादी व्यवस्था के चरित्र को ही उजागर किया. आज इस व्यवस्था ने अधिक भयावह रूप ले लिया है. उन्होंने कहा कि प्रेमचंद की ही तरह आज के संस्कृतिकर्मी-रचनाकारों को पूंजीवादी-साम्राज्यवादी चरित्र पर प्रहार करना होगा. कहा : जब तक पूंजीवाद है, समाजवाद की गुंजाइश बनी रहेगी. राजनीति मनुष्य से मनुष्यता छीन लेती है, बांटती है, जबकि साहित्य व कला बचाती है.
श्रद्धांजलि से शुरुआत : इससे पूर्व कार्यक्रम की शुरुआत प्रख्यात विप्लवी कवि नवारुण भट्टाचार्य, कथाकार मधुकर सिंह, तेज सिंह, हुल्लड़ मुरादाबादी व वरिष्ठ अभिनेत्री जोहरा सहगल की स्मृति में मौन श्रद्धांजलि से हुई. वरिष्ठ वक्ता के रूप में मनमोहन पाठक ने समकालीन चुनौतियों के रूबरू लेखक-कलाकारों की सक्रिय भूमिका की जरूरत बतायी. कथाकार नारायण सिंह ने कहा कि प्रेमचंद की रचनाएं और विचार आज भी सपने गढ़ते हैं. साहित्यकार प्रो बीबी शर्मा ने कहा कि आज की बाजारवादी व्यवस्था से हमें लड़ना होगा.
पूंजी जरूरी है, पूंजीवाद गैरजरूरी : अंगरेजी के प्राध्यापक व ‘स्वातंत्र्योत्तर हिंदी उपन्यास’ के शोधकर्ता हिमांशु चौधरी ने कहा कि साम्राज्यवाद पूंजीवाद से पहले आया. पूंजी जरूरी है, पूंजीवाद गैरजरूरी. बाजार जरूरी है, बाजारवाद गैर जरूरी है. हम अपनी चुनौतियों का सामना प्रेमचंद के लेख से दिशा लेकर कर सकते हैं. धनबाद ट्रेड यूनियनों के लिए जाना जाता था, लेकिन आज ट्रेड यूनियनें वैशाखी पर हैं. यह एक चुनौती है.
बैंक महाजन बन गये हैं : जलेस के जिला सचिव अशोक कुमार साव ने कहा आज बैंक महाजन बन गये हैं. किसान, मजदूर आत्म हत्या कर रहे हैं. शहरों में मजदूर नारकीय जीवन जीवन जी रहे हैं. पूंजी आदमी के जीवन को बेधती जा रही है. आज हमारे सामने गांव की संस्कृति एवं विस्थापन से बचाने की चुनौती है. धनबाद में लगभग सात लाख लोगों के समक्ष विस्थापन की समस्या है. टुकड़े-टुकड़े में आंदोलन हो रहा है. कथाकार कालेश्वर ने कहा कि आज के दौर को ध्यान में रख कर ही प्रेमचंद ने महाजनी सभ्यता को लिखा था. कार्यक्रम को वन खंडी मिश्र, लालदीप गोप, तैयब खान, कुमार सत्येंद्र, राम सागर, मोनाज ने भी संबोधित किया. अध्यक्षता प्रहलाद चंद्र दास व संचालन बलभद्र ने किया.