बाबूलाल मरांडी लोकसभा चुनाव की तैयारी में लगे हैं. भाजपा-कांग्रेस के साथ-साथ आम आदमी पार्टी के बीच उलझी राजनीति के बीच रास्ता बनाने की की चुनौती है. संगठन और नेतृत्व की परीक्षा चुनाव में होनी है, इसलिए बाबूलाल फूंक -फूंक कर कदम रखेंगे. किसी भी दल से गंठबंधन के लिए तैयार नहीं हैं. अपने संघर्ष पर भरोसा है. वह आनेवाले चुनाव में नरेंद्र मोदी के असर को खारिज करते हैं, आम आदमी पार्टी के राजनीतिक प्रयोग को भी नया नहीं मानते. राजनीति में शुचिता, पारदर्शिता और चुनावी प्रक्रिया की जटिलताओं को तोड़ने की बात करते हैं.
बाबूलाल मानते हैं : स्थानीय और राज्य की समस्याओं को एड्रेस (उठाने) और सरोकार रखनेवाले दल को ही जनता पसंद करेगी. प्रभात खबर के ब्यूरो प्रमुख आनंद मोहन ने लोकसभा चुनाव, वर्तमान राजनीतिक समस्या और भावी रणनीति पर बातचीत की. पेश है बातचीत के अंश.
लोकसभा चुनाव की क्या तैयारी है?देश में जब आज परिवर्तन की सुगबुगाहट है, ऐसे में अपने संगठन को कहां खड़ा पाते हैं?
हम लगातार संघर्ष से जुड़े हैं. राज्य की समस्याओं और जनता के साथ हम वर्षो से खड़े हैं. सत्ता और शासन के खिलाफ झाविमो ही मैदान में है. राज्य की दूसरी पार्टियां कभी सत्ता में, तो कभी मोल-भाव की राजनीति में फेल होकर सत्ता से बाहर रही है. हमारी चुनावी तैयारी पहले से है. 17-18 अगस्त को ही पार्टी वर्किग कमेटी की बैठक में हमने लोकसभा क्षेत्रवार प्रभारी तय कर लिये. लोकसभा क्षेत्र स्तर पर पार्टी की बैठक हो रही है. बूथ कमेटी बनाने का 80 फीसदी काम हो चुका है. चुनाव को ध्यान में रख कर हम क्षेत्र विशेष में काम कर रहे हैं. वर्ग विशेष के पास पहुंच रहे हैं. समाज के दबे-कुचले लोगों तक हम पहुंच रहे हैं. आदिवासी, दलित सम्मेलन जगह-जगह किये गये हैं. प्रमंडलवार सम्मेलन हुए हैं. संतालपरगना के देवघर, गोड्डा में सम्मेलन हुआ है. हजारीबाग, गुमला, पलामू, जमशेदपुर में आदिवासी सम्मेलन हुए. भ्रष्टाचार के मुद्दे पर हम सदन से लेकर सड़क तक संघर्ष कर रहे हैं. विस्थापितों के साथ झाविमो लड़ाई लड़ रहा है. अब लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राशि संग्रह का काम चल रहा है. हमारे पास कांग्रेस-भाजपा की तरह भरपूर संसाधन नहीं है. हम आम जनता से चुनाव के लिए धन संग्रह करेंगे.
चुनाव तो राहुल गांधी बनाम नरेंद्र मोदी के रंग में है. दिल्ली में आप ने सबको चौंकाया है. अब इस नयी पार्टी का भी कोण बन रहा है. ऐसे में झाविमो के लिए मुश्किलें नहीं हैं?
लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय स्तर पर होते हैं. पहले भी यूपीए बनाम एनडीए माहौल बनाया गया था. कोई नयी बात नहीं है. पिछली बार भाजपा के पीएम इन वेटिंग लालकृष्ण आडवाणी थे. इस बार नरेंद्र मोदी हैं, तो इसमें नयी बात क्या है! उस समय भी चुनाव को आडवाणी के इर्द-गिर्द घुमाने की कोशिश हुई थी. इस बार केवल पात्र बदल गये हैं.
नरेंद्र मोदी को भाजपा करिश्माई अवतार के रूप में पेश कर रही है. आडवाणी से फर्क करने की कोशिश कामयाब भी हुई है. नरेंद्र मोदी की सभाओं में भीड़ भी उमड़ रही है, फिर भी कोई थ्रेट नहीं देख रहे या नजरअंदाज कर रहे हैं?
नरेंद्र मोदी को भाजपा क्या बता रही है, इस पर नहीं जाना है. मैं कह रहा हूं कि बड़े उत्साह के साथ उन्हें पेश किया जा रहा है. पहले संवाद का जरिया, अखबार और मीडिया थे. परिस्थिति बदल गयी है. अब फेसबुक और टि¦टर का जमाना है. देश के अंदर वर्ग विशेष के पास ये सुविधाएं भी हैं. ऐसे ही माध्यम से नरेंद्र मोदी का मामला हंगामेदार बनाया गया है. देश में 1989 के बाद किसी एक दल को बहुमत नहीं मिला. गंठबंधन की सरकारें दिल्ली में बनीं. 1977 में परिवर्तन आया, लेकिन बाद में बिखर गया. हमारा देश विविधताओं से भरा है. दिल्ली में बैठे लोगों को यह नहीं दिखता है. देश-गांव की समस्याएं अलग-अलग हैं. देश आजाद हुआ, तो नेहरू सबसे ताकतवर नेता थे. देश में कांग्रेस की लहर थी. झारखंड में 1957 में चुनाव हुए. झारखंड में जयपाल सिंह मुंडा की पार्टी को 31-32 सीटें आयीं. नेहरू की जब तूती बोल रही थी, तब झारखंड में क्या हुआ. स्थानीय समस्याओं से जो जुड़ेंगे, जनता उसी के साथ होगी.
भाजपा-कांग्रेस कहती है कि लोकसभा की सीटें जीत कर क्षेत्रीय दल क्या करेंगे? झाविमो 14 सीटें भी जीत जाये, तो देश की राजनीति पर क्या फर्क पड़ेगा?
आज देश में कई क्षेत्रीय पार्टियां हैं, वे क्या कर रही हैं. देश की जनता तीसरे विकल्प की ओर देख रही है. हम 14 सीटें जीते, तो देश की राजनीति तय करेंगे. हमारी भूमिका होगी. संसद में हमारे प्रतिनिधि झारखंड की आवाज बुलंद करेंगे. देश की नीति तय करेंगे. कांग्रेस-भाजपा के सांसदों ने क्या किया, देश ने देख लिया है.
आप ने दिल्ली में राजनीति की एक नयी परिभाषा तो गढ़ी है. आप जैसे मध्यमवर्गीय पार्टियों के लिए चुनौती तो है. राजनीति में ईमानदारी, पारदर्शिता की बात कह रहे हैं. एक वर्ग को इसमें परिवर्तन तो दिख रहा है.
आम आदमी पार्टी कोई नयी बात नहीं कर रही है. फिजूलखर्ची से तो बचना ही चाहिए. राजनीति में ईमानदारी, पारदर्शिता तो होनी ही चाहिए. चुनावी प्रक्रियाओं की जटिलता बदलनी चाहिए. पिछले चुनाव को याद कीजिए, क्या हुआ था. मायावती की यूपी में जबरदस्त जीत हुई. जयललिता आयीं. ममता बनर्जी ने अपनी ताकत बनायी. मीडिया में तब क्या बातें आ रही थीं. कहा जा रहा था कि देश की ये तीन महिलाएं नेता, देश की राजनीति तय करेंगी. इसके बाद नीतीश कुमार आये. नीतीश कुमार पर भी मीडिया ने अटकलें लगाना शुरू कर दी. देश की राजनीति को सतही तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. आम आदमी पार्टी राजनीति में सादगी की बात कर रही है, तो यह देश-राज्य में होता रहा है. झारखंड में एके राय जैसे नेता भी रहे हैं. झारखंड में कई विधायक हुए, संपत्ति नहीं बनायी. पूरा जीवन आर्थिक तंगी में काट दिया. ममता बनर्जी की सादगी की बातें आज आ रही हैं. त्रिपुरा, गोवा के मुख्यमंत्री भी सादगी के साथ रखते हैं. अखबारों में ये बातें आज आ रही हैं. कुछ लोग हैं, जो सादगी की बात प्रचारित नहीं करना चाहते हैं. यह उनका व्यक्तिगत मामला है.
आपके सांसद डॉ अजय कुमार की आप में जाने की चर्चा की है. आप के साथ झाविमो के गंठबंधन के आसार हैं?
सांसद डॉ अजय कुमार ने यह साफ कर दिया है कि वह कहीं नहीं जा रहे हैं. अरविंद केजरीवाल से उनके पुराने संबंध हैं. अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे हैं, हम भी राज्य में इसके खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं. राजनीतिक एजेंडा एक है, लेकिन गंठबंधन जैसी कोई बात नहीं है.
चर्चा है कि अरविंद केजरीवाल से बातचीत करने आप दिल्ली जा रहे हैं.
ऐसी कोई बात नहीं है. मैं कहीं नहीं जा रहा हूं. ये बातें कहां से आती हैं, मुझे मालूम नहीं है.
हाल के दिनों में झाविमो का नीतीश प्रेम तो जागा है.
हम गैर कांग्रेसी, गैर भाजपा की बात कर रहे हैं. तीसरे विकल्प के साथ हैं. बुनियादी तौर पर झारखंड, बिहार, ओड़िशा, असम, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों का फोरम बने, यहां के दल एक मंच पर आयें, तो बड़ी ताकत बन सकते हैं. हम नीतीश कुमार के साथ ऐसे फोरम पर आने की बात जरूर कर रहे हैं. हमारी मांगें और उनकी मांगों में समानता है.
बीच-बीच में भाजपा में जाने की बात भी होती है. हवा उड़ती है कि आपका भाजपा से समझौता हो सकता है.
मैं सिद्धांत की राजनीति करता हूं. भाजपा में जाना होता, तो उसे छोड़ता क्यों? भाजपा ने हमें या हमारे दूसरे साथियों को पार्टी से निकाला भी नहीं था. हम खुद पार्टी छोड़ कर आये हैं. ऐसी बातें जानबूझ कर फैलायी जाती है कि हम भाजपा के साथ जा सकते हैं.
चुनावी गंठबंधन किसी के साथ नहीं करेंगे. यह चुनाव से पहले का ऐरोगेंस है या ओवर कांफिडेंस?
ऐरोगेंस मत कहिए. हम किसी घमंड में नहीं हैं. ओवर कांफिडेंस भी नहीं है. हां आत्मविश्वास जरूर है. जनता को झारखंड में सही विकल्प नहीं मिला. लोग झाविमो को विकल्प के रूप में देख रहे हैं. कांग्रेस-भाजपा ने राजनीति की दुकान चलायी है. कभी झामुमो को खरीदा है, कभी आजसू जैसी पार्टी को. झारखंड की जनता ने सबको मापदंड पर परख लिया है. पिछले उपचुनाव को देखें, झारखंड में परिवर्तन आया है. झारखंड की जनता की पहली पसंद झाविमो है. हम बहुमत हासिल करेंगे. झारखंड में हम सिंगल पार्टी की सरकार बनायेंगे.
क्या क्या कहा
कांग्रेस-भाजपा ने राजनीति की दुकान चलायी है, कभी झामुमो को खरीदा, कभी आजसू को.
इस बार चुनाव में कुछ नया माहौल नहीं, पहले आडवाणी पीएम इन वेटिंग थे, इस बार पात्र बदल गये.
दिल्ली को पूरा हिंदुस्तान समझना गलत, विविधता का देश है.
आप जो सादगी दिखा रही है, वैसे देश-राज्य में कई नेता हैं.
किसी दल से नहीं होगा गंठबंधन, आप और झाविमो का एजेंडा एक है, गंठबंधन के आसार नहीं.
सिद्धांत की राजनीति करता हूं, भाजपा में जाना होता, तो छोड़ता क्यों?
.तो मंत्री-अधिकारी के लिए न्यूनतम जरूरत के आवास बनायेंगे
दिल्ली में आम आदमी पार्टी के कामकाज पर चर्चा करते हुए बाबूलाल मरांडी ने कहा कि उन्होंने पहले ही तय किया था मुख्यमंत्री, मंत्री से लेकर अधिकारियों की न्यूनतम जरूरत के आवास बनाये जायें. मुख्यमंत्री रहते मैंने पहल भी की थी. सुकुरहुटू में इसके लिए जगह देखी गयी थी. मरांडी ने कहा कि मुख्यमंत्री बना, तो वह एक वर्ष के अंदर ऐसे आवास बनायेंगे. आज मंत्री से लेकर डीसी-एसपी बड़ी कोठियों में रहते हैं. जरूरत से ज्यादा जमीन इनके आवास के लिए है. शहर के बीच में इतने बड़े आवास की कोई जरूरत नहीं होती है. हम किसी की नकल की बात नहीं कर रहे हैं, यह व्यावहारिक है. नेताओं या अफसरों को लंबी-चौड़ी जगहों पर रहने की जरूरत क्या है?
झारखंड विकास पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा कि सादगी पूर्ण जीवन है, तो वह आपका व्यक्तिगत मामला है. इसे प्रचारित करने की जरूरत क्या है. मैं दिल्ली में रहता हूं, तो अल्टो कार से संसद भवन जाता हूं. दिल्ली में ऐसे कई सांसद हैं, जो दिल्ली परिवहन विभाग की बसों से संसद भवन जाते हैं. कुछ सांसद टैक्सी कर के जाते हैं. राजनीति में सादगी तो होनी ही चाहिए. राजनीति में पुराने लोगों की जीवनशैली ऐसी ही थी. आज राजनीति में नये लोग आ रहे हैं, इसलिए उनकी जीवनशैली बदली है. लोगों को आज यही बदलाव दिखता है.