CWC 1040: वर्धा की कार्यसमिति(CWC 1940) में लिए गए निर्णय के बाद मार्च 1940 में रामगढ़ (बिहार) में जो अधिवेशन हुआ, वह सिर्फ एक राजनीतिक सभा नहीं थी — वह हालात और चुनौतियों के बीच साहस और सोच का परीक्षा मैदान बन गया.
19 मार्च, 1940 की शाम 5:30 बजे झमाझम बारिश के बावजूद पंडाल में जुटी भीड़ ने मौलाना आज़ाद का भाषण ध्यान से सुना, जिसमें उन्होंने न सिर्फ इंग्लैंड के युद्धघोषणाओं पर सवाल उठाए बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि जब तक हिंदुस्तान खुद लोकतंत्र और आजादी से वंचित है, तब तक वह किसी और के युद्ध का ऋणदार किस तरह बन सकता है.
रामगढ़ अधिवेशन 1940: बारिश में भी अडिग कांग्रेस
वर्धा में हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक (19–21 अप्रैल 1940) में यह फैसला लिया गया कि अगला कांग्रेस अधिवेशन मार्च 1940 में रामगढ़ (बिहार) में आयोजित होगा. 19 मार्च 1940 को शाम 5.30 बजे, झमाझम बारिश के बीच अधिवेशन की शुरुआत हुई. पंडाल पानी से भर गया था, लेकिन कार्यवाही रुकी नहीं. लोग घुटने भर पानी में खड़े होकर भी बैठक में शामिल रहे.
अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद ने इस अवसर पर हिंदुस्तानियों के सामने जमकर भाषण दिया. उन्होंने इंग्लैंड द्वारा हिंदुस्तान को ‘युद्धरत देश’ घोषित करने के बाद की घटनाओं का जिक्र किया. मौलाना ने स्पष्ट किया कि सरकार ने न तो युद्ध का उद्देश्य बताया और न ही यह समझाया कि यह हिंदुस्तान पर कैसे लागू होगा। उनका सवाल था:
“जब हिंदुस्तान को खुद लोकतंत्र और आजादी नहीं मिली है, तो वह दूसरों के लिए यह लड़ाई कैसे लड़ सकता है?”
मौलाना ने अपने भाषण का एक बड़ा हिस्सा सांप्रदायिकता और हिंदू-मुसलमान एकता पर केंद्रित किया. उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यक केवल संख्या में छोटे समूह नहीं हैं, बल्कि वे अपने हितों की रक्षा करने में असमर्थ ऐसे समूह हैं जिन्हें दूसरों से सुरक्षा की आवश्यकता होती है.
उन्होंने मुसलमानों से पूछा:
“क्या हम भविष्य के आजाद हिंदुस्तान को शक और शुबहे से देख रहे हैं या भरोसे और हौसले से? अगर हम शक से देखते हैं, तो हमें तीसरी ताकत की मौजूदगी स्वीकार करनी होगी. लेकिन अगर हम भरोसे और हौसले के साथ भविष्य की ओर देखें, तो हमारा रास्ता साफ और स्पष्ट है. हमें नई दुनिया में कदम रखना होगा, जो उलझन, निष्क्रियता और आलस्य से मुक्त हो, और जहाँ भरोसे, निश्चय, सक्रियता और जुनून की रोशनी हमेशा साथ हो. कठिनाइयाँ और मुश्किलें हमारे कदमों की दिशा नहीं बदल सकतीं. यही हमारा अपरिहार्य कर्तव्य है कि हम हिंदुस्तान के कौमी लक्ष्य की तरफ मजबूती से बढ़ें.”

महात्मा गांधी और रामगढ़ की बैठक: सविनय अवज्ञा की तैयारी
महात्मा गांधी ने रामगढ़ में आयोजित एक खुले सत्र में कहा था कि सविनय अवज्ञा का शोर मचाना किसी के बस की बात नहीं है. केवल वही लोग इस आंदोलन को शुरू कर सकते हैं, जो इसके लिए वास्तव में काम कर रहे हैं. गांधीजी ने स्पष्ट किया:
“मुझे लगता है कि आप इसके लिए तैयार नहीं हैं. मैं किसी ऐसे कदम के लिए तैयार नहीं हूँ, जिसके लिए मुझे पछतावा हो. लेकिन जैसे ही आप तैयार होंगे, मैं लड़ाई शुरू कर दूँगा और मुझे पूरा विश्वास है कि जीत हमारी होगी.”
कुछ समय बाद, गांधीजी ने ‘हरिजन’ पत्रिका में इस बैठक की याद दिलाते हुए कांग्रेसियों और सत्याग्रहियों के लिए विस्तृत निर्देश भी दिए. उन्होंने लिखा कि प्रांतीय कांग्रेस कमेटियों को सत्याग्रह कमेटियों की रिपोर्ट मुख्यालय तक भेजनी चाहिए.
सत्याग्रहियों को अपने रोज़मर्रा के कामों की डायरी रखनी होगी, जिसमें यह दर्ज होगा कि उन्होंने कितने हरिजनों के घर जाकर उनकी कठिनाइयाँ कम कीं. गांधीजी ने स्पष्ट किया कि सत्याग्रह में नाम दर्ज करने वाले वही लोग हों, जो कष्ट सहने और जेल जाने के लिए तैयार हों, और वे किसी तरह की वित्तीय सहायता की उम्मीद न रखें.
सक्रिय सत्याग्रहियों के अलावा, गांधीजी ने ‘निष्क्रिय सत्याग्रही’ की भी बात की. ऐसे लोग जेल नहीं जाएंगे, अदालत नहीं जाएंगे, या रोज़ चरखा नहीं चलाएँगे, लेकिन आंदोलन के सिद्धांतों और संघर्ष के प्रति सहानुभूति रखते हुए सहयोग करेंगे. गांधीजी ने चेतावनी दी कि जो लोग निर्देशों के विपरीत आचरण करेंगे, वे आंदोलन को नुकसान पहुँचा सकते हैं और मुझे इसे रोकने के लिए मजबूर कर सकते हैं.
गांधीजी ने यह भी कहा कि जब दुनिया में हिंसा बढ़ रही है और सभ्य देशों तक विवादों का हल हथियारों से करने लगे हैं, तब हिंदुस्तान को यह गर्व होना चाहिए कि उसने अपनी आज़ादी की लड़ाई शांतिपूर्ण तरीक़े से लड़ी और जीती.
गांधीजी ने स्पष्ट किया कि सरकार का यह रवैया—जैसे सेंट्रल लेजिस्लेचर की स्वीकृति के बिना हिंदुस्तानी फौज को भेजना, ‘गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट’ में संशोधन और गिरफ्तारियाँ—सिर्फ सत्ता बनाए रखने की कोशिश है. इसका सही जवाब केवल सविनय अवज्ञा शुरू करना है.
रामगढ़ अधिवेशन में सविनय अवज्ञा का आह्वान
रामगढ़ अधिवेशन के बाद भारतीय कांग्रेस ने सविनय अवज्ञा की तैयारी को गंभीरता से लिया. अधिवेशन के तुरंत बाद वर्धा में 16 से 19 अप्रैल तक हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में यह प्रस्ताव पारित किया गया:
“रामगढ़ अधिवेशन के बाद बदलते हालात पर विचार करते हुए कार्यसमिति ने रामगढ़ कांग्रेस द्वारा घोषित सत्याग्रह, जिसे अधिवेशन ने अपरिहार्य बताया था, की तैयारी पर चर्चा की. कमेटी ने गांधीजी द्वारा सत्याग्रह कमेटियों के कामकाज और सक्रिय तथा निष्क्रिय सत्याग्रहियों के पंजीकरण संबंधी निर्देशों के पालन के लिए उठाए गए कदमों का स्वागत किया.”
कार्यसमिति ने भरोसा जताया कि देशभर की कांग्रेस कमेटियाँ इस कार्यक्रम को पूरी गंभीरता से लागू करेंगी और इसके लिए आवश्यक सभी कदम उठाएँगी. साथ ही, गांधीजी द्वारा तय शर्तों और मानकों को पूरा करने की आवश्यकता को भी दोबारा रेखांकित किया गया, जो कि सविनय अवज्ञा के लिए अनिवार्य हैं.
यह कदम यह दर्शाता है कि कांग्रेस नेतृत्व ने अहिंसक आंदोलन की तैयारी और गांधीजी के मार्गदर्शन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी.
नेता जी ने किया था समानांतर अधिवेशन

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेसी नेताओं से मतभेद के बाद रामगढ़ में समानांतर अधिवेशन किया था. पूरे नगर में एक विशाल शोभा यात्रा निकली थी. सुभाष चंद्र बोस रांची से रामगढ़ आए थे.
संदर्भ
जे.बी.कृपलानी, अनुवाद और संपादन, अरविंद मोहन, मेरा दौर एक आत्मकथा
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