21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

जमशेदपुर संसदीय सीट : 1984 में पांच हजार रुपये में चुनाव लड़े थे शैलेंद्र महतो

मनोज लाल रांची : वर्ष 1984 में शैलेंद्र महतो जमशेदपुर संसदीय सीट का चुनाव पांच हजार रुपये में लड़े थे. वहीं के एक समर्थक ने अपनी जीप दी थी. इस पैसे व जीप से करीब 15 दिनों तक गांव-देहात में चुनाव प्रचार किया. तब वह चुनाव हार गये थे और गोपेश्वर को जीत मिली थी. […]

मनोज लाल
रांची : वर्ष 1984 में शैलेंद्र महतो जमशेदपुर संसदीय सीट का चुनाव पांच हजार रुपये में लड़े थे. वहीं के एक समर्थक ने अपनी जीप दी थी. इस पैसे व जीप से करीब 15 दिनों तक गांव-देहात में चुनाव प्रचार किया.
तब वह चुनाव हार गये थे और गोपेश्वर को जीत मिली थी. लेकिन फिर 1989 में वहां के एक ईंट भट्ठा वाले पहाड़ महतो ने उन्हें 10 हजार रुपये चुनाव लड़ने के लिए दिया. इस बार वह चुनाव जीत कर सांसद बन गये. श्री महतो बताते हैं कि तब कोई भरोसा भी नहीं करता था. क्षेत्रीय पार्टी (झामुमो) होने की वजह से कोई सहयोग भी नहीं था.
न ही पार्टी से पैसा मिलता था. 1991 में लालू प्रसाद जमशेदपुर आये. यहां आम बगान में बैठक हुई. उन्होंने चुनाव लड़ने के लिए एक लाख रुपये दिया. फिर चुनाव लड़े और दोबारा जीत कर सांसद बने. 1996 में भी चुनाव लड़े. वह बताते हैं कि इस समय तक चुनाव में कोई खर्च नहीं होता था.
वर्ष 2000 के बाद से बढ़ा खर्च
श्री महतो के साथ ही चुनाव में तब सक्रिय रहे अन्य नेताअों का कहना कि वर्ष 2000 के बाद यानी 2004 से चुनाव खर्च बढ़ा. वर्ष 2009 से तो इसमें बहुत ज्यादा खर्च आने लगा. वर्ष 2000 के पहले तक कार्यकर्ता अपने से झंडा बनाते थे. अपने से पेंट करके चुनाव चिह्न बनाते और जगह-जगह पर टांगते थे. कार्यकर्ता अपने से दीवार लेखन करते थे. पैदल ही चुनाव प्रचार कर लेते थे. बूथ में बैठने के लिए भी कोई पैसा नहीं मांगता था.
अपने नेता के सम्मान में देते थे भोज, स्थिति पलटी
पहले चुनाव लड़ने वाला प्रत्याशी गांवों में जाता था, तो उसे गांव के लोग भोज देते थे. जमशेदपुर के गांवों में ज्यादातर खस्सी की पार्टी प्रत्याशी व उनके समर्थकों को दी जाती थी. अब स्थिति उलट हो गयी है. प्रत्याशी गांव में जाने के पहले अपने कार्यकर्ताअों को वहां भेजते हैं. प्रत्याशी पैसा देते हैं, तब वहां खस्सी कटता है और भोज का आयोजन होता है. पहले नेता को सम्मान मिलता था, अब प्रेशर में लाया जाता है. यही बदलाव हुआ है.
ठेकेदार-बड़े व्यवसायी ही लड़ सकते हैं चुनाव
चुनावी के पैटर्न, महंगे प्रचार की वजह से अब ठेकेदार व बड़े व्यवसायी ही चुनाव लड़ पा रहे हैं. 1990 के पहले के कुछ नेताअों का कहना है कि अब साधारण नेता या कम पैसे वाले राजनीतिज्ञों की इतनी हैसियत नहीं है कि वे चुनाव लड़ें.
उन्हें पार्टी फंड से बड़ी राशि मिलेगी, तभी चुनाव लड़ सकेंगे. शैलेंद्र महतो कहते हैं कि अब पैसे ने चुनाव का रुख मोड़ दिया जाता है. आप कितने भी बड़े बुद्धिजीवी या शिक्षाविद या अच्छे नेता क्यों न हों, पैसा है, तभी चुनाव लड़ सकेंगे. यही वजह है कि आम राजनीतिज्ञ चुनाव से दूर हो रहे हैं. पैसा वाला ठेकेदार-व्यवसायी इसमें सामने आ रहा है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें