लुकसान चाय बागान में श्रमिक का काम करते हैं दंपती
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पोलियोग्रस्त बच्चे को गड्ढे में रखने को विवश
लुकसान चाय बागान में श्रमिक का काम करते हैं दंपती किसी मसीहा की आस में हैं माता-पिता दिव्यांग बच्चे की देखरेख करती है नौ वर्षीय बेटी नागराकाटा : एक गरीब आदिवासी दंपती का बच्चा पोलियोग्रस्त है. इस दंपती के पास इलाज के पैसे नहीं है. बच्चा अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाता है. इस […]
किसी मसीहा की आस में हैं माता-पिता
दिव्यांग बच्चे की देखरेख करती है नौ वर्षीय बेटी
नागराकाटा : एक गरीब आदिवासी दंपती का बच्चा पोलियोग्रस्त है. इस दंपती के पास इलाज के पैसे नहीं है. बच्चा अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाता है. इस स्थिति में बच्चे के स्वास्थ्य के लिये घर के आगे खड्ढ़ा बनाकर उसमें बच्चे को रखा जाता है. ताकि उसके पैर में ताकत आ जाय और वह स्वस्थ्य हो सके. अब इस दंपती के पास बच्चे के उपचार के लिये एक मात्र भरोसा गड्ढ़ा ही है. बच्चे को खड़ा होकर चलने की आस में बच्चे को दिनभर गड्ढ़े में खड़ा करके रखा जाता है.
लेकिन इस दुख व परेशानी के बावजूद इस निर्धन दंपती का सुध लेने वाला कोई नहीं है. अभी भी यह दंपती किसी तारणहार की तलाश में है. जो बच्चे के लिये सहारा बन सके. यहां तक की इस दंपती की एक बेटी नेहा उरांव (9) ने आजतक स्कूल का मुंह नहीं देखा है. इस तरह की मार्मिक समस्या भी प्रशासन के कानों तक नहीं पहुंच पाया है. जिस पर प्रश्नचिह्न खड़ा होने लगा है. यह दंपती नागराकाटा ब्लॉक स्थित लुकसान चाय बागान के गुवाबाड़ी श्रमिक लाईन की है.
लुकसान चाय बागान गुवाबाड़ी लाईन में श्रमिक पिता भरत उरांव और माता रेनुका उरांव का पुत्र नेहाल उरांव (4) जन्म से ही दिव्यांग है. नेहाल होल भी नहीं पाता है और ना ही चलफिर सकता है. परिवार की आर्थिक समस्या के कारण उसे चाहकर भी उपचार नहीं करा पाने का बात माता-पिता बताते हैं. अन्य बच्चों की तरह बेटा भी चल फिर कर सके, अपने पैरों पर खड़ा हो सके. इसके लिए बच्चे को घर के आंगन में डेढ़ फुट का गड्ढ़ा बनाकर उसी में दिन भर रख दिया जाता है. जहां उसकी दीदी नेहा देखरेख करती है.
पिता भरत उरांव और माता रेनुका उरांव का कहना है कि नेहाल बचपन से दिव्यांग पैदा हुआ है. उपचार के लिए हमारे पास पैसे नहीं हैं. उनका कहना है कि हमें एक वक्त का भोजन जुटाने के बाद दूसरे समय के लिए सोचना पड़ता है. इस अवस्था में हम बच्चे का उपचार कैसे कराएं. इलाज के लिए हमलोगों ने मदद की गुहार भी लगायी.
लेकिन कोई सफलता हासिल नहीं हो सका. बाद में हमलोगों ने एक ओझा को बुलाकर झाड़फूक कराया. लेकिन उससे भी कोई फायदा नहीं हुआ. उसके बाद गांव के किसी ने सुझाव दिया कि खड़े में रखने से वह अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है. यदि अपने पैर पर खड़ा हो जाएंगा तो स्वास्थ्य होकर चलफिर भी कर पाएगा. इसी आस के साथ हमलोगें ने घर के आगे डेढ़ फुट लंबा और आधा फुट चौड़ा गड्ढा बनाकर कुछ माह पहले से उसमें को रखना शुरु किया.
सास बेजेनिया उरांव ने कहा कि हम मजबूर और लाचार हैं. मैं चाय बागान में काम करती हूं. उससे परिवार की रोजी-रोटी चलती है. यदि कोई हमारे बच्चे के उपचार के लिए सहयोग करता है तो बड़ी मेहरबानी होगी. पड़ोसी महिला गुजाईन महली ने बताया कि परिवार आर्थिक रुप से कमजोर है, जिसके कारण बच्चे का इलाज नहीं हो पा रहा है. बच्चे की अवस्था देखकर हमें दुख लगता है.
एक गैर सरकारी संस्था सिनी ने नेहाल का खोज खबर लेकर आने की बात जलपाईगुड़ी जिला सिनी को-आर्डिनेटर दिग्विजय नाहा ने दी. नागराकाटा ब्लॉक स्वास्थ्य अधिकारी अभिषेक मंडल ने कहा की शिशु के बारे में हमे जानकारी मिली है. उसे सरकारी प्रकल्प के माध्यम से उपचार कराने का इंतजाम किया जायेगा. नागराकाटा ब्लॉक शिशु प्रकल्प अधिकारी कृष्णकान्त दास ने बताया कि बच्चे की जानकारी ली जा रही है.
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