भाजपा को रोकने के लिए 26 साल बाद एक साथ आये दो राजनीतिक दल
26 मई तक नयी सरकार का गठन हो जायेगा. इसको लेकर यूपी में चुनावी सरगर्मी तेज हो गयी है. सपा-बसपा ने 80 में से 37-38 सीटों पर खुद और कांग्रेस के लिए दो और छोटी सहयोगियों के लिए तीन सीटें छोड़ने का फैसला किया है.
अजीत पाण्डेय
सपा-बसपा के बीच गठबंधन हो, यह नेता और पार्टी नेतृत्व से ज्यादा दोनों दलों के कैडर और बेस वोटर चाहते थे. यह कहना है सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव का. हाल ही में उन्होंने कार्यकर्ताओं की बैठक में यह बात कही. उन्होंने आगे कहा कि पार्टी के वरिष्ठ नेता और अधिकांश जनप्रतिनिधि नहीं चाहते थे कि गठबंधन हो, क्योंकि गठबंधन में कम और चुनिंदा सीटों पर चुनाव लड़ने के कारण नेताओं के लिए संभावनाएं कम हो जाती हैं. दोनों दलों के वोटरों के बीच जमीन पर तालमेल हो गया है यह बात गोरखपुर और फुलपुर के लोकसभा उपचुनाव से साबित हो जाता है.
एक-दूसरे के प्रति एकजुटता तब दिखी जब हाल ही में मायावती के जन्मदिन समारोह पर अधिकांश जिलों में साथ कार्यक्रम हुए. हाल ही में चंदौली के मुगलसराय की विधायक साधना सिंह ने जब बसपा सुप्रीमो को लेकर विवादस्पद बयान दिया था, सपा कार्यकर्ताओं ने भी इसकी खुलकर मुखालफत की. उत्तर प्रदेश के जमीनी हालात पर बात करते हुए सपा के नेता ने बताया कि जनता इस बार भाजपा को मौका नहीं देने जा रही.
उन्माद और नफरत की राजनीति, मॉबलिंचिंग, हनुमानजी की जाति बताना, युवकों को नौकरी की जगह पकौड़ा तलने की सलाह से जनता में भाजपा की पोल खुल चुकी है. आज गौवंश को लेकर जिस तरह का माहौल बनाया गया है. खेतों में फसलें तबाह हो रही है. पूरा समय किसान पशुओं को पकड़ने में परेशान हैं.
जनता समझदार है, 2007 से हर छोटे-बड़े चुनावों में सभी दलों को मौका दिया. इस बार सपा -बसपा गठबंधन को मौका मिलेगा. 13 प्वाइंट रोस्टर से विवि और कॉलेजों में आरक्षण को खत्म करके दलित पिछड़ों की हकमारी हो रही है. उसका भी जनता जवाब देगी. हम यूपी को किसी भी कीमत पर नफरत का अखाड़ा नहीं बनने देंगे.
श्रीनारायण सिंह यादव, पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष, समाजवादी छात्र सभा
जातीय समीकरण को साधना होगा
बसपा के पास गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलित को अपने साथ लाने की चुनौती होगी, जो 2014 और 2017 के विस चुनाव में भाजपा के साथ चला गया था.
सपा के पास कुर्मी, कोइरी, राजभर जैसे गैर यादव वोटों को अपने साथ लाने की चुनौती होगी. सपा मानती है कि भाजपा गैर यादव पिछड़ी जातियों को समझाने में कामयाब रही.
2017 के विस चुनाव में बहुत विधायक टिकट कटने और अन्य कारणों से बसपा में चले गये. अगर उन्हें टिकट मिला, तो गुटबाजी और भीतरघात की समस्या होगी.
बसपा ने पूर्वांचल में गाजीपुर सहित कई सपा के प्रभुत्वाली सीटें हासिल कर ली हैं. गौरतलब है कि गाजीपुर में बसपा कभी चुनाव नहीं जीती इसके बाद सपा ने उसे यह सीट दे दी.
भाजपा नहीं मानती सपा और बसपा को चुनौती
गठबंधन को भाजपा कोई चुनौती नहीं मानती. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी कहते हैं कि यूपी में सपा और बसपा में स्वभाविक विरोधाभास है. बसपा के कोर वोटर जाटव और सपा के यादवों के बीच पटरी नहीं रही. 2007 से 12 तक बसपा काल में सपा ने कई बार विस सभा का घेराव कर कार्यकर्ताओं को एसीएसटी एक्ट में फंसाने का आरोप लगाया. सपा के 2012 से 17 तक सपा काल में बसपा ने भी कई बार दलित उत्पीड़न को सदन में पुरजोर तरीके से उठाया. चुनौती की बात है तो बसपा के सहयोग से उपचुनाव जीत कर सपा भले खुश हो. लेकिन शिवपाल यादव खुद एक बड़ी चुनौती बन बने हैं. उन्होंने सपा के पुराने दबंगों और बाहुबलियों को टिकट देना शुरू कर दिया है. दबंगों का क्षेत्र विशेष में प्रभाव होता है.
वह चुनाव भले न जीतें लेकिन हरा सकते हैं. पीएम आवास, उज्जवला, हर घर बिजली गेमचेंजर साबित हुए हैं. 2012 का विस, 2014 का आम चुनाव और 2017 का विस चुनाव हारने से बसपा कार्यकर्ता हताश हैं. अस्तित्व का संकट है. बसपा के टिकट के रेट आधे हो गये हैं.
एक नजर वोटों के गणित पर
2009
समाजवादी पार्टी
चुनाव लड़ी75 सीटों पर
जीते 23 सीट
वोट प्रतिशत23.25%
2014
78 सीटों पर
पांच सीट
22.35%
बहुजन समाज पार्टी
चुनाव लड़ी 500 सीटों पर(देश भर में)
जीती सीटें21 (20 यूपी और एक मप्र)
वोट प्रतिशत 6.17% (राष्ट्रीय)
27.42% (यूपी)
503 सीटों पर
एक भी नहीं
4.19% (राष्ट्रीय)
19.77%(यूपी)