मुकुल श्रीवास्तव
टिप्पणीकार
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आजकल स्मार्ट होने का जमाना है. वह चाहे फोन हो या टीवी या फ्रिज सब स्मार्ट होने चाहिए. वैसे स्मार्ट होने में कोई बुराई भी नहीं है. नया स्मार्टफोन लेने के बाद क्या आपको पुराने फोन की कमी खलती है?
आप कहेंगे हां, कभी-कभी जब नया फोन हैंग होता है या कोई वायरस आ जाता है. वह बहुत सिंपल था, उसमें फीचर्स कम थे. यह नया फोन वैसे तो बहुत बढ़िया है, पर इसमें फीचर्स इतने ज्यादा हैं कि आधे की तो कभी जरूरत ही नहीं पड़ती है. खैर जब इतनी चीजें स्मार्ट हो रही हैं, तो हमारे रिश्ते क्यों न स्मार्ट हों? अब आप कहेंगे कि रिश्ते और स्मार्ट, यह भला कैसी बात हुई?
जब दुनिया बदल रही है, तो हमारे रिश्ते क्यों नहीं? बस यहीं मामला थोड़ा उल्टा हो जाता है. कुछ चीजें अपने मूल रूप में ही अच्छी लगती हैं और हमारे रिश्ते उनमें से एक हैं. जरा सोचिये, हमारा पुराना फोन बात करने और मैसेज भेजने के काम तो कर ही रहा था और हममें से ज्यादातर लोग अपने स्मार्टफोन से भी वही काम करते हैं, जो अपने पुराने फोन से करते थे.
फोन पर चैटिंग और मिनट-मिनट पर फेसबुक का इस्तेमाल बस थोड़े दिन ही करते हैं फिर जिंदगी की आपाधापी में ये चीजें बस फोन का फीचर भर बनकर रह जाती हैं, पर इस थोड़े से मजे के लिए हम अपने फोन को कितना कॉमप्लिकेटेड बना लेते हैं. कहीं गिर न जाये, महंगा फोन कहीं खो न जाये, इसलिए हमेशा अपने से चिपकाये फिरते हैं.
हम यह नहीं कह रहे हैं कि आपने फोन बदल कर गलत किया. रिश्ते भी वक्त के साथ बदलते हैं, पर जो चीजें नहीं बदलती हैं- वे हैं अपनापन, रिश्तों की गर्मी और किसी के साथ से मिलनेवाली खुशी. हमारा फोन स्मार्ट हुआ, तो जटिल भी हो गया. रिश्तों में भी अगर स्मार्टनेस आ जाये, तो उसमें जटिलता बढ़ जाती है, भले ही रिश्ते बने रहें, पर उनमें अपनापन और प्यार नहीं रह जाता.
हम जिंदगी में कई तरह के रिश्ते बनाते हैं, कुछ पर्सनल तो कुछ फॉर्मल. कभी आपने महसूस किया है कि हम फॉर्मल रिश्तों में ज्यादा स्मार्टनेस दिखाते हैं और अपने से अलग हटकर बरताव करते हैं. किसी बात पर गुस्सा भी आया, तो हंसकर टाल गये. कुछ बुरा लगा तो भी चेहरे पर मुस्कुराहट ओढ़े रहे.
जाहिर है, हम ऐसे नहीं होते और अगर अपने लोगों के साथ कुछ ऐसा हुआ होता, तो हम जमकर गुस्सा करते. लेकिन, बाहर हम ऐसा नहीं करते, क्योंकि जिनके साथ हम थे, उनसे हमारे औपचारिक रिश्ते थे. जाहिर है अपने लोगो से स्मार्टनेस दिखाने का कोई फायदा नहीं है. ये लोग हमारे अपने हैं, जो हमारी सब अच्छाई-बुराई जानते हैं. ये हमारे नाम, ओहदे, रसूख के कारण हमारे साथ नहीं हैं. ऐसे रिश्तों के साथ कोई नियम व शर्तें नहीं लागू होती हैं.
अब समझ में आ गया होगा कि स्मार्टफोन खरीदते वक्त नियम-शर्तें जरूर पढ़ें, पर जब बात अपनों की हो, तो बिलकुल स्मार्टनेस न दिखायें, क्योंकि अपने रिश्तों के साथ कोई नियम और शर्तें नहीं होती हैं. तो मैं फोन भले ही स्मार्ट रखता हूं, पर असल में स्मार्ट हूं नहीं.