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मालदा : 2014 में शहीद जवान का परिवार कच्चे मकान में रहने को विवश

कश्मीर घाटी में शहीद हुआ था सेना का जवान तबरूक अंसारी मालदा : पुलवामा कश्मीर में आतंकी हमले में शहीद सीआरपीएफ के 40 जवानों की घटना ने मालदा जिले के शहीद जवान तबरूक अंसारी (35) के परिवारवालों की एक बार फिर दर्दभरी पुरानी यादों को ताजा कर दिया है. मालदा जिले के चांचल महकमा की […]

कश्मीर घाटी में शहीद हुआ था सेना का जवान तबरूक अंसारी
मालदा : पुलवामा कश्मीर में आतंकी हमले में शहीद सीआरपीएफ के 40 जवानों की घटना ने मालदा जिले के शहीद जवान तबरूक अंसारी (35) के परिवारवालों की एक बार फिर दर्दभरी पुरानी यादों को ताजा कर दिया है.
मालदा जिले के चांचल महकमा की पुकुरिया ग्राम पंचायत अंतर्गत परानपुर गांव के निवासी तबरूक अंसारी 27 फरवरी 2014 को आतंकियों से लड़ते हुए जम्मू-कश्मीर में शहीद हो गये थे. परिवारवालों का कहना है कि उस समय भी आतंकियों के खिलाफ प्रतिवाद और मोमबत्ती जुलूस निकाले गये थे. उसके बाद पांच साल गुजर गये, लेकिन आज तक यह परिवार केवल शहीद जवान की पेंशन से चल रहा है. अब भी तबरूक अंसारी का घर पूरी तरह पक्का नहीं हो पाया है. उस घटना के बाद से इस परिवार की तरफ किसी ने भी देखने की जहमत नहीं उठायी है.
उल्लेखनीय है कि तबरूक अंसारी कश्मीर में तैनात थे. आतंकी हमले में उनका शरीर छलनी हो गया था. शहादत के तीन रोज बाद ताबूत में बंद उनका पार्थिव शरीर उनके गांव परानपुर पहुंचा. उस समय भी पूरे गांव में शोक की लहर थी. उस समय तबरूक अंसारी की मां मुन्नी बेवा फूट-फूटकर रोयी थी.
आज भी उनकी विधवा रहीमा बेवा अपने पति की तस्वीर को सीने में चिपकाये बैठी हैं. इन लोगों का कहना है कि सरकार आतंकियों को खत्म करे. साथ ही इस तरह परिवार न उजड़े. मां की गोद खाली न हो. इस परिवार का आरोप है कि घटना के बाद से इस परिवार की सूध लेने कोई नहीं आया. न ही किसी तरह की अतिरिक्त मदद दी गई. आज भी इस परिवार का आधा कच्चा मकान इस बात की तस्दीक कर रहा है.
तबरूक अंसारी की पत्नी रहिमा बेवा ने कहा कि देश के लिए उनके पति ने प्राण दिये हैं. इसके लिए उन्हें कोई शिकायत नहीं है, बल्कि उन्हें इस पर गर्व है.
लेकिन आज पति के पेंशन पर ही परिवार का निर्वाह हो रहा है. किसी तरह की अतिरिक्त मदद नहीं मिली है. सरकार को भी सुरक्षा में लगे जवानों की हिफाजत के लिए विशेष प्रयास करना चाहिए. शहीद जवान की मां मुन्नी बेवा का कहना है कि दोनों बेटों में बड़े बेटे ने देश के लिए जान दे दी. इनका एक और बेटा पंजाब में सेना में कार्यरत है. त्योहारों के समय छुट्टी लेकर घर आता है और फिर वापस चला जाता है.
तब उसकी चिंता बनी रहती है. हमलोग चाहते हैं कि आतंकियों का देश से सफाया कर दिया जाये.
स्थानीय पंचायत समिति के सदस्य आमिनूल हक ने बताया कि शहीद जवान के इस परिवार की पंचायत की तरफ से हर संभव मदद दी गई है. लेकिन एक सैनिक परिवार को इस मामले का राजनीतीकरण नहीं करना चाहिए. यह सही है कि इस परिवार को केन्द्र सरकार से कोई अतिरिक्त सहायता नहीं दी गई. आज भी परिवार का शहीद सैनिक के पेंशन से ही गुजारा होता है. हमलोग पंचायत की तरफ से इस परिवार की मदद के लिए हमेशा तैयार हैं.

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