राज्य से बुद्ध, बौद्ध धर्म व बौद्ध दर्शन का गहरा रहा है संबंध
संजय
रांची : झारखंड में बुद्ध सर्किट (पथ) व बौद्ध परंपरा की खोज सहित श्रवण व सरना धर्म (आदि धर्म) के साथ इसके संबंध पर पहली बार विस्तृत शोध की तैयारी है. डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान (टीआरआइ) के निदेशक डॉ रणेंद्र कुमार की पहल पर इस तरह का शोध होगा.
इच्छुक व अनुभवी (देश या झारखंड में शोध कार्य कर चुके) विश्वविद्यालय (सभी महाविद्यालय), विवि के विभाग तथा सरकारी व गैर सरकारी संस्थाअों के माध्यम से यह काम होगा. शोध का विषय देशज बुद्ध : सर्च अॉफ बुद्ध पाथ, ट्रेडिशन अॉफ बुद्धिज्म इन झारखंड एंड रिलेशन विद श्रवण एंड सरना धर्म (आदि धर्म) है. संस्थान ने इतिहास की किताबों व दस्तावेजों से लिये गये तथ्यों के साथ शोध कार्य संबंधी गाइड लाइन जारी की है, जो संबंधित शोध कर्ता के लिए मार्गदर्शन का काम करेगी. एक वर्ष की अवधि वाले इस शोध कार्य के लिए शोधकर्ता संस्था को समस्त झारखंड सहित बनारस, कोलकाता, पटना, दिल्ली, बोधगया व कुछ अन्य स्थानों का भ्रमण करना होगा.
शोध रिपोर्ट कॉफी टेबल बुक की शक्ल में सभी जरूरी व प्रासंगिक तस्वीरों सहित अन्य डॉक्यूमेंट (बुद्ध रूट व सर्किट वाला बुद्ध मैप, बुद्ध व बौद्ध संबंधी नयी जगहों की पहचान का पूर्ण विवरण, अॉडियो-वीडियो डिजिटल बुक) के साथ देनी होगी.
झारखंड से बुद्ध का संबंध : झारखंड के दो पड़ोसी राज्य बिहार व उत्तर प्रदेश गौतम बुद्ध से जुड़े पर्यटन स्थलों के लिए जाने जाते हैं. हाल के वर्षों में दोनों राज्यों ने इन स्थलों को टूरिस्ट मैप पर लाने के प्रयास किये हैं.
हर वर्ष बढ़ रही पर्यटकों की संख्या से वहां की स्थानीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है. दो अन्य पड़ोसी राज्यों छत्तीसगढ़ व प बंगाल का बुद्ध से कोई संबंध तो नहीं दिखता, पर इन दोनों ने भी अपने यहां बुद्ध से जुड़े स्थलों की खोज का प्रयास किया है.
दूसरी अोर झारखंड से बुद्ध, बौद्ध धर्म व बौद्ध दर्शन का गहरा संबंध रहा है. यहां बुद्ध की स्मृतियों से जुड़े कई स्थल व अवशेष हैं तथा बौद्ध धर्म से जुड़ी कई कहानियां भी. विभिन्न अध्ययन व इतिहास की किताबें झारखंड में बुद्ध का अस्तित्व स्पष्ट करती हैं.
इस संदर्भ में चतरा जिले का इटखोरी, कलियाहवाड़ी व उगरात्रा सर्वाधिक लोकप्रिय स्थान हैं. इतिहास बताता है कि पलामू, हजारीबाग, धनबाद व संताल परगना में बुद्ध से जुड़ी कई चीजें हैं. कुछ ऐतिहासिक अध्ययन बताते हैं कि अपनी अंतिम यात्रा के दौरान कुशीनगर जाते हुए बुद्ध, पलामू के सतबरवा से गुजरे थे. यहां के एक गांव में बुद्ध प्रतिमा के अवशेष मिले हैं.
कारवा में भी बुद्ध का स्तूप है, जिसकी तुलना इतिहासकार सांची के स्तूप से करते हैं. बुद्ध के स्तूप पाटन थाना के दुलहिउ गांव व पहाड़वाल में भी हैं. वहीं बौद्ध धर्म ग्रंथ में मालाअों का जिक्र मिलता है, जो पलामू के गांव में रहते थे. कहा जाता है कि संताल परगना में दुमका की एक महिला काजनगला को स्वयं बुद्ध ने महा-विदूषी घोषित किया था. उधर, बुद्ध की प्रतिमा के अवशेष लातेहार की तप्पा पहाड़ी के पास भी हैं. काले व सफेद रंग के संगमरमर पत्थर से बने ये अवशेष पहाड़ी के पास सशांग गांव में हैं.
इसी तरह के अवशेष पांकी से सटी पहाड़ियों के पास भी हैं. पलामू किले में भी बुद्ध विहार के अलावा बुद्ध की प्रतिमा देखी जा सकती है. ऐसे बुद्ध विहार भंडरिया प्रखंड के पेरोग्राम में भी हैं. पहाड़ियों को तोड़ कर गुफा की शक्ल में ऐसे विहार बने हैं. ऐसे कई विहार बेतला, चेचारी व महुआटांड में हैं.
(सभी तथ्य डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान के दस्तावेज से)
शोध का उद्देश्य
झारखंड में बुद्ध व बौद्ध संबंधी नयी खोज तथा जनजातीय रीति-रिवाज व दर्शन के साथ बौद्ध दर्शन व परंपरा की समानता की तलाश
शोध का दर्शन
भविष्य में यदि एशियाई देश एक व मजबूत हुए, तो इसमें तीन कॉमन चीजें महत्वपूर्ण रोल अदा करेंगी, जिनकी जड़े भारत में हैं. पहला चावल (भात) खाने की परंपरा तथा रामायण व बुद्ध की लोकप्रियता. (एडवर्ड एल्जर, द राइजिंग अॉफ एशिया बुक से)
लातेहार-रांची मार्ग पर स्थित ब्राह्मणी गांव में बुद्ध की प्रतिमाएं बड़ी संख्या में
इधर, लातेहार-रांची मार्ग पर स्थित ब्राह्मणी गांव में बुद्ध की प्रतिमाएं बड़ी संख्या में पायी गयी हैं. पूर्व के मानभूम जिले में भी बुद्ध का प्रभाव देखा जा सकता है. इतिहासकार हेंगसांग ने अपनी किताब में एक जगह सु-फा-ला-ना का जिक्र किया है, जो दलमा से 16 किमी दूर है.
इसे बुद्ध व बुद्धिज्म का केंद्र बताया गया है. वहीं टी ब्लास्क व बगलर ने धनबाद के बुद्धपुर गांव में बुद्ध प्रतिमा के अवशेष होने की जानकारी अपनी किताब में दी हैं. उसी तरह इतिहासकारों द्वारा लिखित कई किताबों व दस्तावेजों में हजारीबाग में विभिन्न स्थलों के होने का जिक्र है. ये तमाम बातें झारखंड व बुद्ध के संबंधों की पुष्टि करते हैं.