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सिलीगुड़ी : रेगुलेटेड मार्केट घोटाला-5 : स्टॉल हस्तांतरण में मनी रसीद का जिक्र नहीं, मृत व्यवसायी का स्टॉल दूसरे को दिया

सिलीगुड़ी : सिलीगुड़ी रेगुलेटेड मार्केट में स्टॉलों के आवंटन व हस्तांतरण में घपले की परत-दर-परत खुलने से व्यवसायियों में हड़कंप मचा हुआ है. घपले के हैरान करनेवाले तथ्य सामने आ रहे हैं. इस कड़ी में ताजा मामला है, एक मृत व्यक्ति का स्टॉल अवैध तरीके से प्रभावशाली व्यवसायी परिवार को सुपुर्द करने का. इस स्टॉल […]

सिलीगुड़ी : सिलीगुड़ी रेगुलेटेड मार्केट में स्टॉलों के आवंटन व हस्तांतरण में घपले की परत-दर-परत खुलने से व्यवसायियों में हड़कंप मचा हुआ है. घपले के हैरान करनेवाले तथ्य सामने आ रहे हैं. इस कड़ी में ताजा मामला है, एक मृत व्यक्ति का स्टॉल अवैध तरीके से प्रभावशाली व्यवसायी परिवार को सुपुर्द करने का.

इस स्टॉल के हस्तांतरण के लिए बनी डीड पर मनी रसीद का कहीं जिक्र नहीं है. बताया जाता है कि यह हस्तांतरण एक फर्जी मनी रसीद पर किया गया है. यानी वेस्ट बंगाल स्टेट मार्केटिंग बोर्ड की स्वीकृति व दिशा-निर्देश की अनदेखी के साथ-साथ सरकार को राजस्व का चूना लगाये जाने की भी आशंका है.

जानकारी के अनुसार, 2009 के अगस्त महीने में सिलीगुड़ी के महानंदा पाड़ा निवासी नवीन अग्रवाल ने सिलीगुड़ी रेगुलेटेड मार्केट के फल-सब्जी यार्ड में स्टॉल नंबर टीए-3 व टीए-4 के बीच खाली पड़ी 750 वर्गफुट जमीन की लीज का आवेदन किया. एसआरएमसी ने वेस्ट बंगाल स्टेट मार्केटिंग बोर्ड की स्वीकृति व दिशा-निर्देश पर नवीन अग्रवाल को वह जमीन आवंटित किया.
इस जमीन पर नवीन अग्रवाल ने स्टॉल बनाया. एसआरएमसी ने जिसे अपने रिकॉर्ड में स्टॉल नंबर टीएस-15 दर्ज किया. वर्ष 2016 में एक सड़क हादसे में नवीन अग्रवाल की मौत हो गयी. तब से यह स्टॉल बंद पड़ा था.
इसके बाद इस स्टॉल का आवंटन भी 1 अक्तूबर 2018 को गणेश सिंह व उमेश सिंह के नाम पर संयुक्त रूप से कर दिया गया. लेकिन आवंटन की प्रक्रिया में न सिर्फ नियमों की धज्जियां उड़ायी गयीं, बल्कि गणेश सिंह व उमेश सिंह को यह स्टॉल ‘मुफ्त’ में मुहैया कराने के तथ्य सामने आये हैं.
प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार, एसआरएमसी गणेश सिंह व उनके परिवार पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान दिख रही है. रविवार को प्रभात खबर ने स्टॉल नंबर टीएस-49 के आवंटन में फर्जीवाड़े का मामला प्रकाशित किया. वेस्ट बंगाल स्टेट मार्केटिंग बोर्ड की स्वीकृति के बिना ही उमा शंकर सिंह व प्रभा देवी के नाम पर एसआरएमसी ने संयुक्त रूप से स्टॉल आवंटित किया.
अक्तूबर 2018 में फिर से फर्जीवाड़े करके उमा शंकर सिंह का स्टॉल विकास कुमार मित्तल को हस्तांतरित कर दिया गया. प्रभा देवी गणेश सिंह की पत्नी हैं. मृत नवीन अग्रवाल का स्टॉल टीएस-15 भी अवैध तरीके से गणेश सिंह व उनके चचेरे भाई उमेश सिंह के नाम पर संयुक्त रूप से आवंटित हुआ है.
जानकारों के मुताबिक, सड़क हादसे में नवीन अग्रवाल की मौत के बाद उनका स्टॉल उनके उत्तराधिकारी को मिलना चाहिए था. लेकिन नवीन अग्रवाल की मौत के बाद उनका कोई भी उत्तराधिकारी स्टॉल का मालिकाना लेने के लिए सामने नहीं आया. इसका लाभ उठाकर बंद पड़ा स्टॉल बड़ी आसानी से गणेश सिंह व उमेश सिंह को दे दिया गया.
आश्चर्यजनक बात यह सामने आयी है कि नवीन अग्रवाल का स्टॉल टीएस-15 को गणेश सिंह व उमेश सिंह को हस्तांतरित करने के लिए बनायी गयी डीड पर वेस्ट बंगाल स्टेट मार्केटिंग बोर्ड की स्वीकृति व दिशा-निर्देश का जिक्र तो छोड़िए, स्टॉल आवंटन के लिए जरूरी नन रिफंडेबल सलामी की मनी रसीद तक का जिक्र नहीं है.
यानी नये व्यक्तियों को आवंटन में सरकार के खाते में राजस्व जमा कराया भी गया या नहीं, इसका उल्लेख नहीं है. इससे भी बड़ा फर्जीवाड़ा तब सामने आया जब एसआरएमसी के रिकॉर्ड में दर्ज दो डीड पर नन रिफंडेबल सलामी का एक ही रसीद नंबर दर्ज पाया गया.
स्टॉल हस्तांतरण में एक ही रसीद नंबर का अवैध इस्तेमाल
प्राप्त दस्तावेजों के मुताबिक, स्टॉल नंबर टीएच-2 सर्वप्रथम नरेश साहा एंड ब्रदर्स के नाम पर आवंटित हुआ. जबकि वर्ष 2018 में स्टॉल को शिवराज नेतर को अवैध तरीके से हस्तांतरित कर दिया गया. शिवराज ने स्टॉल नंबर टीएच-2 के लिए मनी रसीद नंबर 19929 के जरिए नन रिफंडेबल सलामी के पचास हजार रुपये जमा कराये.
गौर करने वाली बात यह है कि मृत नवीन अग्रवाल के टीएस-15 नंबर स्टॉल का गणेश सिंह व उमेश सिंह को हस्तांतरण के लिए भी इसी मनी रसीद का उपयोग किया गया है. हालांकि डीड पर इस मनी रसीद का जिक्र नहीं है. लेकिन एसआरएमसी के रिकॉर्ड में यही मनी रसीद नंबर (19929) गणेश सिंह व उमेश सिंह के लिए दर्ज है.
इस संबंध में मृत नवीन अग्रवाल के भाई रूपेश अग्रवाल ने बताया कि भैया की मौत के बाद स्टॉल के बारे में उन लोगों को कुछ भी ज्ञात नहीं है. वहीं उमेश सिंह का कहना है कि स्टॉल की डीड एसआरएमसी के सचिव ने ही बनाकर मुहैया करायी थी. नियमों की अनदेखी व फर्जीवाड़े के संबंध में उन्हें कुछ भी ज्ञात नहीं.
जबकि एसआरएमसी की चेयरपर्सन सह जिला अधिकारी जयसी दासगुप्ता सभी डीड पर अंकित अपने व सचिव के दस्तखत को पहले ही फर्जी करार दे चुकी हैं. सचिव देवज्योति सरकार ने भी बताया कि पदभार संभालने के बाद से उन्होंने एक भी आवंटन या हस्तांतरण डीड पर दस्तखत नहीं किया है.

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