कोलकाता : मुझे नहीं पता कि मैं भारत रत्न के काबिल हूं भी कि नहीं, क्योंकि इस सम्मान से बड़े-बड़े मनीषियों को सम्मानित किया गया है. यह देश का सबसे बड़ा सम्मान है, जो सर्वप्रथम सी राजगोपालचारी, सर्वपल्ली राधाकृष्णन व सीवी रमण जैसे प्रतिष्ठित लोगों को मिला था.
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कोलकाता : मुझे नहीं पता कि मैं भारत रत्न के काबिल हूं या नहीं – प्रणब मुखर्जी
कोलकाता : मुझे नहीं पता कि मैं भारत रत्न के काबिल हूं भी कि नहीं, क्योंकि इस सम्मान से बड़े-बड़े मनीषियों को सम्मानित किया गया है. यह देश का सबसे बड़ा सम्मान है, जो सर्वप्रथम सी राजगोपालचारी, सर्वपल्ली राधाकृष्णन व सीवी रमण जैसे प्रतिष्ठित लोगों को मिला था. ये बातें देश के पूर्व राष्ट्रपति व […]
ये बातें देश के पूर्व राष्ट्रपति व हाल ही में भारत रत्न से सम्मानित प्रणब मुखर्जी ने गुरुवार को कहीं. वह पब्लिशर्स एंड बुक सेलर्स गिल्ड द्वारा अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेला में आयोजित कोलकाता लिटरेचर फेस्टिवल का उद्घाटन करने पहुंचे थे. उन्होंने कहा कि इस वर्ष भी उनके साथ प्रसिद्ध संगीतज्ञ भूपेन हजारिका व विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता नानाजी देशमुख को भारत रत्न से सम्मानित किया गया है.
श्री मुखर्जी ने कहा कि कार्यक्रम को आयोजित करनेवाले सभी लोगों के प्रति वे कृतज्ञ हैं, जिन्होंने उन्हें भारत रत्न मिलने की बधाई देने के लिए कार्यक्रम में आमंत्रित किया. भारत रत्न से सम्मानित श्री मुखर्जी ने कहा कि कुछ दिन पूर्व ही वे 84 वर्ष पूरा किये हैं.
अभी भी वे स्वस्थ हैं. राष्ट्रपति पद से मुक्त होने के बाद उन्होंने भारत के विभिन्न क्षेत्रों की यात्राएं की हैं, पर भारत के बाहर मात्र बांग्लादेश के पुस्तक मेला में गये, जहां उन्होंने बांगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के जीवन पर आधारित पुस्तक पढ़ी और पाया कि शेख हसीना की तकलीफ और उनकी तकलीफ एक जैसी है कि अब और करते नहीं बनता. अब समय नहीं मिलता. कई तरह की बाधाएं हैं. ऐसे उनका मन बचपन की ओर चला जाता है. विश्वविद्यालय के दिन याद आते हैं. जब वह सुबह से शाम तक पुस्तक मेला घूमते थे. पुस्तकों के पन्ने को पलट कर देखते थे.
जानेमाने लेखक समरेश मजुमदार ने कहा कि कई वर्षों पहले प्रणव मुखर्जी विमान से जाते हुए उनका लिखा एक उपन्यास पढ़ रहे थे, दूसरे दिन उसकी तस्वीर अखबारों में छपने पर उनकी दो हजार किताबों की बिक्री हुई थी. इसके लिए वह उनके आभारी हैं. उद्घाटन में जानेमाने बांग्ला कवि शंख घोष के साथ दस अन्य देशों के प्रसिद्ध लेखक व कविजन उपस्थित थे.
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