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लोकसभा चुनाव में महिलाओं के मुद्दे होंगे अहम, सत्ता और संसाधन में भागीदारी सुनिश्चित की जाये : दयामनी बारला

-रजनीश आनंद- रांची : लोकसभा चुनाव 2019 नजदीक है, ऐसे में राजनीतिक पार्टियों के साथ-साथ जनांदोलन के नेताओं ने भी कमर कस ली है. वे एक ओर जहां चुनावी मुद्दों की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट करा रहे हैं, वहीं वे सत्ता में भागीदारी को लेकर भी गंभीर हैं. झारखंड की प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता दयामनी […]

-रजनीश आनंद-

रांची : लोकसभा चुनाव 2019 नजदीक है, ऐसे में राजनीतिक पार्टियों के साथ-साथ जनांदोलन के नेताओं ने भी कमर कस ली है. वे एक ओर जहां चुनावी मुद्दों की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट करा रहे हैं, वहीं वे सत्ता में भागीदारी को लेकर भी गंभीर हैं. झारखंड की प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता दयामनी बारला ने प्रभात खबर डॉट कॉम के साथ बातचीत में कहा कि झारखंड में महिलाओं के मुद्दे हमेशा से उपेक्षित रहे हैं, हर चुनाव में राजनीतिक पार्टियां उनकी अनदेखी करती हैं. लेकिन इस बार हम महिलाओं के मुद्दे को जोर-शोर से उठायेंगे और यह कोशिश करेंगे कि राजनीतिक पार्टियां उन्हें अपने एजेंडे में शामिल करने के लिए मजबूर हो जायें.

दयामनी ने कहा कि महिलाओं के सशक्तीकरण के नाम पर सरकारें वोट तो ले रही हैं, लेकिन आज भी महिलाओं का स्वास्थ्य, उनकी शिक्षा और उन्हें रोजगार उपलब्ध कराने के लिए सरकार के पास कोई पॉलिसी नहीं है. ऐसे में कैसे महिला सशक्तीकरण हो पायेगा. सरकारें सशक्तीकरण के नाम पर महिलाओं को सूकर पालन, बकरी पालन और मुर्गीपालन से जोड़ रही है, लेकिन यह महिला सशक्तीकरण नहीं है. सरकार को चाहिए कि वह महिेलाओं के स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के लिए पॉलिसी बनाये. महिलाओं को शिक्षा के हथियार से मजबूत करें, उनकी बौद्धिक क्षमता बढ़ाये ताकि वह निर्णय के अधिकार को समझे.

झारखंड में महिलाओं का माइग्रेशन भी एक अहम मुद्दा रहा है. इसलिए यह जरूरी है कि इसे प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया जाये. अगर महिलाओं को अपने प्रदेश में शिक्षित किया जाये, उन्हें उपलब्ध संसाधनों में रोजगार उपलब्ध कराया जाये, ताकि उनका माइग्रेशन ना हो. वे अपने राज्य में ही एक खुशहाल जीवन जी सकें. सिर्फ एंटी ट्रैफिकिंग लॉ बना देने से माइग्रेशन नहीं रूकेगा, समस्या के मूल को समझना होगा और उसी अनुसार इसका निदान भी ढूंढना होगा.

राजनीतिक पार्टियां महिलाओं को अवसर देने की बात तो करती हैं, लेकिन जब सत्ता में हिस्सेदारी देने की बात होती है, तो वे पल्ला झाड़ लेते हैं, यह स्थिति ठीक नहीं है. अगर सचमुच महिलाओं को भागीदार बनाना है, तो उन्हें सत्ता और संसाधन दोनों में हिस्सेदारी देने होगी, तभी महिलाओं का समग्र विकास संभव है. आज राजनीति में महिलाओं की संख्या बहुत ही कम है, जो महिलाएं राजनीति में हैं, वे अपने परिवार की वजह से हैं, पति, पिता और ससुर की विरासत संभाल रही हैं. किसी भी योग्य महिला उम्मीदवार को राजनीतिक पार्टियां टिकट नहीं दे रही हैं. बात अगर झारखंड के सांसदों और विधायकों की हो, तो देखें कि कितनी ऐसी महिला है, जो सामान्य परिवार से आती हैं.

इस बार के चुनाव में महिलाओं के मुद्दों को राजनीतिक पार्टियों के एजेंडे में शामिल करवाने के लिए दयामनी बारला अभियान शुरू कर रही हैं. उन्होंने बताया कि इस बार के चुनाव में वे महागठबंधन का समर्थन करेंगी, साथ ही वे चुनाव लड़ने के मूड में भी हैं. बारला ने बताया कि हम महागठबंधन का समर्थन तो कर रहे हैं, लेकिन वे किसी भी उम्मीदवार को अगर टिकट देंगे तो हम उनका समर्थन नहीं करेंगे.

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