सियासी तौर पर हम कितने सयाने हुए, वह चुनावी नतीजों से जाहिर नहीं होता. एक जमाना था जब सिगरेट की कीमतों से बजट आकलन होता था, फिर टीवी और बाद में कार और मोबाइल की कीमतें पैमाना तय करने लगीं. नये भारत का बजट गर्भवती महिलाओं, छोटे कामगारों और किसानों के भत्ते, पेंशन और सम्मान निधि पर सिमट गया. तालियां तो बटोर ले जाती हैं टैक्स रियायतें. इस बार तालियां खूब बजीं.
पांच लाख की कमाई, डेढ़ लाख की छूट और पचास हजार की कटौती, घर कर्जे, बीमारी, बीमा कुल मिला कर बजट बम-बम जो था. शोर-शराबे में वैधानिक चेतावनी ही दब गयी. वैतनिक आय से पचास हजार कटौती छोड़ दें, तो अगली छूट के लिए 6.5 लाख की कमाई में थोड़ी भी बढ़त फिर पुराने कर ढांचे पर ले आयेगी, यानी लौट कर बुद्धू घर को आये.
एमके मिश्रा, रातू, रांची