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रोजगार का भविष्य

वर्तमान कौशल और दक्षता भविष्य के रोजगार के अवसरों के अनुकूल नहीं हैं और जो नयी क्षमता हासिल की जा रही है, वह भी जल्दी ही अनुपयुक्त हो जायेगी. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने अपने विशेष रिपोर्ट में इस चुनौती का रेखांकन किया है. भारत समेत पूरी दुनिया अर्थव्यवस्था के तेजी से बदलते स्वरूप के कारण […]

वर्तमान कौशल और दक्षता भविष्य के रोजगार के अवसरों के अनुकूल नहीं हैं और जो नयी क्षमता हासिल की जा रही है, वह भी जल्दी ही अनुपयुक्त हो जायेगी. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने अपने विशेष रिपोर्ट में इस चुनौती का रेखांकन किया है. भारत समेत पूरी दुनिया अर्थव्यवस्था के तेजी से बदलते स्वरूप के कारण बेरोजगारी की समस्या से जूझ रही है.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ऑटोमेशन, मशीन और तकनीक के तेजी से बढ़ते दायरे ने सेवाओं, सुविधाओं तथा सामानों के उत्पादन और वितरण में सहूलियत तो पैदा की है, लेकिन इनकी वजह से मानव श्रम की मांग भी कम होती जा रही है. बीते दिनों दावोस में विश्व आर्थिक फोरम के सम्मेलन में भाग ले रहे अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के शीर्ष नेतृत्व ने भी उत्कृष्ट तकनीक से लैस मशीनीकरण से बढ़ती बेरोजगारी पर चिंता जतायी है.

श्रम संगठन की रिपोर्ट में 187 सदस्य देशों से सामाजिक न्याय, विषमता घटाने और कामकाज की बेहतरी पर आधारित ‘मनुष्य-केंद्रित एजेंडा’ बनाने का आह्वान किया है. अब सवाल यह है कि क्या राजनीतिक और आर्थिक नेतृत्व भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है, या फिर बढ़ती बेरोजगारी की समस्या के साथ सरकारों और उद्योग जगत का रवैया वैसा ही रहेगा, जैसा कि जलवायु परिवर्तन को लेकर है?

तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल और आर्थिक बढ़ोतरी की जरूरत मौजूदा सभ्यता के सच हैं. लेकिन, रिपोर्ट का यह कहना भी महत्वपूर्ण है कि रोजगार के मसले को तकनीक और तकनीकी विशेषज्ञों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है. विकास का लक्ष्य लोगों के जीवन को समृद्ध बनाना है. इस प्रयास में समान अवसरों को सुनिश्चित किये बिना न्याय और शांति की स्थापना संभव नहीं है. भारत से लेकर फ्रांस तक में रोजगार और आमदनी के सवाल पर आंदोलन हो रहे हैं. अमेरिका जैसे कुछ देशों द्वारा अपनायी जा रही संरक्षणवादी नीतियों के पीछे भी रोजगार एक बड़ा तर्क है.

इसी के परिणामस्वरूप व्यापार युद्ध जैसे प्रकरण हमारे सामने हैं. विश्व व्यापार संगठन के नियमों और जलवायु परिवर्तन को रोकने के उपायों पर विकसित और विकासशील देशों में तकरार का कारण भी यही है कि हर देश अपनी आर्थिक समस्याओं के हिसाब से नीतियों को स्वीकार या अस्वीकार कर रहा है. रोजगार न होने से वंचना से ग्रस्त लोगों के लिए सार्वभौमिक बुनियादी आमदनी मुहैया कराने का मुद्दा अक्सर चर्चा में रहता है. जैसा कि श्रम संगठन के प्रमुख गाइ राइडर ने कहा है, काम करना मनुष्य के जीवन का अभिन्न हिस्सा है और बिना काम के माहौल में आमदनी की गारंटी हमारा उद्देश्य नहीं होना चाहिए.

भारत के साथ अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं में ज्यादातर कामगार असंगठित क्षेत्र में हैं तथा छोटे और मंझोले उद्योगों में विकास की बहुत संभावनाएं हैं. सरकार, समाज और उद्योग जगत को इन आयामों को प्राथमिकता देकर रोजगार के भविष्य का आधार बनाना चाहिए.

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