डॉ नेहा सिन्हा
एसोसिएट फेलो, विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन
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भारत तथा दक्षिण अफ्रीका के पारस्परिक संबंधों की जड़ें इतिहास की गहराइयों तक फैली हुई हैं. चूंकि दोनों देशों की कहानियां कई उतार-चढ़ावों से होकर गुजरी हैं, इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि इन दोनों देशों के संबंध स्नेह और सहानुभूति से सहेजे जायें, ताकि दोनों के बीच का बंधन और भी प्रगाढ़ हो सके.
हालांकि, आधुनिक युग एवं खासकर वर्तमान कालखंड में इन दोनों के बीच का जुड़ाव तेजी से परवान चढ़ा है, जिसमें इस तथ्य का एक बड़ा योगदान है कि प्रधानमंत्री पद पर आने के पश्चात नरेंद्र मोदी दो बार दक्षिण अफ्रीका की यात्रा कर चुके हैं.
चूंकि पूरा विश्व इस वर्ष महात्मा गांधी के जन्म की 150वीं वर्षगांठ मना रहा है, इसलिए दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इस वर्ष गणतंत्र दिवस के अवसर पर नयी दिल्ली में होनेवाले मुख्य राजकीय समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में सुशोभित करने का उन्हें दिया गया आमंत्रण स्वीकार कर लिया.
पिछले वर्ष के अंत में अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में संपन्न जी20 शिखर सम्मेलन में जब दोनों नेता मिले, तो उन्होंने मोदी को अपनी इस स्वीकृति की सूचना दी. वैसे इस अवसर पर मुख्य अतिथि बनने हेतु पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को आमंत्रित किया गया था, पर उन्होंने व्यस्तताओं की वजह से इसे स्वीकारने में अपनी असमर्थता व्यक्त की थी.
यह भी बताया गया है कि राष्ट्रपति रामफोसा ने वाराणसी में चल रहे प्रवासी भारतीय सम्मेलन में भी सहभागी होना स्वीकार किया है. प्रवासी भारतीय दिवस का आयोजन महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका से लौटकर भारत आने की स्मृति में और विदेशों में बसे प्रवासी भारतीयों के योगदान का जश्न मनाने हेतु किया जाता है.
राष्ट्रपति रामफोसा दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति जैकब जुमा के त्यागपत्र देने के बाद सत्ता में आये थे, जिसके पश्चात वहां घोटालों तथा कुशासन के एक युग का अंत संभव हो सका, क्योंकि जुमा प्रशासन पर भ्रष्टाचार, धन शोधन तथा रिश्वतखोरी के कई आरोप लगे थे.
भारत और अफ्रीका के संबंध सदियों पीछे प्रारंभ हुए और भारत ने रंगभेद के विरुद्ध उसके लंबे आंदोलन में भी उसका साथ दिया. आज दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मूल के लगभग 15 लाख लोग निवास करते हैं, जो वहां की जनसंख्या का लगभग 3 प्रतिशत है. दोनों देश आपस में तो अत्यंत निकट तथा सद्भावपूर्ण द्विपक्षीय संबंध साझा करते ही हैं, यह संबंध कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों की साझी सदस्यता तथा उनमें दोनों के सक्रिय सहयोग तक भी विस्तृत है. इसके उदाहरण में आइबीएसए (भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका) एवं ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन एवं दक्षिण अफ्रीका) जैसे संगठनों को लिया जा सकता है.
वर्ष 2018 में ब्रिक्स का दसवां शिखर सम्मेलन दक्षिण अफ्रीका में ही आयोजित हुआ था, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी ने शिरकत की. इस सम्मेलन में उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में शांति तथा प्रगति हेतु भारत की प्रतिबद्धता दोहराते हुए दक्षिण-दक्षिण सहयोग पर बल दिया था. दोनों नेताओं ने संयुक्त रूप से एक डाक टिकट भी जारी किया, जिसे गांधी एवं मंडेला की विरासत के सम्मान में निकाला गया था.
इसके पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2016 में दक्षिण अफ्रीका की यात्रा की थी, जहां उन्होंने आठ समझौतों को अंतिम रूप देते हुए सूचना संचार प्रौद्योगिकी, पर्यटन, खेल, संस्कृति, आधारभूत नवोन्मेष, नवीकरणीय ऊर्जा, दृश्य-श्रव्य तथा वीजा सरलीकरण प्रक्रिया के क्षेत्रों में परस्पर सहयोग के विस्तारीकरण की शुरुआत की थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दक्षिण अफ्रीका को ‘मदीबा (नेल्सन मंडेला) के देश’ तथा ‘महात्मा गांधी की कर्मभूमि’ की संज्ञा दी. इस अवसर पर उन्होंने भारतीय समुदाय को भी संबोधित किया और यह भी उजागर किया कि पिछले दस वर्षों में दोनों राष्ट्रों के बीच उभयपक्षीय व्यापार में 300 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो स्पष्ट तौर पर दक्षिण अफ्रीका में भारत की तीव्र व्यापारिक दिलचस्पी का संकेत करती है.
अब राष्ट्रपति रामफोसा द्वारा भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में प्रतिभागिता स्वीकार करने से दक्षिण अफ्रीका के साथ हमारे संबंधों के पहले से भी ज्यादा मजबूत बनने की आशाएं उज्ज्वल हो गयी हैं. दोनों देशों के लिए यह एक और ऐसा मौका है, जब वे कई अतिरिक्त क्षेत्रों में सहयोग के संबंध में विचार-विमर्श कर सकते हैं.
रामफोसा द्वारा स्वास्थ्य, कौशल विकास तथा डिजिटल क्षेत्रों को उन प्राथमिकताओं के अंतर्गत रखा गया है, जिनमें वे भारत के साथ संबंध बढ़ाना चाहते हैं. रामफोसा नयी दिल्ली में भारतीय कारोबारी समुदाय से भी इस मुद्दे पर विचार-विमर्श हेतु मिलेंगे कि भारत किस तरह दक्षिण अफ्रीका के सहयोग से अफ्रीका के अन्य देशों से भी अपने व्यापारिक संबंधों का संचालन तथा उनका विकास कर सकता है.
हम यह आशा कर सकते हैं कि राष्ट्रपति रामफोसा की भारत यात्रा दक्षिण अफ्रीका के साथ भारत के संबंधों को और भी अधिक गहराई देते हुए दोनों देशों के लिए फलप्रद होगी, क्योंकि इस साझेदारी में अपार संभावनाएं छिपी हैं. यह अवसर दोनों देशों के बीच कारोबार के साथ ही दोनों देशों की जनता के बीच के संबंधों की बढ़ोतरी के लिए भी स्वर्णिम सिद्ध हो सकेगा.
(अनुवाद: विजय नंदन)