मुकुल श्रीवास्तव
टिप्पणीकार
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प्लान बड़ा इंटरेस्टिंग शब्द है. आज प्लान को बगैर प्लान किये हुए समझने की कोशिश करते हैं. आजकल प्लानिंग का जमाना है, वह चाहे फाइनेंशियल प्लानिंग हो या फैमिली, प्लान तो हम सब करते हैं.
जो प्लानिंग का आधार नहीं बनाते, उन्हें डे ड्रीमर कहते हैं. ये सिर्फ योजनाएं बनाते रहते हैं, पर प्रैक्टिस में कुछ नहीं कर पाते.अब मोबाइल को ही लीजिये, कंपनी के प्लान बहुत सारे होते हैं, पर हम जरूरत और जेब के हिसाब से अपना प्लान चुनते हैं.
प्लानिंग कोई भी हो, सब एक-दूसरे से इंटरलिंक्ड ही होती हैं. अगर आपने फैमिली की प्लानिंग की है, तो फाइनेंशियल प्लानिंग का कुछ हिस्सा अपने आप हो जायेगा. भई बच्चे कम तो, उन पर होनेवाला खर्चा कम मतलब बचत ज्यादा. तो यह बात तो साबित हो गयी कि प्लानिंग करनी चाहिए, पर कैसे की जाये, यही मामला बेहद महत्वपूर्ण है.
वैसे मैंने अक्सर देखा है कि लोग कॉल या मैसेज न कर पाने का कारण बैलेंस का न होना बताते हैं. ऐसा कभी-कभार होता तो चल जाता, पर ऐसा अगर अक्सर हो रहा है, तो मामला गड़बड़ है. कभी आपने सोचा कि ऐसा क्यों होता है? इसके दो कारण हो सकते हैं. या तो आपकी प्लानिंग ठीक नहीं है या आपकी प्राथमिकता में फोन रीचार्ज करना उतना जरूरी नहीं है.
अगर आप पढ़ाई कर रहे हैं, तो लेट नाइट चैट प्लान आपके किसी काम का नहीं. अब अगर सस्ते के चक्कर में मोबाइल का लेटनाइट चैट प्लान ले लेंगे, तो जाहिर है आपके बाकी के प्लान जैसे कि पढ़ाई और भविष्य के अन्य प्लान गड़बड़ायेंगे. यानी या तो खुद को बदलिए या प्लान को.
प्लानिंग करते वक्त अपनी जरूरत और सीमाओं के बीच बैलेंस जरूर बनाइए. हालांकि, यह बात आसान नहीं है. कई बार हमारे प्लान की सफलता या विफलता दूसरे फैक्टर्स पर भी निर्भर करती है. और जब ऐसा होता है, तो समझ लीजिए कि आपके लाख चाहने के बाद भी ऊपर वाला आपके प्लान को पास नहीं कर रहा है. इसका मतलब यह न निकालें कि आपके चाहने से क्या होता है, या प्लान करने से क्या फायदा है. प्लान कीजिए. अगर सफल होते हैं, तो उसका मजा लीजिए और फेल होते हैं, तो फिर नया प्लान कीजिए.
अपनी प्लानिंग को विश्लेषित कीजिए कि गड़बड़ कहां हुई. आखिर हम अपने सपनों को इतनी आसानी से थोड़ी न छोड़ सकते हैं, पर उन सपनों पर वास्तविकता से संबंध जरूर रखें. वास्तविकता से मतलब आप अपनी आय के हिसाब से ही बचत करते हैं. कभी ऐसा नहीं हो सकता कि आपकी आय कम हो और बचत ज्यादा. कुछ भी प्लान करते वक्त इस बात का ध्यान जरूर रखिए कि आप जो कुछ सोच रहे हैं, वह वास्तविकता के कितना करीब है.
अगर आपकी देर रात पढ़ने की आदत है, तो दिन में पढ़ने की प्लानिंग मत करिए. हां, दिन में बाकी के काम के साथ थोड़ा सो भी लीजिए. मैं आपको छोड़े जा रहा हूं कुछ नया प्लान करने के लिए, क्योंकि आनेवाला दिन आज से बेहतर इसी प्लान के साथ हो सकता है.