रविभूषण
वरिष्ठ साहित्यकार
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दो ब्रिटिश रसायनज्ञ (केमिस्ट) प्रो जेएल सीमनसन और पीएस मैकमहन ने सबसे पहले भारत में ‘ब्रिटिश एसोसिएशन फॉर द एडवांसमेंट ऑफ साइंस’ (1831) की तरह भारत में वैज्ञानिक शोध-कार्य के लिए एक वार्षिक बैठक की आवश्यकता समझकर ‘इंडियन साइंस कांग्रेस एसोसिएशन’ का गठन किया, जिसका मुख्यालय कलकत्ता था.
विज्ञान कांग्रेस संस्था के गठन के पीछे के कई उद्देश्यों में एक वार्षिक कांग्रेस भी था. साल 1914 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस का पहला सम्मेलन (15-17 जनवरी, 1914) एशियाटिक सोसाइटी, कलकत्ता के परिसर में हुआ था.
कलकत्ता विवि के तत्कालीन कुलपति सर आशुतोष मुखर्जी ने इसकी अध्यक्षता की थी. इस कांग्रेस में देश और बाहर के वैज्ञानिकों की कुल संख्या 105 थी और इसके छह खंडों में कुल 35 पेपर पढ़े गये थे. साल 1938 में इसकी रजत जयंती मनायी गयी, 1963 में स्वर्ण जयंती मनी और हीरक जयंती (चंडीगढ़ 3-9 जनवरी, 1973) के अवसर पर 12 खंडों में ‘फिफ्टी ईयर्स ऑफ साइंस इन इंडिया’ और ‘ए शाॅर्ट हिस्ट्री ऑफ द इंडियन साइंस कांग्रेस एसोसिएशन’ प्रकाशित हुआ था.
विज्ञान कांग्रेस में वैज्ञानिकों, प्रतिनिधियाें, नोबेल पुरस्कार से सम्मानित वैज्ञानिकों की संख्या बढ़ती गयी है. प्रत्येक वर्ष विज्ञान कांग्रेस का विषय भी बदलता रहा है. अब तक 106 भारतीय विज्ञान कांग्रेस संपन्न हो चुकी है.
इस वर्ष भारतीय विज्ञान कांग्रेस का 106वां अधिवेशन पंजाब के फगवाड़ा के लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में 3 से 7 जनवरी तक संपन्न हुआ. प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जहां वैज्ञानिक दृष्टि और चेतना संपन्न थे, वहां वर्तमान प्रधानमंत्री की सोच-समझ अवैज्ञानिक है.
नेहरू को ‘विज्ञान का मित्र’ कहा जाता है. वे पहले गैर-वैज्ञानिक थे, जिन्होंने 26 दिसंबर, 1937 को भारतीय विज्ञान कांग्रेस की अध्यक्षता की थी और अपने अध्यक्षीय भाषण में यह कहा था कि सामाजिक प्रासंगिक मुद्दों-भूख और गरीबी के समाधान की क्षमता विज्ञान में है. नेहरू ने अपने कार्यकाल में वैज्ञानिकों को यह स्वतंत्रता दी थी कि वे संस्थाओं का निर्माण करें, जो भारत में वैज्ञानिक शोध का मंदिर बने. होमी जे भाभा, सर सीवी रमण, सतीश धवन, नलिनी रंजन सरकार, जेसी घोष, मेघनाद साहा, एसएस भटनागर जैसे वैज्ञानिक देश में सर्वोत्तम संस्थाओं के निर्माण में स्वतंत्र थे.
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना (1954) के समय नेहरू ने एक साथ वैज्ञानिकों और सामान्यजनों को संबोधित किया था कि स्वतंत्र भारत को समर्थ और शक्ति संपन्न बनाने के लिए जिस सुदृढ़ आधार की आवश्यकता है, वह विज्ञान से ही संभव है. इंदिरा चौधरी की पुस्तक ‘ग्रोइंग द ट्री ऑफ साइंस : होमी भाभा एंड द टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च’ से यह जाना जा सकता है कि भारत में किस तरह वैज्ञानिक विकास में कुछ वैज्ञानिकों और संस्थाओं की कितनी बड़ी भूमिका है. नेहरू के पास एक ‘विजनरी’ दृष्टि थी.
उनके वैज्ञानिक सलाहकारों में से एक ब्रिटिश भौतिकीविद् और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित पैट्रिक ब्लैकेट थे, जिन्होंने नेहरू के निधन के बाद उनकी बौद्धिक क्षमता और वैज्ञानिक स्वभाव की प्रशंसा की.
102वीं विज्ञान कांग्रेस से इस वर्ष 106वीं विज्ञान कांग्रेस पर एक सरसरी नजर डालने के बाद कई चीजें साफ होती हैं. प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने पहली बार मुंबई में आयोजित 102वीं विज्ञान कांग्रेस (3-7 जनवरी, 2015) का उद्घाटन किया था. विज्ञान कांग्रेस में अवैज्ञानिक बातों की चर्चा पहले नहीं थी.
प्राचीन भारतीय विज्ञान पहले विज्ञान कांग्रेस के केंद्र में नहीं था. मोदी ने वैज्ञानिकों के समक्ष गणेश को प्लास्टिक सर्जरी से जोड़ा था. 102वीं कांग्रेस में वेदों पर पेपर पढ़े गये थे. भारतीय चिकित्सा, गणित और शल्य क्रिया पर विचार आरंभ हुआ. निश्चित रूप से भारतीय विज्ञान और तकनीक पर विचार किया जाना चाहिए, पर क्या आज के भारत में उससे कोई दिशा-दृष्टि मिलती है, या वह मात्र प्राचीन भारत का गुणगानभर है? विज्ञान कांग्रेस की थीम और स्थान भी बदलने लगे.
साल 2005 में पंजाब के फगवाड़ा में लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी की स्थापना हुई. छह सौ एकड़ का इसका कैंपस है और इसी में 106वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस (3-7 जनवरी, 2019) संपन्न हुई, जिसमें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित प्रो एब्रम हेर्शको, थाॅमस सुडाफ और प्रो डेकन हलदानी की उपस्थिति में अवैज्ञानिक बातें कही गयीं.
आंध्र विवि के कुलपति प्रोफेसर जे नागेश्वर राव ने कौरवों को टेस्टट्यूब बेबी माना. राव अकार्बनिक रसायन के प्रोफेसर हैं. इस विज्ञान कांग्रेस में रावण के 24 विमानों की बात कही गयी और बताया गया कि राम के पास गाइडेड मिसाइलें थीं. एक शोधकर्ता ने आइंस्टाइन, न्यूटन, स्टीफन हॉकिंग सबको किनारे कर दिया.
यह है आज का विज्ञान कांग्रेस, जिसमें शामिल अनेक वैज्ञानिक संघी दृष्टि और समझ से संचालित हैं. यूरोप में मध्यकाल में विज्ञान की लड़ाई धर्म और चर्च से थी. इक्कीसवीं सदी के भारत में विज्ञान को धर्म और मिथक के हवाले किया जा रहा है. अब बाल विज्ञान कांग्रेस और महिला विज्ञान कांग्रेस भी विज्ञान कांग्रेस के अंतर्गत हैं. इस वर्ष महिला विज्ञान कांग्रेस का उद्घाटन स्मृति ईरानी ने किया है. नेहरू के ‘माॅडर्न इंडिया’ और मोदी के ‘न्यू इंडिया’ का यह फर्क है.