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नारी सम्‍मान और झारखंडी संस्‍कृति का प्रतीक ”टुसू”, जानें पर्व मनाये जाने के पीछे की कहानी

।। अरविंद मिश्रा ।। रांची : टुसू पर्व झारखंड के आदिवासियों की सबसे महत्वपूर्ण पर्व है. यह जाड़ों में फसल कटने के बाद 15 दिसंबर से लेकर मकर संक्राति तक लगभग एक महीने तक मनाया जाता है. टूसू का शाब्दिक अर्थ कुंवारी है. वैसे तो झारखंड के सभी पर्व-त्योहार प्रकृति से जुड़े हुए हैं, लेकिन […]

।। अरविंद मिश्रा ।।

रांची : टुसू पर्व झारखंड के आदिवासियों की सबसे महत्वपूर्ण पर्व है. यह जाड़ों में फसल कटने के बाद 15 दिसंबर से लेकर मकर संक्राति तक लगभग एक महीने तक मनाया जाता है. टूसू का शाब्दिक अर्थ कुंवारी है. वैसे तो झारखंड के सभी पर्व-त्योहार प्रकृति से जुड़े हुए हैं, लेकिन टुसू पर्व का महत्व कुछ और ही है.

यह पर्व झारखंड के अलावा पश्चिम बंगाल के पुरुलिया, मिदनापुर व बांकुड़ा जिलों, ओड़िशा के क्योंझर, मयूरभंज, बारीपदा जिलों में मनाया जाता है. इस उत्सव को अगहन संक्रांति (15 दिसंबर) से लेकर मकर संक्रांति (14 जनवरी) तक इसे कुंवारी कन्याओं के द्वारा टुसू पूजन के रूप में मनाया जाता है. घर की कुंवारी कन्याएं प्रतिदिन संध्या समय में टुसू की पूजा करती हैं. अगहन संक्रांति के दिन गांव की कुंवारी कन्याएं टुसू की मूर्ति बनाती हैं. इसी मूर्ति के चारों ओर सजावट करती हैं और फिर धूप, दीप के साथ टुसू की पूजा करती हैं.

* नारी सम्मान का पर्व टुसू

टुसू पर्व को नारी सम्मान के रूप में भी मनाया जाता है. लगभग एक माह तक चलने वाले इस पर्व के दौरान कुंवारी कन्‍याओं की भूमिका सबसे अधिक होती है. कुंवारी कन्याएं टुसू की मूर्ति बनाती हैं और उसकी सेवा-भावना, प्रेम-भावना, शालीनता के साथ पूजा करती हैं. पूजा के दौरान लड़कियां विभिन्न प्रकार के टुसू गीत भी गाती हैं. इसमें कुंवारी लड़कियों की मां, चाची, फुआ, मौसी आदि सहयोग करती हैं.मकर संक्रांति के दिन टुसू पर्व मानाया जाता है और फिर उसके अगले दिन इसे नदी में प्रवाहित किया जाता है.

मकर संक्रांति के एक दिन पहले पुरुषों द्वारा बिना बाजी का मुर्गोत्सव मनाया जाता है जिसे बाउड़ी कहा जाता है. इस उत्सव से लौटने के उपरांत सारी रात लोग गाते- बजाते हैं. सुबह सभी ग्रामीण मकर स्नान के लिए नदी पहुंचते हैं. स्नान के दौरान गंगा माई का नाम लेकर मिठाई भी बहाते हैं. उत्‍सव और मेले का आनंद लेने के बाद टुसू का विसर्जन गाजे-बाजे के साथ कर दिया जाता है.

* टुसू पर्व मनाये जाने के पीछे की कहानी

टुसू पर्व को धूमधाम से मनाने के पीछे कई कई कहानियां प्रचलित हैं. राजा राम महतो ने बताया, टुसू एक गरीब कुरमी किसान की अत्यंत सुंदर कन्या थी. धीरे-धीरे संपूर्ण राज्य में उसकी सुंदरता का बखान होने लगा. एक क्रूर राजा के दरबार में भी खबर फैल गयी. राजा को लोभ हो गया और कन्या को प्राप्त करने के लिए उसने षड्यंत्र रचना प्रारंभ कर दिया. उस वर्ष राज्य में भीषण अकाल पड़ा था. किसान लगान देने की स्थिति में नहीं थे. इस स्थिति का फायदा उठाने के लिए राजा ने कृषि कर दोगुना कर दिया. गरीब किसानों से जबरन कर वसूली का राज्यादेश दे दिया गया. पूरे राज्य में हाहाकार मच गया.

टुसू ने किसान समुदाय से एक संगठन खड़ा कर राजा के आदेश का विरोध करने का आह्वान किया.राजा के सैनिकों और किसानों के बीच भीषण युद्ध हुआ. हजारों किसान मारे गये. टुसू भी सैनिकों की गिरफ्त में आने वाली थी. उसने राजा के आगे घुटने टेकने के बजाय जल-समाधि लेकर शहीद हो जाने का फैसला किया और उफनती नदी में कूद गयी. टुसू की इस कुरबानी की याद में ही टुसू पर्व मनाया जाता है और टुसू की प्रतिमा बनाकर नदी में विसर्जित कर श्रद्धांजलि अर्पित किया जाता है. टुसू कुंवारी कन्‍या थी इसलिए इस पर्व में कुंवारी लड़कियों की ही भूमिका अधिक होती है.

– टुसू गीत –

अगहन सांकराइत कर शुभ दिनेटुसुक थापना करोब गीत गाने।।

बांसेक टुपलाय यापना करी- साजाय हेतेइक फुल माहने,

नित-नित सांझेक बेराय- संझा दिहोक खुश मने।।

आगहन सांकराइत कर शुभ दिनेटुसुक थापना करोब गीत गाने।।

टुसूके नित भोग देबिहोक – बेश बेश आर मिष्ठाने,

मास भइर टुसु कर पूजा- खुशी सउब जने-जने।।

आगहन सांकराइत कर शुभ दिनेटुसुक थापना करोब गीत गाने।।

टुसुकर गुणोगान टा-मने पड़ेइक जीवनेसारा दिनो टुसू गीते- मातल आहे देवेने।।

आगहन सांकराइत कर शुभ दिनेटुसुक थापना करोब गीत गाने।।

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