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मिशन 2019 : पूर्णिया लोकसभा सीट में राजग व महागठबंधन में जोरदार मुकाबले के हैं आसार

पूर्णिया लोकसभा सीट पर दो की लड़ाई में तीसरा कोण बनाकर मैदान मारने की गुपचुप चल रही तैयारी पटना : पूर्णिया लोकसभा सीट राज्य के कुछ चर्चित सीटों में से एक है. इस सीट पर पटना-दिल्ली दोनों की बराबर नजर बनी रहती है. विकास के नारे के साथ जहां राजग इस बार यहां उतरेगा, वहीं […]

पूर्णिया लोकसभा सीट पर दो की लड़ाई में तीसरा कोण बनाकर मैदान मारने की गुपचुप चल रही तैयारी

पटना : पूर्णिया लोकसभा सीट राज्य के कुछ चर्चित सीटों में से एक है. इस सीट पर पटना-दिल्ली दोनों की बराबर नजर बनी रहती है. विकास के नारे के साथ जहां राजग इस बार यहां उतरेगा, वहीं लोकल व अन्य मुद्दाें को लेकर महागठबंधन मैदान में ताल ठोंकेगा. इस सबसे इतर एक तीसरा विकल्प भी तैयार है, जो कुछ नामों पर वोट इकट्ठा करेगा. इस सबके बाद भी इस बार राजग व महागठबंधन के बीच ही मुख्य मुकाबले के आसार हैं.

हालांकि, इस दो की लड़ाई में तीसरा कोण बनाकर मैदान मारने की भी गुपचुप तरीके से तैयारी चल रही है. यह कितना सफल हो पायेगा यह अभी भविष्य के गर्भ में है.

पिछली बार यह सीट भाजपा से जदयू ने छीनी थी : पिछली बार यह सीट भाजपा से जदयू ने छीना था. लेकिन, तब जदयू और भाजपा अलग-अलग थे. इस बार दोनों साथ हैं. यही वजह है कि इस सीट पर दोनों का दावा है. न तो जदयू पीछे हटना चाहता हैऔर न भाजपा छोड़ना चाहती है.

एक तरफ सीटिंग होने के नाते जदयू सांसद संतोष कुशवाहा एक तरह से निश्चिंत हैं, तो दूसरी तरफभाजपा के पूर्व सांसद उदय सिंह भी काफी मुखर हैं. दूसरी ओर महागठबंधन में भी इस सीट को लेकर कम मगजमारी नहीं चल रही है. अभी यह तय नहीं हो पाया है कि यह सीट किसके खाते में जायेगी.

पिछली बार कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार खड़ा किया था. इस बार महागठबंधन के कमोवेश सभी घटक दलों की नजर इस पर टिकी हुई है. कई मजबूत नेता इन दलों से लगातार संपर्क में हैं.

कांग्रेस व राजद की मजबूत दावेदारी के बीच पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की हम की भी इस सीट पर नजर है. इस सबसे अलग एक फैक्टर सांसद पप्पू यादव भी हैं. चर्चा है कि उम्मीदवार कोई हो पर लड़ाई राजग और महागठबंधन के बीच ही होगा.

1952 में फणि गोपाल सेन बने थे पहले सांसद

1952 से 1971 तक यह क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ माना जाता था. फणि गोपाल सेन यहां के पहले सांसद बने थे. उन्होंने 1962 तक इस क्षेत्र का लगातार प्रतिनिधित्व किया. 1971 में मो ताहिर कांग्रेस की टिकट पर सांसद चुने गये. 1977 में जनता पार्टी की लहर में यह सीट कांग्रेस की झोली से छीन गयी.

लखनलाल कपूर यहां के गैर कांग्रेसी सांसद बने, लेकिन 1980 में यह सीट फिर से कांग्रेस की झोली में चली गयी. माधुरी सिंह 1980 से 1989 तक यहां की सांसद रहीं. 1989 में जनता दल के टिकट पर मो तस्लीमउद्दीन इस सीट से विजयी हुए. 1996 में सपा की टिकट पर राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव एमपी बने.

1998 में जयकृष्ण मंडल ने पहली बार भाजपा का परचम लहराया और सांसद बने. 1999 में राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव निर्दलीय चुनाव जीतकर एमपी बने. 2004 से 2009 तक लगातार दो बार भाजपा से उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह ने यहां का प्रतिनिधित्व किया. 2014 में जदयू के टिकट पर संतोष कुशवाहा सांसद चुने गये. यादव और अल्पंख्यक मतों की गोलबंदी पर ही हार-जीत का फैसला निर्भर है. हालांकि, अतिपिछड़ी जातियां भी एक ताकत के तौर पर यहां स्थापित हैं.

इस सीट में शामिल हैं छह विधानसभा क्षेत्र

1.कसबा

2.बनमनखी (सु)

3.रूपौली

4.पूर्णिया

5.कोढ़ा (सु.)

6.धमदाहा

इनपुट : अरुण कुमार, पूर्णिया

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