- 190एमसीएम 341 मीटर डैम की कुल संग्रहण क्षमता
- 819.60मीटर बराज की लंबाई
- 11.81 किलोमीटर (केवल झारखंड में) लेफ्ट कैनाल की लंबाई
- 100.29हेक्टेयर वन भूमि
- 08 कुल प्रभावित गांव
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मंडल परियोजना : चार दशक बाद खुला विकास का द्वार
अविनाश, मेदिनीनगर : मंडल परियोजना 1972 में शुरू हुई थी, तब बिहार और झारखंड एक था. एकीकृत बिहार के जमाने में शुरू हुई परियोजना के अवशेष कार्य का शिलान्यास तब हो रहा है, जब झारखंड बने 18 साल हो गये. चूंकि बिहार व झारखंड अब दो अलग-अलग प्रांत हैं, इसलिए जब इस परियोजना के अवशेष […]
अविनाश, मेदिनीनगर : मंडल परियोजना 1972 में शुरू हुई थी, तब बिहार और झारखंड एक था. एकीकृत बिहार के जमाने में शुरू हुई परियोजना के अवशेष कार्य का शिलान्यास तब हो रहा है, जब झारखंड बने 18 साल हो गये. चूंकि बिहार व झारखंड अब दो अलग-अलग प्रांत हैं, इसलिए जब इस परियोजना के अवशेष कार्य की आधारशिला रखी जा रही है, तब लोगों के जेहन में यह सवाल भी उठ रहा है कि आखिर उनके हिस्से में इसका कितना लाभ आयेगा. इसी को लेकर लोग अपने-अपने दृष्टिकोण से लाभ व नुकसान को देख रहे हैं.
लेकिन इन सब के बीच यदि देखा जाये, तो सकारात्मक यह है कि 45 वर्षों से रुकी परियोजना पर काम शुरू हो रहा है. जिसकी आधारशिला रखने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं पलामू आ रहे हैं.
प्रधानमंत्री के रूप में श्री मोदी का यह दूसरा पलामू दौरा है. मंडल परियोजना से पलामू, गढ़वा के साथ-साथ बिहार के औरंगाबाद, जहानाबाद, अरवल के किसानों को लाभ मिलेगा. इसी बात को लेकर पलामू में चर्चा भी चल रही है कि परियोजना में पानी झारखंड में स्टॉक हो रहा है और इसका सर्वाधिक लाभ बिहार को मिलने वाला है.
यद्दपि जो पनबिजली परियोजना से 24 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा, उसका सीधा लाभ पलामू प्रमंडल के तीनों जिले को मिलेगा. पलामू के मोहम्मदगंज व हुसैनाबाद के इलाके के खेतों को पानी भी मिलेगा.
जानकारों की मानें तो मंडल परियोजना से काफी हद तक पलामू को जल संकट से भी मुक्ति मिलेगी. पलामू की लाइफ लाइन जो गर्मी शुरू होते ही सूख जाती है, इस स्थिति से भी निजात मिलेगी. विरोध व अवरोध के बीच इस परियोजना का शिलान्यास हो रहा है. एकीकृत बिहार के जमाने में विकास के दृष्टिकोण से उपेक्षित इलाके के रूप में पलामू की पहचान थी.
लेकिन मंडल परियोजना के शिलान्यास के माध्यम से एक बार भी पलामू चर्चा में आया है. उम्मीद की जानी चाहिए कि केंद्र इस प्रमंडल के विकास के लिए गंभीर होगी. लोग इस बात को स्वीकार भी करते हैं कि सरकार ने लंबित इस परियोजना को मंजूरी देकर एक बेहतर काम किया है. पलामू को फोकस एरिया में रखा गया है.
गौरतलब हो कि पलामू देश के उन 115 आकांक्षी जिलों में शामिल है, जो विकास के मामले में पीछे है. ऐसे में पलामू प्रमंडलीय मुख्यालय का जिला पलामू ही है और यहां से सिंचाई परियोजनाओं की आधारशिला प्रधानमंत्री श्री मोदी रख रहे हैं.
खासतौर पर पलामू को देखा जाये, तो यह इलाका सुखाड़ व अकाल के लिए जाना जाता है. 1966-67 में जब यहां भीषण अकाल पड़ा, तो लोगों ने इस इलाके को सुखाड़ व अकाल से मुक्त कराने के लिए अभियान छेड़ा.
तब के तत्कालीन विधायकों ने बिहार विधानसभा में इसे लेकर अनशन भी किया था. बताया जाता है कि इसमें हेमेंद्र प्रताप देहाती की भूमिका अहम रही थी. जिसके बाद भीष्मनारायण सिंह (अब स्वर्गीय) के नेतृत्व में एक टीम बनी थी, जो आकलन कर रही थी कि कैसे इस इलाके को सुखाड़ व अकाल से मुक्त कराया जाये. तब पलामू बंटा नहीं था. लातेहार व गढ़वा भी इसी परिधि में आते थे. समय बीता लेकिन समस्या यथावत रही.
आज भी सुखाड़ व अकाल मानो पलामू की नियति हो गयी है. इससे पलामू को निजात मिले, इस दिशा में अपेक्षित पहल का अभाव रहा है. ऐसे में लोगों की यह उम्मीद है कि जिस तरह 45 वर्षों से रुकी परियोजना पर मोदी सरकार की नजर गयी है, उसी तरह अन्य सिंचाई परियोजना पर भी काम हो तो सकारात्मक वातावरण बन सकता है.
खास तौर पर जानकार तहले व कनहर की चर्चा करते हैं. यदि मंडल परियोजना के साथ तहले, कनहर, ओरंगा, अमानत जलाशय योजना पर काम हो, तो स्थिति में अपेक्षित बदलाव आयेगा. तब शायद पलामू का सुखाड़ व अकाल से नाता भी टूट जायेगा.
चतरा के सांसद रहे सह झारखंड विधानसभा के प्रथम अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी इस परियोजना के बारे में अपनी स्पष्ट राय रखते हैं. उनका कहना है कि मंडल परियोजना जरूरी है लेकिन इसमें विलंब हो गया है.
झारखंड को भी इससे लाभ है. लेकिन शिलान्यास के लिए जो वक्त चुना गया है उसमें राजनीतिक मंशा अधिक दिखती है. इधर चतरा सांसद सुनील सिंह की पहल के बाद केंद्रीय सिंचाई मंत्रालय ने इस बात पर सहमति दी है कि इस परियोजना का नाम नीलांबर-पीतांबर के नाम पर होगा और इसमें दोनों शहीदों की प्रतिमा भी लगेगी.
अधीक्षण अभियंता की हत्या के बाद काम रुक गया था
1993 में इस परियोजना का काम रुक गया था, क्योंकि उस दौर में मंडल व उसके आसपास के इलाकों में नक्सलवाद चरम पर था. नक्सलियों द्वारा अधीक्षण अभियंता वैजनाथ मिश्र की हत्या कर दी गयी थी. उसके बाद काम रुक गया. इस योजना को लेकर वन विभाग की भी आपत्ति थी. इस कारण भी यह परियोजना दुबारा शुरू नहीं हो सकी. फेज टू के स्वीकृति मिलने में विलंब हुआ.
विभागीय सूत्रों के मुताबिक इस परियोजना का प्राक्कलन 2391 करोड़ निर्धारित है. इसमें से 769 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं. परियोजना के अवशेष कार्य के लिए 1622 करोड़ राशि प्रस्तावित है, जिसे केंद्रीय मंत्री परिषद ने स्वीकृति दी है.
बताया गया कि पूर्व के कार्य योजना में मंडल डैम की ऊंचाई 367 मीटर थी. लेकिन इससे बहुत से क्षेत्र डूब में आ रहे थे. इसे देखते हुए डूब क्षेत्र कम करने के लिए इसकी ऊंचाई कम की गयी है. अब इसके गेट की ऊंचाई 341 मीटर होगी. इस परियोजना से 24 मेगावाट बिजली उत्पन्न होगी और 190 मिलियन क्यूबिक पानी का भंडारण होगा.
इस परियोजना से झारखंड -बिहार के एक लाख 11 हजार हेक्टेयर खेत सिंचित होंगे. मंडल और उसके आसपास के इलाके में एक बेहतर वातावरण तैयार होगा. वह इलाके जो परियोजना के काम बंद हो जाने के बाद वीरान सी हो गये थे, अब वहां रौनक लौटेगी. 1993 के दौर से वर्तमान स्थिति की तुलना की जाये, तो काफी बदलाव आया है.
राज्य सरकार के स्तर से लगातार चल रही नक्सल उन्मूलन के कार्य का असर हुआ है. वैसे इलाके कल तक नक्सलियों के लिए सेफजोन था. वहां अभी शांति का वातावरण तैयार हुआ है. लोग अब गांव लौट रहे हैं. ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि मंडल परियोजना आसपास के लोगों के लिए बेहतरी का संदेश लेकर आयेगा.
नीलांबर-पीतांबर के नाम पर हो परियोजना
रांची : खरवार भोगता समाज विकास संघ ने मंडल डैम का नाम शहीद नीलांबर-पीतांबर के नाम पर करने की मांग की है. संघ के सचिव सत्येंद्र सिंह ने सरकार से कहा है कि इस डैम से झारखंड की संस्कृति का भी विस्थापन होगा.
समाज के बुद्धिजीवी चाहते हैं कि उत्तरी कोयल परियोजना का नाम बदल कर नीलांबर-पीतांबर बहुउद्देशीय परियोजना किया जाये. मंडल में 157 फीट ऊंची नीलांबर-पीतांबर की प्रतिमा स्थापित की जाये.
इनके जन्म स्थल चेमू सनया के नाम से एक नया गांव बसाया जाये. उसे आदर्श ग्राम के नाम पर विकसित की जाये. अनुसूचित जनजाति संविधान संशोधन विधेयक 2016 लोकसभा के चालू सत्र में पारित कराया जाये. पलामू से दिल्ली कि लिए नीलांबर पीतांबर के नाम पर सुपरफास्ट ट्रेन चलायी जाये.
नीलांबर-पीतांबर के जब्त हथियार को सम्मान सहित राज्य के संग्रहालय में रखी जाये. नीलांबर-पीतांबर की जागीर वंशजों को वापस किया जाये. मंडल डैम के शिलान्यास के वक्त उनके वंशजों को सम्मानित किया जाये. विस्थापितों को 1972 स्वीकृत मुआवजे का भुगतान वर्तमान मूल्य पर किया जाये. विस्थापित होने वाले परिवार जिनकी आयु 18 साल से अधिक है, उनको सरकारी नौकरी दी जाये.
बरवाडीह को नीलांबर-पीतांबर नगर घोषित की जाये. श्री सिंह ने कहा कि मंडल डैम के पुनर्निर्माण की आधारशिला रखने के साथ ही 1857-58 के स्वतंत्रता सेनानी नीलांबर-पीतांबर, चेमू-सानया सदा के लिए डूब जायेगा. इससे इस गांव के पौराणिक इतिहास के समाप्त होने के भी उम्मीद है.
केदार पांडेय ने रखी थी आधारशिला
मेदिनीनगर : 1972 में मंडल परियोजना की आधारशिला बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री केदार पांडेय ने रखी थी. तय था कि 1972 से लेकर 1977 तक में यह काम पूरा हो जायेगा. लेकिन हो नहीं सका. इस परियोजना में 190 मिलियन क्यूवी मीटर पानी का संग्रहण होगा. पलामू के 10 हजार एकड़ भूमि सिंचित होगी.
सत्तारुढ़ दल के मुख्य सचेतक सह विधायक राधाकृष्ण किशोर एकीकृत बिहार के जमाने में विधायक रहे हैं.
विधायक श्री किशोर का कहना है कि मंडल परियोजना पलामू प्रमंडल के लिए भी लाभप्रद है. जो लोग आज इस पर सवाल उठा रहे हैं, उन्हें यह बताना चाहिए कि आखिर यह परियोजना पिछले 45 वर्षों तक लंबित क्यों रही. जबकि पांच वर्षों में ही पूरा होना था. बिजली का जो उत्पादन होगा, उसका लाभ पलामू व गढ़वा को मिलेगा यह बात संचिका में दर्ज है.
इस परियोजना के बन जाने से कोयल का जल स्तर बढ़ेगा. कोयल के तटीय इलाके में लिफ्ट कर सिंचाई की व्यवस्था की जा सकती है. सिंचाई की योजना सिर्फ सिंचाई के दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि उसका लाभ अन्य क्षेत्रों में भी मिलता है. जो लोग हाय तौबा मचा रहे हैं, उन्हें पूरी जानकारी रखना चाहिए. केवल विकास के विरोध की राजनीति नहीं होनी चाहिए.
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