उस की याद आई है साँसों ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है.
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो.
ऐसी दिलकश शायरी के शायर हैं मशहूर राहत इंदौरी साहब. आज उनकी यौमे पैदाईश यानी जन्मदिन है. उनका जन्म एक जनवरी 1950 में इंदौर में हुआ था.उनके पिता कपड़ा मिल के कर्मचारी थे. वे उर्दू साहित्य में एमए थे. वे जब 19 वर्ष के थे उसी वक्त से शायरी कहा करते थे. उन्होंने कई हिंदी फिल्मों के लिए गाने भी लिखे हैं. आज के खास दिन पर पढ़ें उनकी कुछ खास शायरी-
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तों
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो
कॉलेज के सब बच्चे चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिए
चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है
ख़याल था कि ये पथराव रोक दें चल कर
जो होश आया तो देखा लहू लहू हम थे
घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा