लखनऊ : केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय में अयोध्या के रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट की तरह करने की अपील की और कहा कि जब सबरीमला और समलैंगिकता के मामले में न्यायालय जल्द निर्णय दे सकता है, तो अयोध्या मामले पर क्यों नहीं.
प्रसाद ने अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के 15वें राष्ट्रीय अधिवेशन के उदघाटन अवसर पर कहा कि वह उच्चतम न्यायालय से अपील करते हैं कि रामजन्मभूमि मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट की तरह हो ताकि इसका जल्द से जल्द फैसला आ सके. उन्होंने कहा कि जब उच्चतम न्यायालय सबरीमला और समलैंगिकता के मामले पर जल्द निर्णय दे सकता है, तो रामजन्म भूमि मामला 70 साल से क्यों अटका है. समारोह में उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति एमआर शाह, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति एआर मसूदी भी मौजूद थे. प्रसाद ने कहा कि हम बाबर की इबादत क्यों करें. बाबर की इबादत नहीं होनी चाहिए.
उन्होंने संविधान की प्रति दिखाते हुए कहा कि इसमें रामचंद्र जी, कृष्ण जी और अकबर का भी जिक्र है, लेकिन बाबर का नहीं. यदि हिंदुस्तान में इस तरह की बातें कर दो तो अलग तरह का बखेड़ा खड़ा कर दिया जाता है. कानून मंत्री ने अन्य लोक सेवाओं की तरह भविष्य में न्यायमूर्तियों की नियुक्ति के लिए भी ‘ऑल इंडिया ज्यूडिशियल सर्विसेज सिस्टम’ भी लाने की बात कही. उन्होंने कहा कि वह इस बात की हिमायत करते हैं कि भविष्य की न्यायिक व्यवस्था में उच्च कोटि के न्यायमूर्तियों की ही नियुक्ति हो. प्रसाद ने कहा कि वर्ष 1950 से लेकर 1993 तक उच्च न्यायालयों में न्यायमूर्तियों की नियुक्ति सरकार और कानून मंत्री द्वारा की जाती थी, जबकि 1993 से कॉलेजियम व्यवस्था लागू की गयी.
उन्होंने सवाल किया आप लोग बतायें कि क्या कोई प्रधानमंत्री किसी न्यायमूर्ति की नियुक्ति नहीं कर सकता. कानून मंत्री ने यह भी कहा कि देश के उच्च न्यायालयों में पिछले 10 वर्षों से दीवानी, फौजदारी तथा अन्य मामले विचाराधीन हैं. मुख्य न्यायालय द्वारा उनकी निगरानी कराकर शीघ्र निस्तारण किया जाये. प्रसाद ने अधिवेशन में उपस्थित अधिवक्ता परिषद के सदस्यों से अपील की कि खासकर गरीबों के मुकदमों का निस्तारण जल्द और कम खर्च पर किया जाये.