दुर्जय पासवान, गुमला
साहब, मेरे पति की सड़क हादसे में मौत हो गयी. वह किसान था. खेतीबारी कर घर का रोजी रोटी चलाता था. पति की मौत के बाद तीन बच्चों की परवरिश व खुद के पेट पालने की चिंता है. प्रशासन जीने के मदद करे. यह दर्दभरी कहानी रायडीह प्रखंड के लाटू डांगरडेम्बा गांव की सीता देवी की है.
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सीता देवी के तीन बच्चे 14 वर्षीय लक्ष्मण सिंह, आठ वर्षीय दुर्गावती कुमारी व डेढ़ वर्षीय मनीषा कुमारी है. सीता ने कहा है कि अगर इस संकट की घड़ी में प्रशासन मदद नहीं करता है, तो भूखों मरना पड़ेगा.
उसने कहा कि जबतक मेरा पति जीवित था. वह खेतीबारी कर परिवार का जीविका चलाता था. हमारा परिवार खुशहाल था. लेकिन गत दिनों एक सड़क हादसे में जीतवाहन की मौत से घर की आर्थिक स्थिति खराब हो गयी है. अब यही चिंता सता रही है कि तीनों बच्चों की परवरिश कैसे करेंगे. उनकी पढ़ाई लिखाई कैसे होगी.
सीता ने कहा कि मैं किसी प्रकार भूखे रह सकती हूं. लेकिन मेरे बच्चों का क्या होगा. सीता ने डीसी शशि रंजन को लिखित ज्ञापन सौंपा है. जिसमें उसने मुआवजा व नौकरी देने की गुहार लगायी है.
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रांची से फूड समिट से लौटते वक्त हुई मौत
जीतवाहन सिंह (43 वर्ष) पेशे से किसान थे. वह 29 नवंबर को रांची में झारखंड सरकार द्वारा आयोजित ग्लोबल एग्रीकल्चर एवं फूड समिट-2018 के कार्यक्रम में भाग लेने गये थे. उसी दिन शाम छह बजे वह अपने सहयोगी किसान घुरन उरांव व सुरेंद्र उरांव के साथ रांची से अपने घर लौट रहे थे.
लौटने के क्रम में रायडीह प्रखंड के शंख नदी पुल के समीप एक गाड़ी ने बाइक सवार तीनों किसानों को ठोकर मार दी. जिससे तीनों सड़क पर गिर गये. इस हादसे में जीतवाहन की मौत हो गयी थी. जबकि उसके दो दोस्त घायल हो गये थे. इस घटना के बाद किसी प्रकार परिवार के सदस्यों ने जीतवाहन का अंतिम संस्कार किया. लेकिन पारिवारिक लाभ योजना के तहत 20 हजार रुपये की मुआवजा राशि पीड़ित परिवार को नहीं मिली. रायडीह प्रखंड प्रशासन ने भी मुआवजा देने की पहल नहीं की. जिससे घर की आर्थिक स्थिति खराब हो गयी.
तीन नंबर का 60 डिसमिल खेत है
सीता देवी ने बताया कि उसके पति के नाम से तीन नंबर का 60 डिसमिल खेत है. जहां धान व गेंहू की खेती नहीं होती है. इसलिए मौसम के अनुसार कुछ बहुत खेती कर परिवार की जीविका चलाते रहे हैं. सीता ने कहा कि पति थे तो खेती करते थे. अब खेती कौन करेगा.