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आगमन का पुण्यकाल- 12 : यूं ही दोष ना लगाएं

फादर अशोक कुजूर एक 15 साल का लड़का अपने पिता के साथ ट्रेन में सफर कर रहा था. लड़का खिड़की के पास बैठा था और खिड़की के बाहर देख कर जोर-जोर से अपने पिता से कह रहा था- पापा, देखिये वह पेड़ तेजी से पीछे जा रहा है! यह सुन कर उसके पिताजी मुस्कुरा रहे […]

फादर अशोक कुजूर
एक 15 साल का लड़का अपने पिता के साथ ट्रेन में सफर कर रहा था. लड़का खिड़की के पास बैठा था और खिड़की के बाहर देख कर जोर-जोर से अपने पिता से कह रहा था- पापा, देखिये वह पेड़ तेजी से पीछे जा रहा है! यह सुन कर उसके पिताजी मुस्कुरा रहे थे़ पास में बैठे एक पति-पत्नी उस 15 साल के लड़के के बच्चों जैसे व्यवहार को गुस्से से देख रहे थे़
तभी अचानक वह लड़का फिर से चिल्लाया- पिताजी, देखिये बादल भी हमारे साथ ही जा रहे हैं! इस बार उस पति-पत्नी से रहा नहीं गया़ उन्होंने उस लड़के के पिता से कहा-आप अपने बेटे को किसी अच्छे डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाते? लड़के के पिता मुस्कुराए और उन्होंने कहा- मैंने ऐसा ही किया है, बल्कि अभी हम अस्पताल से ही आ रहे है़ं मेरा बेटा बचपन से अंधा था़ उसे आज ही आंखे मिली है़ं आज मेरा बेटा पहली बार इस दुनिया को देख रहा है.
धरती पर रहने वाले हर एक इंसान की अपनी एक कहानी है. इसलिए पूरी सच्चाई जाने बिना किसी को भी दोषी नहीं ठहराना चाहिये. कई बार हम सच्चाई जाने बिना ही किसी पर भी बड़ा आरोप लगा देते हैं और बाद में हमें अपनी गलतियों का अहसास होता है.
इसीलिए बाद में पछताने की बजाय हमें पहले ही किसी भी बात की तह में जाकर पूरी सच्चाई जानने की कोशिश करनी चाहिये़ कई बार हमारे व्यवहार से हम जाने-अनजाने लोगों को चोट पहुंचा देते हैं. आगमन काल में हम अपने व्यवहार में तब्दीली लाने का प्रयास करे़ं
लेखक डॉन बॉस्को यूथ एंड एजुकेशनल सर्विसेज बरियातू के निदेशक हैं.

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