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देश में थर्मल पावर प्‍लांट में उत्सर्जन मानक का अनुपालन नहीं होने से 76000 मौतें समयपूर्व

नयी दिल्ली :कोयले आधारित बिजली संयंत्रों के उत्सर्जन मानकों को लागू करने के लिए जारी अधिसूचना की तीसरी सालगिरह और समय सीमा समाप्त होने के एक साल बाद ग्रीनपीस इंडिया के विश्लेषण में सामने आया है कि अगर पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 2015 में थर्मल पावर प्लांट के लिए जारी उत्सर्जन मानकों की अधिसूचना को लागू […]

नयी दिल्ली :कोयले आधारित बिजली संयंत्रों के उत्सर्जन मानकों को लागू करने के लिए जारी अधिसूचना की तीसरी सालगिरह और समय सीमा समाप्त होने के एक साल बाद ग्रीनपीस इंडिया के विश्लेषण में सामने आया है कि अगर पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 2015 में थर्मल पावर प्लांट के लिए जारी उत्सर्जन मानकों की अधिसूचना को लागू किया जाता तो देश में 76 हजार मौतों से बचा जा सकता था.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से मिली आरटीआई के जवाब के आधार पर ग्रीनपीस इंडिया ने थर्मल पावर प्लांट में उत्सर्जन मानक लागू करने के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रभाव नाम से एक रिपोर्ट जारी की है. इस विश्लेषण में यह सामने आया कि अगर मानको को लागू किया जाता तो सल्फर डॉयक्साइड में 48 फीसदी, नाइट्रोडन डॉयक्साइड में 48 फीसदी और पीएम के उत्सर्जन में 40 फीसदी तक की कमी की जा सकती थी.

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इन 76 हजार असमय मौतों में से 34000 मौत को सल्फर डॉयक्साइड उत्सर्जन कम करके बचाया जा सकता था. वहीं, नाइट्रोजन डॉयक्साइड कम करके 28 हजार मौतों से बचा जा सकता था. जबकि, पार्टिकूलेट मैटर (पीएम) को कम करके 34 हजार मौत से बचा जा सकता था.

इन मानको को लागू करने की समय सीमा 7 दिसंबर 2017 को रखा गया था. एक साल बीतने के बाद भी पावर प्लाट के उत्सर्जन में बेहद कम नियंत्रण पाया जा सका है. इसी साल सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि ‘ऊर्जा मंत्रालय का कोयला आधारित पावर प्लांटों से होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने का कोई इरादा नहीं दिखता’, इतना ही नहीं कोर्ट ने 2022 तक इन मानकों को लागू करने का आदेश भी दिया.

ग्रीनपीस के विश्लेषण के अनुसार, अगर इन मानकों के अनुपालन में पांच साल की देरी की जाती है तो उससे 3.8 लाख मौत हो सकती है. जिससे बचा जा सकता है और सिर्फ नाइट्रोडन डॉयक्साइड के उत्सर्जन में कमी से 1.4 लाख मौतों से बचा जा सकता है. इस अनुमान में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के नये उपक्रम को शामिल नहीं किया गया है.

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ग्रीनपीस इंडिया के कैंपेनर सुनील दहिया कहते हैं, थर्मल पावर प्लांट के लिए उत्सर्जन मानकों को लागू करना पिछले कुछ दशक से लटका हुआ है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऊर्जा मंत्रालय और कोयला पावर कंपनी इन मानकों को लागू करने से बच रही है और गलत तकनीकी आधार का सहारा ले रही है.

उन्हें समझना चाहिए कि भारत में वायु प्रदूषण की वजह से लोगों का स्वास्थ्य संकट में है और थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाला उत्सर्जन इसकी बड़ी वजहों में से एक है. भारत को तत्काल उत्सर्जन मानकों को पूरा करने और नये कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को रोककर अक्षय ऊर्जा की तरफ बढ़ने की जरुरत है. जो कि पर्यावरण के लिए सिर्फ अच्छा नहीं है बल्कि सतत विकास के लिए भी प्रदूषित कोयले से बेहतर है.

ग्रीनपीस इंडिया मांग करती है कि पर्यावरण मंत्रालय जल्द से जल्द थर्मल पॉवर प्लांट को प्रदूषण के लिए उत्तरदायी बनाये. वहीं सारे थर्मल पावर प्लांट को तत्काल उत्सर्जन मनकों को हासिल करना चाहिए और अक्षय ऊर्जा के लक्ष्य को हासिल करने के लिए नये थर्मल पावर प्लांट बनाने से रोकना चाहिए. इस पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए इससे जुड़े एक्शन को सार्वजनिक मंच पर लोगों के लिए उपलब्ध भी करवाना चाहिए.

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