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एक सम्राट ने दुनिया को बताया मिट्टी का मोल

मिथिलेश झा दुनिया भर में विश्व मृदा दिवस (World Soil Day) मनाया जा रहा है. यह दिन थाईलैंड के पूर्व सम्राट भूमिबोल अदुल्यादेज को समर्पित है. संगीत और फोटोग्राफी के साथ-साथ सैक्साफोन बजाने एवं ब्लैक एंड व्हाइट फिल्में देखने के शौकीन सम्राट के जन्मदिन को संयुक्त राष्ट्र ने विश्व मृदा दिवस के रूप में मनाना […]

मिथिलेश झा

दुनिया भर में विश्व मृदा दिवस (World Soil Day) मनाया जा रहा है. यह दिन थाईलैंड के पूर्व सम्राट भूमिबोल अदुल्यादेज को समर्पित है. संगीत और फोटोग्राफी के साथ-साथ सैक्साफोन बजाने एवं ब्लैक एंड व्हाइट फिल्में देखने के शौकीन सम्राट के जन्मदिन को संयुक्त राष्ट्र ने विश्व मृदा दिवस के रूप में मनाना शुरू किया. संयुक्त राष्ट्र ने यह फैसला तब किया, जब कृषि और वैश्विक संकट पर आधारित सम्राट भूमिबोल की पुस्तक सफिसिएंसी इकॉनोमी बाजार में आयी. इस पुस्तक का प्रकाशन वर्ष 1998 में हुआ. वर्ष 2014 में संयुक्त राष्ट्र ने सम्राट के जन्मदिन को वर्ल्ड सॉयल डे घोषित किया. तब से हर साल एक सप्ताह (5 दिसंबर से 11 दिसंबर तक) दुनिया भर के देशों में लोगों को मिट्टी के कटाव से होने वाली समस्या और उसके संरक्षण के बारे में बताया जाता है.

सम्राट बनने के बाद भूमिबोल ने अपने देश के सुदूर गांवों में जाकर कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को मजबूत किया. किसानों को समृद्ध बनाने में अहम भूमिका निभायी. गांवों की यात्रा की. जमीन पर बैठकर किसानों के साथ चर्चा की. लोगों की समस्याएं सुनीं और उसके समाधान भी ढूंढ़े. उन्होंने सम्राट की तरह कम, एक मृदा विज्ञानी (सॉयल साइंटिस्ट) की तरह ज्यादा काम किया. दूरदर्शी सम्राट भूमिबोल अपने देश के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में गये और वहां की स्थिति का अध्ययन किया. उन्होंने पाया कि किसान तेजी से पैसे कमाने की लालच में पर्यावरण को तो नुकसान पहुंचा ही रहे हैं, अपना भविष्य भी खतरे में डाल रहे हैं.

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इसके बाद उन्होंने किसानों के हित में कई योजनाएं बनायीं. कहते हैं कि इस सम्राट ने अपने देश की मिट्टी को उत्पादक बनाने और उसकी उत्पादकता बरकरार रखने के लिए निरंतर काम किया. किसानों और ग्रामीणों की बेहतरी के लिए सम्राट ने 4,000 से अधिक सतत विकास परियोजनाओं की शुरुआत की. इनमें से अधिकांश पेयजल, कृषि, आजीविका और स्वास्थ्य से जुड़ी योजनाएं थीं. इन तमाम योजनाओं के केंद्र में मिट्टी ही हुआ करती थी. ये कठिन चीजें थीं, लेकिन सम्राट के नवोन्मेषी सोच ने इन्हीं कठिन समस्याओं का हल ढूंढ़ने के लिए उन्हें पहला ह्यूमेनिटेरियन सॉयल साइंटिस्ट का अवॉर्ड मिला. वर्ष 2012 में आयोजित इंटरनेशनल यूनियन ऑफ सॉयल साइंस ने उन्हें इस पुरस्कार से नवाजा.

इतना ही नहीं, वर्ष 2014 में सम्राट को संयुक्त राष्ट्र को उनके जन्मदिन (5 दिसंबर) को वर्ल्ड सॉयल डे घोषित करने के लिए मजबूर होना पड़ा. ग्लोबल वार्मिंग की बढ़ती चिंता और खाद्य सुरक्षा की चिंता के मद्देनजर वर्ष 2015 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ सॉयल के रूप में मनाया गया. अमेरिका के न्यू यॉर्क के अलावा रोम, बैंकॉक और दुनिया भर के शहरों में इसके मुख्य कार्यक्रम आयोजित किये गये.

अमेरिका में जन्मे सम्राट भूमिबोल अदुल्यदेज ने स्विट्जरलैंड से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. शांति के प्रतीक अदुल्यदेज के दादा ने थाईलैंड को पर्यटन स्थल के रूप में स्थापित किया था. इस थाईलैंड को आधुनिक थाईलैंड बनाने के लिए सम्राट भूमिबोल ने अथक मेहनत की. उन्होंने थाईलैंड के लोगों की समृद्धि के लिए निरंतर प्रयास किये. उन्होंने राजतंत्र की धारणा को बदला और अपने देश की जनता की सुरक्षा सुनिश्चित की. कानून-व्यवस्था को सख्ती से लागू करवाया. इसी का नतीजा था कि दुनिया के उन तमाम देशों की तुलना में यहां की सुरक्षा-व्यवस्था अच्छी मानी जाती है, जहां राजा का शासन है.

कहते हैं कि थाईलैंड में लोगों के चेहरे पर सदैव मुस्कान का श्रेय सम्राट भूमिबोल को जाता है. उन्होंने अपने देश में कृषि और कृषकों को तो मजबूत किया ही, पर्यटन और व्यापार को भी खूब बढ़ावा दिया. दुनिया से हर साल 60 लाख से ज्यादा पर्यटक थाईलैंड आते हैं. यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. सम्राट भूमिबोल अदुल्यदेज को श्यामदेश के चक्री वंश के नौवें राजा या राम नवम के रूप में भी जाना जाता है. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद 9 जून, 1946 को महज 19 साल की उम्र में थाईलैंड के शासन की बागडोर संभाल ली थी. वह 70 साल तक थाईलैंड के सम्राट रहे. यह किसी भी शासक के शासनकाल का सबसे लंबा कार्यकाल है. 5 दिसंबर, 1927 को अमेरिका के कैंब्रिज में सोंगला के प्रिंस महिडोल अदुल्यदेज और राजकुमारी श्रीनगारिंद्र के घर जन्मे राम नवम ने 13 अक्तूबर, 2016 को करीब 88 साल की उम्र में थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में अंतिम सांस ली.

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