आये दिन ‘डायन’ की खबरें अखबारों की सुर्खियों में होती हैं. डायन की अवधारणा मानव सभ्यता के आदि युग का हिस्सा है. उस वक्त जब मनोरंजन के साधनों की कमी थी, तब ‘डायन’ कहानियों के केंद्र में थी.
आश्चर्य यह कि तब से अब तक न ‘डायन’ बदली, न ही डायन होने का पुख्ता सबूत मिला. आखिर डायन के शक में किसी महिला पर होते अत्याचार पर यह समाज खामोश क्यों रहता है? छह-आठ दशक पहले जन्मे बुजुर्गों के पास भी शायद इसका जवाब न मिल पाये. फिर आज की युवा पीढ़ी तो इस प्रथा से बिल्कुल अनजान है.
ऐसी हत्याओं के पीछे एक अंधविश्वास का भय ही तो है, जो किसी भी अफवाह को हकीकत बना देता है. डायन का अस्तित्व हो न हो, मगर हमारा दिमागी दिवालियापन और अजीबोगरीब सोच का अस्तित्व अब भी बरकरार है. मंगल ग्रह पर पैर जमाने के ख्वाब देखता इंसान डायन के नाम पर महिलाओं की हत्या करे, तो यह निश्चित तौर पर इंसानियत को शर्मसार करता है.
एमके मिश्रा, रातू, रांची