जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर के आंकड़े वे माध्यम हैं, जिनसे हमें देश की आर्थिक सेहत की सही स्थिति का पता चलता है. इस हफ्ते केंद्र सरकार ने जीडीपी के आधार वर्ष में संशोधन करके पिछले दस वर्षों की जीडीपी वृद्धि दर के आंकड़े फिर से पेश किये हैं. इसके बाद यूपीए सरकार के कार्यकाल के ज्यादातर वर्षों की जीडीपी वृद्धि दरों में कमी आ गयी है. ऐसा होने के बाद कांग्रेस केंद्र सरकार की निंदा कर रही है, वहीं वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस कदम का बचाव किया है और कांग्रेस पर दोहरा रवैया अपनाने का आरोप लगाया है. जीडीपी के नये बैक सीरीज आंकड़ों, जारी राजनीतिक बहसों, जीडीपी और उसके विभिन्न पहलुओं पर केंद्रित है आज का इन दिनों…
बेस ईयर के अनुरूप नयी सीरीज
राजीव रंजन झा, संपादक, शेयर मंथन
यह हंगामा इसलिए मचा हुआ है कि यूपीए के दौर की जीडीपी को मौजूदा सरकार सही नहीं बता रही है. हालांकि, यह सीधा-सीधा राजनीतिक नफा-नुकसान का खेल है, लेकिन सीएसओ को इस राजनीति से मतलब नहीं है, वह सही आंकड़े जारी करता रहेगा.
जीडीपी के आंकड़ों का आकलन करने के लिए एक बेस ईयर होता है, जिसके आधार पर इसका निर्धारण होता है. जीडीपी के अब जो नये आंकड़े आ रहे हैं, उसका बेस ईयर 2011-12 रखा गया है. बेस ईयर बदलने का काम होता रहता है, इसके पहले भी कई बार हुआ है. मोटे तौर पर कहें, तो लगभग एक दशक के बाद बेस ईयर बदलना पड़ता है. जब भी नया बेस ईयर बनता है, तो पहले के वर्षों के तमाम आंकड़ों में भी नये बेस ईयर के हिसाब से नये आंकड़े निकालने पड़ते हैं. अभी की जीडीपी के आंकड़े 2011-12 के बेस ईयर से हैं. इसके पहले के जीडीपी के आंकड़े 2004-05 के बेस ईयर के हिसाब से हैं. पहले की जीडीपी ग्रोथ और आज की जीडीपी ग्रोथ की हम तुलना नहीं कर सकते. लेकिन, सारे अर्थशास्त्री इस बात को मानते हैं कि नये बेस ईयर के हिसाब से जीडीपी के आंकड़े जारी होने चाहिए. हमारे देश में डेटा इकट्ठा करने का इन्फ्रास्ट्रक्चर पहले मजबूत नहीं था. लेकिन, अब एमसीए के पास हर कंपनी का सही-सही डेटा मौजूद है. इसलिए अब जो जीडीपी की नयी सीरीज है, वह व्यापक आंकड़ों के ऊपर आधारित है और इन आंकड़ों में शुद्धता ज्यादा है. प्रीपोल सर्वे और रिजल्ट में जो अंतर होता है, वही अंतर पहले की जीडीपी और आज की जीडीपी में है. पहले जीडीपी का अनुमान हम सैंपल सर्वे की तरह लगाते थे, लेकिन अब आंकड़ों की शुद्धता के आधार पर लगाते हैं. अब आंकड़ों की शुद्धता बढ़ी है. बेस ईयर तो बदलता ही रहता है. इसलिए इसमें कोई आिर्थक घोटाला या आंकड़ों की बाजीगरी जैसी बात नहीं है, जैसा कि लोग कह रहे हैं.
दूसरी बात यह है कि जब 2015 में जीडीपी के आंकड़े बताये गये थे, तो उसका बेस ईयर 2011-12 था. इसलिए नयी सीरीज के हिसाब से जो पहले सही जीडीपी मिलती है, वह 2011-12 की मिलती है. फिर साल 2013-14 में आंकड़े जारी हुए. ये दोनों साल यूपीए सरकार के साल थे, जिसमें जीडीपी अच्छी दिखी थी. यानी जब नयी सीरीज के हिसाब से यूपीए के आखिरी साल की जीडीपी अच्छी दिखी थी, तब कांग्रेस ने कोई आपत्ति नहीं की. चूंकि उस समय केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय यानी सीएसओ ने सिर्फ 2011-12 के आंकड़े जारी किये थे, तब उसके पहले के आंकड़े हमारे पास नहीं थे. दरअसल, जीडीपी आकलन में हमें पुराने आंकड़ों की भी जरूरत होती है और नयी सीरीज के हिसाब से पुराने डेटा भी चाहिए होता है, जिसे अब तक सीएसओ ने नहीं दिया था. इसलिए सीएसओ पर काफी दबाव था कि वह पुराने आंकड़े भी उपलब्ध कराये, इसलिए उसने साल 2004-05 से आंकड़े भी जारी कर दिये. आगे जाकर साल 1950 से जीडीपी के सर्किल डेटा को भी सीएसओ जारी करेगा, यह सिर्फ यूपीए सरकार के समय की बात नहीं है. इसलिए यह हंगामा मचा हुआ है कि यूपीए के दौर की जीडीपी को मौजूदा सरकार सही नहीं बता रही है. हालांकि, यह सीधा-सीधा राजनीतिक नफा-नुकसान का खेल है, लेकिन सीएसओ को इस राजनीति से मतलब नहीं है, वह सही आंकड़ा जारी करता रहेगा.
आर्थिक घपलेबाजी है यह!
मोहन गुरुस्वामी , अर्थशास्त्री
ये कभी इतिहास से छेड़छाड़ करते हैं, तो कभी पिछली सरकार के समय की जीडीपी को गलत बताते हैं. मनमोहन सिंह की सरकार और नरेंद्र मोदी की सरकार के बीच विकास के आंकड़ों की तुलना कर लीजिए, हर मोर्चे पर मोदी सरकार फिसड्डी साबित हो रही है.
स रकार ने जीडीपी को लेकर जो नये आंकड़े जारी किये हैं, उसके तरीके से सहमत नहीं हुआ जा सकता है. सरकार के पास अब अर्थव्यवस्था को न संभाल पाने की नौबत आ गयी है, इसीलिए वह ऐसे कदम उठा रही है. यह न सिर्फ अर्थव्यवस्था के साथ छल है, बल्कि देश के साथ भी धोखा और फ्रॉड करने सरीखा है. नयी जीडीपी सीरीज जारी करके जीडीपी के पुराने डेटा को गलत और अपने नये डेटा को सही बताना एक तरह से आर्थिक घपलेबाजी है. जीडीपी जब भी मापी जाती है, उसमें ढेर सारे तथ्यों का भी मापन होता है. अगर नयी सीरीज के तहत पुराने जीडीपी के आंकड़े बदले जाते हैं, तो इसका अर्थ है कि उन सारे तथ्यों को भी बदलना पड़ेगा, जिनसे मिलकर जीडीपी बनती है. कृषि, उद्योग-व्यापार, निर्माण और सेवा आदि क्षेत्रों में उत्पादन के घटने-बढ़ने के औसत के आधार पर जीडीपी की दर तय होती है. ऐसे में बीते सालों की जीडीपी में आज के समय में कमी या अधिकता नहीं दिखायी जा सकती. ऐसा करने के लिए सभी क्षेत्रों के आंकड़ों से छेड़छाड़ करना होगा, जो कि निहायत ही गलत होगा. आप खुद सोचिये कि क्या यह मुमकिन है कि अगर दस साल पहले किसी क्षेत्र में उत्पादन अगर 15 प्रतिशत रहा हो, तो आज उसे हम 10 प्रतिशत कह सकते हैं? यह तो न सिर्फ बेवकूफी है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था के साथ छल-कपट भी है.
इस तथ्य को ऐसे समझते हैं. मान लीजिये, कल-परसों में आपने दो किलोग्राम बिरयानी बनायी थी, जिसमें एक किलो मांस, आधा किलो चावल और आधा किलो में तेल-मसालों के साथ कुछ अन्य चीजें भी शामिल थीं. अब अगर आप आज के दिन यह कहें कि वह बिरयानी डेढ़ किलोग्राम थी, तो जाहिर है कि उसकी सारी सामग्री की मात्रा भी कम करनी होगी. सवाल यह है कि क्या ऐसा संभव है? अर्थशास्त्र के सिद्धांतों के हिसाब से उस बिरयानी की कीमत में कल और आज के समय के हिसाब से अंतर तो हो सकता है, लेकिन क्या उसके वजन में भी कमी दिखायी जा सकती है? मौजूदा एनडीए सरकार यही कर रही है. उसे नयी बिरयानी बनाने नहीं आ रही है, तो वह पिछली सरकार की बिरयानी को ही कमवजनी बता रही है. इस सरकार ने अर्थव्यवस्था की जो हालत की है, उसका खामियाजा देश को भुगतना पड़ेगा. इनके एजेंडे में कुछ नया करना तो है नहीं, इसलिए ये कभी पुराने और बीत चुके इतिहास से छेड़छाड़ करते हैं, तो कभी पिछली सरकार के समय की जीडीपी को गलत बताते हैं. मनमोहन सिंह की सरकार और नरेंद्र मोदी की सरकार के बीच तमाम क्षेत्रों में हुए ग्रोथ के आंकड़ों की तुलना कर लीजिये, हर मोर्चे पर मोदी सरकार फिसड्डी साबित हो रही है.
जीडीपी क्या है
जी डीपी यानी ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट यानी सकल घरेलू उत्पाद. इस शब्दावली का पहली बार उपयोग अमेरिका के अर्थशास्त्री साइमन कुजनेट्स ने वर्ष 1935-44 के दौरान किया था, जिसे बाद में आइएमएफ (अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष) ने वैश्विक अर्थव्यवस्था एवं देशों की अलग-अलग आर्थिक स्थिति की प्रस्तुति में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. जीडीपी किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति को मापने का पैमाना है. जीडीपी किसी निश्चित अवधि के दौरान वस्तु और सेवाओं के उत्पादन की कुल कीमत को कहते हैं. वस्तुतः जीडीपी का आंकड़ा अर्थव्यवस्था के प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में उत्पादन की वृद्धि दर के आधार पर तैयार किया जाता है. कृषि, उद्योग व सेवा क्षेत्र जीडीपी के तहत आने वाले तीन सबसे महत्वपूर्ण घटक हैं. इन तीनों क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ने अथवा घटने के औसत के आधार पर ही जीडीपी की दर तय होती है. दुनियाभर में जीडीपी के आंकड़े के माध्यम से ही देश की आर्थिक उन्नति या अवनति का पता चलता है. अगर जीडीपी के आंकड़ों में बढ़ोतरी दिखायी देती है, तो इसका मतलब होता है कि देश में आर्थिक विकास दर में भी बढ़ोतरी हुई है और अगर जीडीपी के आंकड़ों में गिरावट दिखायी देती है, तो इसका मतलब होता है कि देश की आर्थिक विकास दर भी गिरी है. भारत में जीडीपी की गणना प्रत्येक तिमाही में की जाती है. प्रत्येक तिमाही के आंकड़ों के आने के बाद पिछली तिमाही के आंकड़ों से उसकी तुलना की जाती है और अर्थव्यवस्था की गति मापी जाती है.
जीडीपी मापने के आधार
जीडीपी निर्धारण उत्पादन की कीमतों के कम होने अथवा ज्यादा होने पर काफी हद तक निर्भर करता है. इसमें एक कॉन्स्टैंट प्राइस होता है. इसके अंतर्गत, जीडीपी की दर व उत्पादन का मूल्य एक आधार वर्ष में उत्पादन की कीमत पर तय किया जाता है. दूसरा पैमाना करेंट प्राइस का होता है, जिसमें उत्पादन वर्ष की महंगाई दर को शामिल किया जाता है. इस पूरी प्रक्रिया में केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन (सीएसओ) देशभर से उत्पादन और सेवाओं के आंकड़े इकट्ठा करता है.
जीडीपी विकास के नये आंकड़ों के संदर्भ में किसने क्या कहा
सीएसओ एक विश्वसनीय संगठन है और ऐसे विश्वसनीय संगठन की आलोचना करना सही नहीं है. यह संगठन वित्त मंत्रालय से अलग स्वतंत्र रूप से कार्य करता है.
– अरुण जेटली, वित्त मंत्री
नयी जीडीपी सीरीज पुरानी पद्धति (एनएससी समिति) की तुलना में बेहतर है. हालांकि, दो पद्धतियों की तुलना करना सही नहीं है.
राजीव कुमार, उपाध्यक्ष नीति आयोग
नीति आयोग ने दुर्भावना से ग्रस्त होकर कार्य किया है. इस बेकार संस्थान को अब बंद कर देना चाहिए.
पी चिदंबरम, पूर्व वित्त मंत्री
जीडीपी के संशोधित आंकड़ों को जारी करने में नीति आयोग का शामिल होना सामान्य प्रक्रिया नहीं है. केंद्रीय सांख्यिकी संगठन ने इसे जारी करते हुए सामान्य प्रक्रिया का पालन नहीं किया है.
– पीसी मोहनन, अध्यक्ष, राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग
जीडीपी आंकड़ों की नयी सीरीज पर क्यों है विवाद
हाल ही में जीडीपी आंकड़ों की नयी सीरीज (न्यू बैक सीरीज जीडीपी डेटा) जारी हुई है, जिसे लेकर विवाद उत्पन्न हो गया है. इस विवाद का मुख्य कारण यूपीए सरकार के कार्यकाल के जीडीपी विकास दर का नये तरीके से आकलन कर उसमें संशोधन करना है. संशोधन के बाद यह विकास दर पहले के मुकाबले कम हो गयी है. जीडीपी आंकड़ों की नयी सीरिज में यूपीए सरकार के 2010-11 की अवधि के जीडीपी विकास दर को 10.3 प्रतिशत की जगह 8.5 प्रतिशत बताया गया है. जबकि इसी वर्ष जुलाई में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग द्वारा जारी जीडीपी आंकड़ों की नयी सीरिज में 2010-11 के जीडीपी विकास दर को 10.8 प्रतिशत बताया गया था, जो पूर्व में बताये गये 10.3 प्रतिशत के आंकड़े से कहीं अधिक था. इतना ही नहीं, इस नयी सीरिज में यूपीए सरकार के 2005-06 से 2011-12 तक के जीडीपी विकास दर को पूर्व के 7.75 प्रतिशत से घटाकर 6.82 प्रतिशत कर दिया गया है. साथ ही यह भी कहा गया है कि 31 मार्च, 2014 को खत्म हुए बीते नौ वर्षों के दौरान जब यूपीए सरकार सत्ता में थी, भारतीय अर्थव्यवस्था ने 6.67 प्रतिशत की औसत से वृद्धि दर्ज की जो 31 मार्च, 2018 को समाप्त हुए मोदी सरकार के कार्यकाल में हासिल की गयी 7.35 प्रतिशत की वृद्धि दर से कम है.
कैसे तय हुई है नयी जीडीपी
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने नयी जीडीपी को तय करने के लिए उत्पादन में आये बदलावों को आधार बनाया है. इसके तहत आधार वर्ष के बदलते ही कुछ चीजें अप्रासंगिक हो जाती हैं और कुछ पहले से ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती हैं. एेसे में नयी चीजें के जुड़ने एवं पुरानी व अप्रासंगिक हो चुकी चीजों को हटा देने से वृद्धि दर में बदलाव आ जाता है. इस नयी सीरीज में ग्राॅस वैल्यू एडेड (जीवीए) में प्राथमिक क्षेत्रों (उत्खनन, विनिर्माण, बिजली, दूरसंचार आदि) की हिस्सेदारी बढ़ा दी गयी है, जिस कारण पुराने जीडीपी आंकड़ों में बदलाव आया है. दूसरे आंकड़ों को जुटाने का तरीका भी इस नयी सीरीज में बदल दिया गया है. साथ ही, जीडीपी के आंकड़ों को 2004-05 के आधार वर्ष के बजाय 2011-12 के आधार वर्ष के अनुसार संशोधित किया गया है.
क्या हैं केंद्रीय सांख्यिकी संगठन यानी सीएसओ के कार्य
केंद्रीय सांख्यिकी संगठन सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अधीन कार्य करता है. देश के सांख्यिकीय क्रियाकलापों के समन्वय और सांख्यिकीय मानक तैयार करने की जिम्मेदारी इसी संस्थान की है. इसकी गतिविधियों में सकल घरेलू उत्पाद, सरकारी और निजी अंतिम खपत व्यय, स्थायी पूंजी निर्माण, वर्तमान और स्थिर कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का तिमाही अनुमान, स्थायी पूंजी के पूंजी स्टॉक और खपत का अनुमान, राज्यवार सकल मूल्य संवर्धन का अनुमान और रेलवे, संचार, बैंकिंग तथा बीमा आदि क्षेत्रों की सकल स्थायी पूंजी तैयार करना, सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य, पर्यावरण संबंधी आर्थिक लेखाकरण, आर्थिक गणना और वार्षिक औद्योगिक सर्वेक्षण, अखिल भारतीय औद्योगिक उत्पादन सूचकांक तैयार करना, जनशक्ति को सांख्यिकी के सिद्धांतों और अनुप्रयोगों का प्रशिक्षण देना आदि शामिल हैं. इस संस्थान के प्रमुख महानिदेशक होते हैं. महानिदेशक के सहयोग के लिए पांच अपर महानिदेशक होते हैं. यह कार्यालय राष्ट्रीय लेखा प्रभाग, सामाजिक सांख्यिकी प्रभाग, आर्थिक सांख्यिकी प्रभाग, प्रशिक्षण प्रभाग, समन्वय और प्रकाशन प्रभाग में बंटा हुआ है.
नीति आयोग के कार्य
राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्था यानी द नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (नीति आयोग) भारत सरकार का प्रमुख बौद्धिक प्रकोष्ठ है. इसका प्राथमिक कार्य सामाजिक व आर्थिक मुद्दों से जुड़ी नीतियों के निर्धारण में सरकार की सहायता करना व उसे सलाह देना है, ताकि सरकार जन हितैषी योजनाओं का निर्माण कर सके. इसके साथ ही आयोग सरकार को तकनीकी सलाह भी देता है. यह आयोग विकास की नीतियां बनाने के लिए केंद्र के साथ राज्य सरकारों को भी शामिल करता है ताकि नीति निर्धारण में केंद्र के साथ राज्य की भी भूमिका सुनिश्चित की जा सके. 1 जनवरी, 2015 को केंद्र सरकार द्वारा लाये एक प्रस्ताव के बाद इस संस्था का गठन किया गया था. वास्तव में नीति आयोग से पहले 1950 में गठित योजना आयोग ही विकास योजनाएं तैयार करता था, लेकिन वर्तमान की केंद्र सरकार ने अपने सुधारवादी कार्यक्रमों के तहत योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग का गठन किया.