- फिल्म : 2.0
- निर्देशक : शंकर
- कलाकार : रजनीकांत, अक्षय कुमार, एमी जैक्सन
- रेटिंग : तीन स्टार
उर्मिला कोरी
आठ साल के लंबे अंतराल के बाद फिल्म रोबोट का सीक्वल 2.0 दस्तक दे चुका है. फिल्म के कॉन्सेप्ट की बात करें तो यह इस बात पर फोकस करती है कि किस तरह से मोबाइल फोन ने न सिर्फ इंसान की जिंदगी को कैद कर लिया है बल्कि इससे दूसरे प्राणियों विशेषकर पक्षियों के अस्तित्व पर सवालिया निशान लग गया है. यह पृथ्वी सिर्फ इंसानों की नहीं है इसलिए उसे दूसरे प्राणियों के बारे में भी सोचना होगा क्योंकि उनके विनाश में कहीं न कहीं मनुष्य जाति का भी विनाश है.
काॅन्सेप्ट के लिहाज से यह साइंस फिक्शन फिल्म शानदार है, लेकिन स्क्रीनप्ले उस लिहाज से प्रभावी नहीं बन पाया है. फिल्म की कहानी शुरू होती है एक बूढ़े आदमी के सेलफोन टावर से लटकर आत्महत्या कर लेनेसे. उसके बाद एक-एक करके पूरे शहर के मोबाइल फोन गायब होने लगते हैं.
मालूम होता है कि वो उसी बूढ़े आदमी पक्षीराज, जिसने आत्महत्या की थी, उसकी नेगेटिव एनर्जी है, जो मौत के बाद इंसानों से बदला रही है. वह मोबाइल फोन को खत्म कर देना चाहता है क्योंकि उसे पक्षियों से प्यार था और मोबाइल टावर के बढ़ते रेडिएशन से पक्षियों का अस्तित्व संकट में है.
प्रोफेसर वशीकरण (रजनीकांत) पहले पार्ट में डिस्मेंटल हो चुके अपने रोबोट चिट्टी के साथ इसे खत्म करने का फैसला लेता है. क्या चिट्टी इस नेगेटिव शक्ति से लड़ पाएगा या फिर चिट्टी का नेगेटिव वर्जन (पहले पार्ट में याद है ना? 2.0 ही इसका जवाब है). यह आपको फिल्म देखने पर ही मालूम होगी.
फिल्म का काॅन्सेप्ट शानदार है. फिल्म में इस बात का भी जिक्र है कि अमेरिका और चीन जैसे देशों में 4 से 5 नेटवर्क हैं लेकिन हमारे देश में 10 से ज्यादा मोबाइल नेटवर्क हैं. हमें हर जगह मोबाइल का नेटवर्क चाहिए. हमारी इस बेमतलब की जरूरत को पूरा करने के लिए मोबाइल कंपनियां किस तरह से नियमों को ताक पर रख देती हैं.
फिल्म में ये सब हैं, लेकिन इमोशनली फिल्म कनेक्ट नहीं कर पाती है और न ही इसमें पहले पार्ट की तरह चुहलबाजी यानी कॉमेडी का मसाला है. फिल्म की कहानी भी प्रेडिक्टेबल है, जिससे उत्सुकता नहीं रहती है. रही-सही कसर कमजोर क्लाइमेक्स कर देता है. अभिनय की बात करें, तो रजनीकांत और अक्षय अपनी-अपनी भूमिकाओं में जमे हैं.
सुधांशु पांडेय और आदिल हुसैन को फिल्म में करने को कुछ खास नहीं था. एमी के हिस्से कुछ अच्छे सीन आये हैं. रसूल पोकुट्टी का बैकग्राउंड अच्छा है. गीत-संगीत के मामले में रहमान का जादू स्क्रीनप्ले की तरह ही पूरी तरह बेअसर रहा. फिल्म का वीएफएक्स आंखों के लिए एक ट्रीट है. टेक्नोलॉजी का बेहतरीन प्रदर्शन लुक के मामले में यह फिल्म है. कुल मिलाकर अपनी कमजोर स्क्रीनप्ले लेकिन बेहतरीन वीएफएक्स की वजह से यह फिल्म बच्चों को ज्यादा लुभा पाएगी.