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यूं ही सुपर मॉम नहीं हैं मैरी कॉम

छठी बार गोल्ड जीतकर मैरी कॉम ने इतिहास रच दिया हैं. उन्हें यूं ही सुपर मॉम नहीं कहा जाता. उनकी जीत नारी सशक्तीकरण मिशन में मील का पत्थर साबित होगी. जो अभिभावक सिर्फ लड़कों को खेलने के लायक समझते हैं, उन्हें भी मैरी कॉम का उदाहरण अपनी भूल का एहसास करायेगा. यहां यह तो मानना […]

छठी बार गोल्ड जीतकर मैरी कॉम ने इतिहास रच दिया हैं. उन्हें यूं ही सुपर मॉम नहीं कहा जाता. उनकी जीत नारी सशक्तीकरण मिशन में मील का पत्थर साबित होगी.
जो अभिभावक सिर्फ लड़कों को खेलने के लायक समझते हैं, उन्हें भी मैरी कॉम का उदाहरण अपनी भूल का एहसास करायेगा. यहां यह तो मानना ही पड़ेगा कि एक बेहद गरीब परिवार में जन्मीं और तीन-तीन बच्चों की मां होने के बावजूद मैरी कॉम ने अपने आत्मबल को टूटने नहीं दिया. खेल के लिए शारीरिक मजबूती बेहद आवश्यक है.
इसकी नींव उनके बचपन में ही पड़ चुकी थी, जब उनका पूरा बचपन खेतों में काम करते हुए गुजरा. पिता के विरोध के बावजूद मैरी कॉम का खेल के प्रति जुनून जिंदा रहा, जो पति के समर्थन और सहयोग से परवान चढ़ा.
हम आज मैरी कॉम की सफलता के बारे में बात कर रहे हैं और उससे सीखने पर जोर दें रहे हैं, पर उनका आत्मबल, लगन , साहस, जुनून , धैर्य आदि ऐसे गुण हैं, जिनके अभाव में मैरी कॉम सफलता की ऐसी इबारत नहीं लिख पातीं.
सीमा साही , बोकारो

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