- हर दिन जान हथेली पर रख गुजरती है रात
- जवानों के क्वार्टर का वर्षों से नहीं हुआ मेंटेनेंस
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एसपी साहब! ट्रेन गुजरने पर कांपते हैं पुलिस लाइन के क्वार्टर, बैरक की हालत भी जर्जर
हर दिन जान हथेली पर रख गुजरती है रात जवानों के क्वार्टर का वर्षों से नहीं हुआ मेंटेनेंस देवघर : पुलिस विभाग के वरीय अधिकारी जहां चैन की नींद लेते हैं, वहीं जवानों की हर रात बैरक में जान हथेली पर रख गुजरती है. पुलिस लाइन में बैरक तक जाने के लिए पक्की सड़क का […]
देवघर : पुलिस विभाग के वरीय अधिकारी जहां चैन की नींद लेते हैं, वहीं जवानों की हर रात बैरक में जान हथेली पर रख गुजरती है. पुलिस लाइन में बैरक तक जाने के लिए पक्की सड़क का निर्माण तक नहीं किया गया है. जहां वरीय अधिकारियों का क्वार्टर नंबर वन है, वहीं जवानों का बैरक सालों से मेंटनेंस नहीं हुआ है.
किसी भी बैरक का रंग रोगन भी नहीं हुआ है. सभी बैरक बदरंग हो गये हैं. पुलिस लाइन के पीछे से जब ट्रेन गुजरती है, तो पूरे बैरक में कंपन होने लगता है. जवानों की मानें तो लगता है कि क्वार्टर अब गिरा की तब गिरा.
पूरे लाइन में सड़क नहीं
पुलिस लाइन की दशा देश के विकास को मुंह चिढ़ाने जैसा प्रतित होता है. यहां जवानों के क्वार्टर तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क का निर्माण अबतक नहीं किया गया है. बरसात में पूरा पुलिस लाइन पूरी तरह से नर्क में तब्दील हो जाता है. सड़क कच्ची होने की वजह से पूरे इलाके में कीचड़ की वजह से जवान अपनी मोटरसाइकिल तक नहीं निकाल पाते है. कई बार बड़ी गाड़ियां भी कीचड़ में फंस जाती है.
जवान की परवाह नहीं
जो जवान देश के जनप्रतिनिधि से लेकर वरीय अधिकारियों की सुरक्षा में दिन रात तैनात रहते हैं, इन जवानों की सुध लेने वाला कोई नहीं है. ये लोग बदहाली की जिंदगी जी रहे हैं. बैरक के अधिकतर क्वार्टर पूरी तरह से जर्जर हैं. किसी का रंगरोगन तक ठीक तरह से नहीं दिखता है. क्वार्टर को देखने से लगता है कि यहां इंसानों का नहीं भूतों का डेरा होगा. इस संबंध में एसपी नरेंद्र कुमार सिंह से उनके मोबाइल पर संपर्क करने की कोशिश की गयी, तो उन्होंने फोन नहीं उठाया व कई बार फोन काट दिया.
पुलिस लाइन में लकड़ी पर बनता है खाना, एक टाइम खाने के लिए जवानों को चुकाने होते हैं 32 से 35 रुपये
देवघर : पुलिस लाइन में रहनेवाले जवानों की परेशानी की जितनी बात करें कम है. खाना बनाने से लेकर खाने तक में जवानों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. जवानों के बैरक में सिलिंडर तो है, लेकिन उसमें गैस नहीं है. पेट भरने के लिए जवानों को लकड़ी में खाना बनाना पड़ता है. रसोइया को इसके लिए काफी परेशानी झेलनी होती है.
पुलिस लाइन के सूत्रों की मानें तो यहां अधिकारियों के खौफ की वजह से कोई कुछ बोलने से डरता है. वहीं दिन भर में 15 से 16 घंटे तक ड्यूटी करने वाले जवानों के खाने की बात करें, तो जवानों के खाने में विटामिन से कैलोरी तक का हिसाब ठीक नहीं है. जवान भात व रोटी के अलाव आलू की सब्जी खाकर ड्यूटी करने को मजबूर हैं.
सूत्रों की मानें तो जवानों की अगर ठीक से जांच करायी जाये, तो इनके शरीर में विटामिन की कमी मिलेगी. इसकी वजह से अधिकतर जवान चिड़चिड़ापन का शिकार हो रहे हैं. मेस में दो वक्त का खाना बनता है. दोपहर में दाल, चावल, आलू की सब्जी, पापड़, आलू का भूजिया व चटनी, वहीं रात में रोटी व सब्जी होती है.
जवानों को मेस में खाने के एवज में एक टाइम का 32 से 35 रुपये चुकाना होता है. बैरक में रहने वाले जवानों से मांसाहारी भोजन के संबंध में पूछा गया, तो बताया कि मांस-मछली की व्यवस्था नहीं होती. अब सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस खाने में जवान कितने स्वस्थ्य रह सकते हैं.
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