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बड़ी उपलब्धि है जीसैट-29

गौहर रजा साइंटिस्ट gauhar_raza@yahoo.com भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से संचार सैटेलाइट ‘जीसैट-29’ का सफल प्रक्षेपण करके हमें विज्ञान और तकनीक की एक नयी सीढ़ी पर चढ़ने के लायक बना दिया है. देश के सबसे ताकतवर जीएसएलवी-एमके3-डी2 रॉकेट से भेजा गया यह देश का 33वां संचार सैटेलाइट है. इसी तरह […]

गौहर रजा
साइंटिस्ट
gauhar_raza@yahoo.com
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से संचार सैटेलाइट ‘जीसैट-29’ का सफल प्रक्षेपण करके हमें विज्ञान और तकनीक की एक नयी सीढ़ी पर चढ़ने के लायक बना दिया है. देश के सबसे ताकतवर जीएसएलवी-एमके3-डी2 रॉकेट से भेजा गया यह देश का 33वां संचार सैटेलाइट है. इसी तरह सारे सफल प्रक्षेपणों के रास्ते चलकर ही हमने चंद्रयान और मंगलयान तक भेजा है.
अाज क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी में हमने जो तरक्की की है, उसी का सबूत है जीसैट-29 का यह सफल प्रक्षेपण. इससे दूसरी कई सीमाएं भी खुल गयी हैं और हम कुछ नये आसमान छू सकते हैं. इंटरनेट कनेक्टिविटी की सुगमता इससे बढ़ेगी और संचार-व्यवस्था में सुधार आयेगा. कह सकते हैं कि विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में बीते सत्तर सालों से लगातार काम कर रहे हमारे वैज्ञानिकों की मेहनत का यह नतीजा है, क्योंकि यह काम एक-दो सालाें में नहीं हो सकता है.
दरअसल, विज्ञान और तकनीक एक गहन शोध मांगते हैं, जिनमें सालों-साल का समय खर्च होता है. यह प्रक्षेपण उस माहौल की देन है कि जहां एक जमाने में देश का गरीब आदमी भी इस बात के लिए तैयार दिखता था कि हम आधी रोटी खायेंगे, लेकिन विज्ञान और तरक्की को खूब विकसित करेंगे. आज भी जरूरी है कि देश में विज्ञान का माहौल बने और हम तरक्की के नये आयाम गढ़ें.
निश्चित रूप से जीसैट-29 का प्रक्षेपण हमारे देश के लिए एक बड़ी उपलब्धि है और इसके लिए वैज्ञानिकों की जितनी भी सराहना की जाये, कम है.
आज देश का जो माहौल है, उसमें एक तरफ जहां ज्ञान-विज्ञान और तकनीक पर हमले हो रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ विज्ञान का बजट भी काटा जा रहा है. यह बहुत चिंता का विषय है, क्योंकि विज्ञान के बजट में कटौती का खामियाजा हमें अगले कई सालों तक भुगतना पड़ सकता है. वैज्ञानिक इस बारे में भी चिंतन-मनन करते हैं.
कोई भी देश किसी एक टेक्नोलॉजी के दम पर तरक्की नहीं कर सकता. कृषि हो या पर्यावरण, जलवायु हो या ऑर्गेनिक तकनीक, ऐसे बहुत से बुनियादी क्षेत्रों में मास्टर होना पड़ेगा. अगर हमें मैन-मिशन (साल 2021 तक मानवयुक्त मिशन का लक्ष्य है) को सफल बनाना है, तो विज्ञान और तकनीक के कई क्षेत्रों में मास्टर होना होगा.
अगर हम सिर्फ मैन-मिशन की योजना बनाकर चलेंगे, तो भले यह तकनीकी तौर पर सफल हो जाये, लेकिन मानवीय तौर पर इसका कोई मतलब नहीं होगा, क्योंकि बाकी सारे क्षेत्र में हम कमजोर होंगे. नेहरू के जमाने से ही देश के अंदर यह माहौल बनाया गया था कि देश की तरक्की करनी है, तो हमें विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में अभूतपूर्व तरक्की करनी होगी.
इस उपलब्धि के साथ अगर यह पूछा जाये कि अंतरिक्ष विज्ञान में हम कहां हैं, तो इसका जवाब यही है कि इस मामले में हम दुनिया में चौथे पायदान पर खड़े हैं. लेकिन, यहीं एक बात यह भी कहना जरूरी है कि अगर वैज्ञानिक संस्थाएं और विज्ञान का माहौल देश में नहीं बनायेंगे, तो जवाब यह होगा कि हम विज्ञान और तकनीक में पिछड़ रहे हैं.
यह बिल्कुल वैसी ही बात है कि किसी एक किताब को छापकर कोई जबान अमीर नहीं हो सकती, और न खुद का विस्तार ही कर सकती है, चाहे वह किताब कितनी ही उम्दा क्यों न हो. हमें उसके बाद भी ढेरों किताबें छापनी होगी और कई विषयों पर छापनी होगी, तभी वह जबान अमीर होगी. इसी तरह विज्ञान और तकनीक किसी एक क्षेत्र में विकसित होकर पूरे देश को तरक्की नहीं दे सकते. उन्हें हर क्षेत्र को छूना होगा.
वैसे तो कोई क्षेत्र वैज्ञानिक विकास से अछूता नहीं रह गया है, लेकिन आज फिजिक्स और नैनोटेक्नोलॉजी में निवेश बढ़ाने की जरूरत है. हमारे वैज्ञानिक शोधों में एक बात का हमेशा ध्यान रखा जाना चाहिए कि तमाम वैज्ञानिक उपलब्धियां आम जनता को फायदा पहुंचानेवाली हों, तभी देश की तरक्की होती है.
इसरो ने इस मामले को अच्छी तरह समझा भी है और इसलिए वह निरंतर देश को नयी उपलब्धियों से ऊंचा उठा रहा है. यहीं एक और चीज बहुत महत्वपूर्ण है, जिस बारे में पिछले दस साल से मैं कह रहा हूं. वह बात यह है कि हमने अंतरिक्ष के क्षेत्र में टेक्नोलॉजी को मास्टर कर लिया है, अब हमें विज्ञान की तरफ बढ़ने की जरूरत है.
अभी तक हम ज्यादातर टेक्नोलॉजी में ही फोकस करते रहे हैं. जब हम विज्ञान में उतरते हैं, तो हमें इलेक्ट्रॉनिक में मास्टर करना होगा, फिजिक्स और बायोलॉजी में भी मास्टर करना होगा, नैनो-साइंस और कंप्यूटर साइंस में भी मास्टर करना होगा, मटीरियल साइंस और फ्यूल टेक्नोलॉजी में मास्टर करना होगा. इन सबके बिना हमारी तरक्की अधूरी ही मानी जायेगी.
जीसैट-29 अब तक का सबसे बड़ा लांच है हमारे देश में. यह इसलिए संभव हुआ, क्योंकि हमने क्रायोजेनिक इंजन बना लिया है. इस रास्ते पर बढ़ते हुए हमें अमेरिका ने बहुत रोकने की कोशिश की. अमेरिका लगातार कोशिश करता रहा कि भारत में क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी न आने पाये, लेकिन हम पीछे नहीं हटे. अब हमारे लिए मैन-मिशन बहुत करीब हो गया है.
हालांकि, मैन-मिशन के लिए साल 2021 तक का लक्ष्य रखा गया जरूर है, लेकिन इसके लिए इससे ज्यादा का वक्त और ज्यादा निवेश की जरूरत है. हमें पूरी उम्मीद है कि आनेवाले समय में हम अपने मैन-मिशन में भी जरूर कामयाग होंगे.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

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