।। गुरुस्वरूप मिश्रा ।।
रांची : दिव्यांग. नाम लेते ही शारीरिक-मानसिक रूप से बेबस चेहरा जेहन में तैरने लगता है. उनके प्रति दया का भाव स्वत: जगने लगता है. दिव्यांगता महज शारीरिक-मानसिक कमजोरी है. अपने आत्मविश्वास व हौसले की बदौलत समाज के दिव्यांगों ने बदलाव की मोटी लकीर खींची है.
इनका सर्वांगीण विकास कर इनके चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए राज्य सरकार की ओर से भी कई प्रयास किये जा रहे हैं. इसका असर हुआ है और दिव्यांगों की जिंदगी पहले से ज्यादा आसान हुई है. दया दिखाने की बजाए समाज इनके प्रति संवेदनशील हो जाएं, तभी वह खुद को समाज की मुख्यधारा में होने का अहसास कर पायेंगे.
दिव्यांगों का बढ़ा है हौसला
वक्त के साथ दिव्यांगों की ताकत बढ़ी है. उनका हौसला बढ़ा है. दिव्यांगता का रोना रोने की बजाए अब दिव्यांग उसे ताकत बना रहे हैं. उनका आत्मविश्वास इस कदर बढ़ा है कि वह हर क्षेत्र में सामान्य लोगों की तरह प्रदर्शन कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं. पहले जानकारी व सुविधाओं का घोर अभाव था. खासकर ग्रामीण इलाके के लोग गरीबी के कारण भी स्थानीय इलाज ही करा पाते थे.
आखिरकार थक-हारकर दिव्यांग उसे नियति मान लेते थे. इस कारण कई प्रतिभाएं यूं ही दम तोड़ देती थीं. उन्हें मंच नहीं मिल पाता था. समाज भी उन्हें हीनभावना से देखता था. अब जागरूकता व इनके प्रति संवेदनशीलता पहले से बढ़ी है. इस कारण अब धीरे-धीरे वह समाज की मुख्यधारा में खुद को शामिल पाने लगे हैं.
सर्वांगीण विकास पर जोर
एक समय था, जब दिव्यांगों को सिर्फ पेंशन दी जाती थी. धीरे-धीरे उन्हें ट्राई साइकिल व कृत्रिम अंग समेत अन्य जरूरी सुविधाएं दी जाने लगीं. इनकी शिक्षा के लिए स्पेशल स्कूल खोले गये. इन्हें रोजगार से जोड़ने की कवायद की जा रही है. राज्य सरकार की ओर से इनके सर्वांगीण विकास पर जोर दिया जा रहा है.
साढ़े सात लाख से अधिक हैं दिव्यांग
2011 की जनगणना के अनुसार राज्य में 7,69,980 दिव्यांग हैं. मार्च 2018 तक के आंकड़े के अनुसार दिव्यांगता प्रमाणपत्र प्राप्त दिव्यांगों की संख्या 4,58,024 है. इस लिहाज से राज्य में 59.48 फीसदी दिव्यांगों को प्रमाण पत्र मिल चुका है. शेष 3,11,956 दिव्यांगों की श्रेणी में वैसे भी दिव्यांग हैं, जो संपन्न घराने से हैं और इसे लोकलाज के कारण छिपाते हैं.
अब दिव्यांगों की 21 श्रेणियां
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 के तहत अब नि:शक्तता के 21 प्रकार हो गये हैं. पहले सात प्रकार की दिव्यांगता ही इसमें शामिल थी. इसकी पहचान इस प्रकार कर सकते हैं.
(1) मानसिक मंदता-समझने व बोलने में कठिनाई.
(2) ऑटिज्म-गुमसुम रहना, आंखें मिलाकर बातें नहीं करना, किसी कार्य पर ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई.
(3) सेरेब्रल पल्सी- पैरों में जकड़न, चलने में कठिनाई, हाथ से काम करने में दिक्कत.
(4) मानसिक रोगी-अस्वाभाविक व्यवहार, खुद से बात करना, मति भ्रम, किसी से डर या भय.
(5) श्रवण बाधित-बहरापन, ऊंचा सुनना या कम सुनना.
(6) मूक नि:शक्तता-बोलने में दिक्कत, सामान्य बोली से अलग बोलना, बोली कोई समझ नहीं पा रहा हो.
(7) दृष्टि बाधित-देखने में कठिनाई, पूर्ण दृष्टिहीन.
(8) अल्प दृष्टि-कम दिखना, 60 वर्ष से कम आयु की पहचान नहीं कर पाना.
(9) चलन नि:शक्तता-हाथ या पैर या दोनों की नि:शक्तता.
(10) कुष्ठ रोग से मुक्त-हाथ या पैर या अंगुलियों में विकृति, टेढ़ापन, शरीर की त्वचा पर रंगहीन धब्बे, हाथ या पैर या अंगुलियां सुन्न हो जाना.
(11) बौनापन-व्यक्ति का कद व्यस्क होने पर भी 4 फुट 10 इंच या 147 सेमी या इससे कम होना.
(12) तेजाब हमला पीड़ित-तेजाब हमले से शरीर के अंग, हाथ, पैर, आंख समेत अन्य अंगों का क्षतिग्रस्त या असामान्य होना.
(13) मांसपेशी दुर्विकास-मांसपेशियों में कमजोरी एवं विकृति.
(14) स्पेसिफिक लर्निंग डिसएबिलिटी-बोलने, सुनने, लिखने, साधारण जोड़, गुणा, भाग में आकार, भार, दूरी इत्यादि समझने में परेशानी.
(15) बौद्धिक नि:शक्तता-सीखने, समस्या का समाधान एवं तार्किकता इत्यादि में कठिनाई, अनुकूल व्यवहार में दिक्कत.
(16) मल्टीपल स्कलेरोसिस-दिमाग एवं रीढ़ की हड्डी के समन्वय में परेशानी.
(17) पार्किंसंस रोग-हाथ, पैर, मांसपेशियों में जकड़न, तंत्रिका तंत्र प्रणाली संबंधी दिक्कत.
(18) हीमोफिलिया (अधिरक्त स्त्राव)- चोट लगने पर अत्यधिक खून बह जाना, खून बहना बंद नहीं होना.
(19) थैलेसीमिया- खून में हीमोग्लोबिन की विकृति, खून की मात्रा कम होना.
(20) सिकल सेल रोग- खून की अत्यधिक कमी, खून की कमी से शरीर का अंग खराब होना.
(21) बहु नि:शक्तता- दो या दो से अधिक नि:शक्तता से ग्रसित होना.
नौकरी में अब चार फीसदी आरक्षण
झारखंड सरकार ने दिव्यांगों को सरकारी नौकरियों में चार फीसदी तथा शैक्षणिक संस्थानों में नामांकन में पांच फीसदी आरक्षण देने की व्यवस्था की है. पहले दिव्यांगों (बेंच मार्क निःशक्तता, 40 प्रतिशत से कम नहीं) को राज्य में तीन फीसदी आरक्षण मिलता था, जिसे अब बढ़ा कर चार फीसदी कर दिया गया है.
मुख्यमंत्री रघुवर दास की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट में गरीबी उन्मूलन से जुड़ी विभिन्न योजनाओं में भी उन्हें पांच फीसदी आरक्षण की स्वीकृति दे दी गयी है. सरकार के इस फैसले से राज्य के करीब साढ़े सात लाख दिव्यांग लाभान्वित हैं.
40 फीसदी या इससे अधिक दिव्यांग, तो मिलेगी सुविधा
आप झारखंड के निवासी हैं. शारीरिक या मानसिक तौर पर अगर आप 40 फीसदी या इससे अधिक दिव्यांग हैं और इनकम टैक्स के दायरे में नहीं आते हैं, तो आप दिव्यांगता की श्रेणी में हैं और आप सरकार की योजनाओं का लाभ ले सकते हैं. 40 फीसदी से कम दिव्यांगता का प्रतिशत होने पर दिव्यांगता के तहत मिलने वाली सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिलता है.
पांच साल के दिव्यांगों का बन रहा प्रमाण पत्र
झारखंड देश का पहला राज्य है, जहां पांच साल की उम्र वाले दिव्यांगों का भी प्रमाण पत्र बनाया जा रहा है, ताकि उन्हें सरकारी सुविधाओं का लाभ मिल सके. अमूमन राज्यों में 18 वर्ष की उम्र से दिव्यांगता प्रमाण पत्र बनाया जाता है. झारखंड के सभी सदर अस्पतालों में दिव्यांगता प्रमाण पत्र बनाने की सुविधा है.
दिव्यांग प्रमाणपत्र के मॉडल को अन्य राज्यों ने अपनाया
दिव्यांग जनों के लिए लागू किये गये दिव्यांगता प्रमाण पत्र के मॉडल को देश के अन्य राज्यों ने भी अपनाया है. यहां जिले एवं प्रखंडों में विशेष चलंत न्यायालय आयोजित कर दिव्यांग जनों की समस्याओं का त्वरित निदान किया जाता है. सरकारी अस्पतालों में विशेष शिविर लगाकर दिव्यांग प्रमाणपत्र बनाया जाता है.
झारखंड दिव्यांग जन अधिकार नियमावली 2018
राज्य में दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सुविधा युक्त जगह, सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों की नौकरियों में समान अवसर, अत्याचार या भेद-भाव से सुरक्षा दिलाने के उद्देश्य से झारखंड दिव्यांग जन अधिकार नियमावली 2018 बनायी गयी है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ लोकोमोटर डिसएबिलिटीज दिव्यांगों के लिए पूरे राज्य में समग्र क्षेत्रीय केंद्र भी चलाएगा. यह सीआरसी उनकी विशेष शिक्षा और पुनर्निवास पर ध्यान केंद्रित करेगी. इस नियमावली में दिव्यांगों के अधिकारों और नियमों को अधिक स्पष्ट किया गया है.
कैसे बनाएं दिव्यांगता सर्टिफिकेट
अगर आपको चोट लग गयी है और आप दिव्यांग हो गये हैं, तो आपको चोट लगे हुए कम से कम छह महीने हुए होने चाहिए. क्योंकि डॉक्टरों का मानना है कि अगर आपको चोट लग गयी है, तो आप छह महीने के अंदर ठीक हो सकते हैं. इसलिए दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाने के लिए कम से कम चोट लगे हुए छह महीने होने चाहिए.
इसके अलावा अगर कोई बच्चा जन्म से ही दिव्यांग हैं, तो वह कभी भी दिव्यांग सर्टिफिकेट बनाने के लिए आवेदन कर सकता है. आवेदन करने के लिए आपको सदर अस्पताल जाकर एक आवेदन फॉर्म भरना होगा. इस आवेदन पत्र के साथ आपको अपना राशन कार्ड, वोटर आईडी कार्ड या अगर वोटर कार्ड नहीं है, तो अपना आधार कार्ड या फिर कोई भी अपना आइडी प्रूफ कार्ड दे सकते हैं.
आपको अपने दिव्यांग अंग की दो फोटो भी इसके साथ लगानी होगी. एक फोटो अपने चेहरे की देनी होगी. दिव्यांग प्रमाण पत्र फॉर्म भरने के बाद आप इसे संबंधित अधिकारी को जमा करा दें. जब आप दिव्यांग फॉर्म जमा कराएंगे, तो आपको एक पर्ची दी जाएगी, जिसमें आपका मेडिकल टेस्ट लिखा हुआ होगा. मेडिकल टेस्ट में पूरे शरीर की जांच की जाएगी. स्पेशल उस अंग को चेक किया जायेगा, जो दिव्यांगता के अंदर आता है.
इस मेडिकल टीम में आई सर्जन, इएनटी सर्जन, आर्थोपेडिक सर्जन, मानसिक चिकित्सालय के डॉक्टर और एक फिजिशियन शामिल होते हैं. जांच के बाद आपका सर्टिफिकेट जारी होगा. इसमें दिव्यांगता का प्रतिशत लिखा होगा.
1.90 लाख दिव्यांगों को मिलती है पेंशन
झारखंड में एक लाख 90 हजार दिव्यांग पेंशनधारी हैं. इसमें स्वामी विवेकानंद नि:शक्त स्वावलंबन प्रोत्साहन योजना के तहत एक लाख 70 हजार दिव्यांगों को पेंशन दी जा रही है. 20 हजार दिव्यांगों को राष्ट्रीय इंदिरा गांधी दिव्यांग पेंशन योजना के तहत पेंशन दी जा रही है.
छह सौ रुपये दिव्यांग पेंशन
राज्य में पांच वर्ष की आयु से ही दिव्यांग जनों को छह सौ रुपये प्रतिमाह की पेंशन दी जाती है. अन्य राज्यों की तुलना करें, तो अन्य राज्यों में यह राशि दिव्यांग जनों को बालिग होने पर यानी 18 वर्ष से दी जाती है. स्वामी विवेकानंद नि:शक्त स्वावलंबन प्रोत्साहन योजना एवं राष्ट्रीय इंदिरा गांधी दिव्यांग पेंशन योजना के तहत दिव्यांगों को पेंशन दी जाती है.
स्वामी विवेकानंद सोसाइटी से सशक्त होंगे दिव्यांग
दिव्यांग ट्रस्ट की जगह स्वामी विवेकानंद दिव्यांग जन विकास सोसाइटी बनायी जायेगी. इससे असाध्य रोग से पीड़ित एवं प्रतिभावान दिव्यांगों की मदद की जायेगी. उन्हें रोजगार से जोड़ने के लिए ऋण भी उपलब्ध कराया जायेगा. इस तरह दिव्यांगों को सशक्त किया जायेगा.
दिव्यांगों से भेदभाव करने पर सजा का प्रावधान
नि:शक्त व्यक्ति अधिकार विधेयक 2014 (राइट्स ऑफ पर्सन द डिसएबिलिटी बिल-RPDB) को राज्यसभा ने सर्वसम्मति से पारित कर दिया. यह विधेयक फरवरी 2014 से लंबित था. साल 2016 में यह विधेयक पारित हुआ और अब इसे नि:शक्त व्यक्ति अधिकार विधेयक 2016 माना जाता है. इसमें दिव्यांगों से भेदभाव किये जाने पर छह महीने से लेकर दो साल तक की सजा और अधिकतम पांच लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान है.
दिव्यांग दया नहीं, बल्कि कर्तव्य के पात्र हैं : रघुवर दास
मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा कि दिव्यांगों का लालन-पालन केवल परिवार की जिम्मेदारी नहीं है. ये राज्य एवं समाज की भी जिम्मेदारी है. दिव्यांग हमारे लिए दया या करूणा के पात्र नहीं, बल्कि कर्तव्य के पात्र होने चाहिए. शारीरिक क्षमता में कमी होने के बाद भी दिव्यांगों ने हर क्षेत्र में अपनी पहचान बनायी है. दिव्यांगजनों का कौशल विकास कर उन्हें रोजगार से जोड़ा जा रहा है. इससे वो भी राज्य के विकास में सक्रिय भूमिका निभा सकेंगे.