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सुरक्षा परिषद् में सुधार

शांति और सुरक्षा के साथ विश्व व्यवस्था की स्थापना के लक्ष्य से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का गठन हुआ था, परंतु वैश्विक राजनीति में व्यापक और निरंतर परिवर्तन के अनुरूप इस संस्था के संगठन और संरचना में अपेक्षित सुधार नहीं हुए हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मौजूद सुरक्षा चुनौतियों से निपटने में सुरक्षा परिषद् की अरुचि […]

शांति और सुरक्षा के साथ विश्व व्यवस्था की स्थापना के लक्ष्य से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का गठन हुआ था, परंतु वैश्विक राजनीति में व्यापक और निरंतर परिवर्तन के अनुरूप इस संस्था के संगठन और संरचना में अपेक्षित सुधार नहीं हुए हैं.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मौजूद सुरक्षा चुनौतियों से निपटने में सुरक्षा परिषद् की अरुचि और चीन जैसे स्थायी सदस्य द्वारा आतंकवाद की खुलेआम पैरोकारी से स्पष्ट है कि अगर परिषद् के कामकाज में समय रहते सुधारों की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई, तो विश्व व्यवस्था नये संकट के मुहाने पर होगी. संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने उचित ही कहा कि विश्व शांति हेतु परिषद् में सुधार बहुत जरूरी है, अन्यथा विश्व व्यवस्था के सामने टुकड़ों में बिखर जाने का खतरा है.
आतंकी मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित कराने के भारत के प्रयासों में चीन द्वारा बार-बार अड़ंगा लगाने पर अकबरुद्दीन ने परिषद् की प्रतिबंध समिति की कार्यशैली पर भी रोष जाहिर किया. इतना ही नहीं, सीरिया और यमन जैसे संकटों का समाधान निकाल पाने में भी यह संस्था विफल रही है. पांच स्थायी सदस्य देशों के हितों के अनुरूप निर्णय लेने या टाल देने के भी अनेक उदाहरण हैं. कभी प्रस्ताव की भाषा पर सहमति नहीं बनती, तो कभी वीटो के विशेषाधिकार का उपयोग होता है. ये कमियां यही इंगित करती हैं कि इस संस्था की कार्य-प्रणाली में सबसे बड़ा अवरोध इसकी व्यवस्थागत खामियां ही हैं.
आज दुनिया के विभिन्न हिस्सों में हिंसा, गृहयुद्ध, पलायन, गरीबी, भुखमरी जैसे संकट मानवीय जीवन के लिए विनाशकारी होते जा रहे हैं. इन समस्याओं से निपटने के लिए सामूहिक उत्तरदायित्व की भावना से प्रेरित मजबूत विश्व नेतृत्व की जरूरत है.
लेकिन, कुछ ताकतवर देश इसे बाधित कर रहे हैं. उदाहरण के तौर पर, अमेरिका द्वारा बहुपक्षवाद के विरोध को रेखांकित किया जा सकता है. सुरक्षा परिषद् में समुचित प्रतिनिधित्व और व्यवस्थागत सुधारों के मसले पर ब्राजील, जर्मनी और जापान के साथ भारत लंबे अरसे से प्रयासरत है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और तेज गति से उभरती अर्थव्यवस्था का देश होने के नाते भारत ने हमेशा संयुक्त राष्ट्र के शांति और सहयोग के कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भागीदारी की है.
अंतरराष्ट्रीय राजनीति और आर्थिकी में भी हमारा सकारात्मक योगदान रहा है. परिषद् के स्थायी सदस्य के रूप में जवाबदेह भूमिका निभाने की क्षमता के भारतीय दावे का यह एक ठोस आधार है. भारत के साथ एशिया, अफ्रीका और दक्षिणी अमेरिका के कई देश परिषद् में एक समान प्रतिनिधित्व, सदस्यता प्रारूपों में बदलाव और वीटो शक्ति के पुुनर्परीक्षण की मांग को लेकर बीते कई दशकों से मुखर हैं.
बदलती दुनिया और विभिन्न देशों की आकांक्षाओं को यदि परिषद् में सम्मान नहीं मिलेगा, तो यह न सिर्फ संयुक्त राष्ट्र के लिए आत्मघाती होगा, बल्कि वैश्विक बिखराव को भी आमंत्रण होगा.

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