नयी दिल्ली: उसने पिता को ‘बेटी को खिला के क्या करोगे’ की सलाह देने वालों को भी सुना और खुद ‘तू क्या सेहवाग के साथ ओपन करेगी’ जैसे ताने भी सुने. लेकिन, इससे हरमनप्रीत कौर का हौसला कम नहीं हुआ. आज उसका बल्ला हर सवाल का जवाब दे रहा है. उसकी तुलना किसी और से नहीं, बल्कि उसके आदर्श क्रिकेटर रहे वीरेंद्र सेहवाग से की जा रही है.
वह 20 जुलाई, 2017 का दिन था, जब इंगलैंड के डर्बी में आॅस्ट्रेलिया की मजबूत टीम के खिलाफ हरमनप्रीत के बल्ले की धमक पूरे क्रिकेट जगत ने सुनी थी. इसके ठीक 477 दिन बाद गुयाना के प्रोविडेंस में उनके बल्ले से एक और धमाकेदार पारी निकली है, जिस पर पूरा विश्व क्रिकेट गौरवान्वित महसूस कर रहा है.
Harmanpreet Kaur got the @WorldT20 off to a RAPID start with a sensational display of hitting in Guyana. Here are her biggest and best shots, delivered by @Oppo #FlashCharge. pic.twitter.com/KOSrNbDGOJ
— ICC (@ICC) November 10, 2018
इस उपलब्धि के साथ ही हरमनप्रीत टी-20 अंतरराष्ट्रीय में शतक जड़ने वाली पहली भारतीय महिला क्रिकेटर बन गयीहै. यह वही हरमनप्रीत है, जिसे कभी हाॅकी की स्टिक थमायी गयी थी और जिसे क्रिकेट का ककहरा सीखने के लिए घर से 30 किमी दूर जाना पड़ता था.
वॉलीबॉल और बास्केटबाॅल के खिलाड़ी रहे हरमंदर सिंह भुल्लर चाहते थे कि बेटी हाॅकी खिलाड़ी बने. लेकिन हरमनप्रीत को तो बस क्रिकेट खेलना था. और इसकी नींव उसी दिन पड़ गयी थी, जब हरमनप्रीत का जन्म हुआ था.
वह आठ मार्च का दिन था, जिसे दुनिया अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाती है. वर्ष था 1989. पंजाब के मोगा में रहने वाले हरमंदर सिंह के घर पहली संतान आने वाली थी. उनको लगा बेटा ही होगा और वह लड़कों की बड़ी शर्ट खरीद लाये.
संयोग देखिये कि उस शर्ट पर एक बल्लेबाज का चित्र बना हुआ था, जो ‘ड्राइव’ कर रहा था. हरमनप्रीत उस शर्ट पर लिखे ‘गुड बैटिंग’ यानि ‘अच्छी बल्लेबाजी’ शब्द को अब पूरी तरह से चरितार्थ करके दुनिया भर में अपनी बल्लेबाजी का लोहा मनवा रही है.
हरमनप्रीत के लिए यहां तक पहुंचने की राह कतई आसान नहीं रही. यह अलग बात है कि पिता हरमंदर और मां सतविंदर कौर ने हमेशा बेटी का साथ दिया. जब पिता ने देखा कि बेटी हाथ में हाॅकी की स्टिक लेकर क्रिकेट खेल रही है, तो उनको भी लगने लगा कि उनकी बेटी क्रिकेट के लिए ही बनी है.
मोगा में कोई क्रिकेट अकादमी नहीं थी. हरमनप्रीत अपने छोटे भाई गुरजिंदर भुल्लर और उनके दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलती थी. उस दौर में महिला क्रिकेट खास लोकप्रिय नहीं था. इसलिए अक्सर हरमनप्रीत को उसके भाई के दोस्त चिढ़ाते थे, ‘हमारे पास तो विकल्प (पुरुष क्रिकेट) है, तू क्या सेहवाग के साथ ओपन करेगी.’
क्रिकेट प्रेम को लगे पंख
हरमनप्रीत के क्रिकेट प्रेम को तब पंख लगे, जब ज्ञान ज्योति स्कूल अकादमी के कोच कमलदीश सिंह सोढ़ी की नजर पर उन पर पड़ी. लेकिन, घर से 30 किमी दूर बेटी को भेजना और उसका पूरा खर्च उठाना जिला अदालत में क्लर्क पद पर कार्यरत हरमंदर सिंह के लिए आसान नहीं था. सोढ़ी ने इसका भी हल निकाला. हरमनप्रीत के लिए मुफ्त कोचिंग और ठहरने की व्यवस्था करके.
यही वजह है कि सोढ़ी को हरमनप्रीत अपना गॉडफादर मानती है. और आखिर में सात मार्च, 2009 को हरमनप्रीत को आॅलराउंडर के रूप में भारतीय टीम की तरफ से पहला एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने का मौका मिल गया. ऑफ स्पिन करने वाली यह खिलाड़ी जल्द ही टी-20 टीम की सदस्य भी बन गयी, लेकिन वर्ष 2013 तक अपनी खास पहचान नहीं बना पायी.
सेहवाग की तरह एक ही मूलमंत्र
इंग्लैंड के खिलाफ मुंबई में वर्ष 2013 में उन्होंने नाबाद 107 रन की पारी खेली, जिसकी विरोधी टीम की कप्तान चार्लोट एडवर्ड्स ने भी तारीफ की थी. इसके बाद हरमनप्रीत ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्हें बचपन से केवल सेहवाग को बल्लेबाजी करते हुए देखना पसंद था. सेहवाग की तरह उनका भी मूलमंत्र है ‘गेंद देखो और हिट करो’.
वर्ष 2016 में जब हरमनप्रीत ने अजिंक्य रहाणे को नेट्स पर बल्लेबाजी करते हुए देखा, तो तब लगा कि ‘बल्लेबाजी के लिए धैर्य’ भी जरूरी है. हरमनप्रीत हालांकि अब भी सेहवाग के मूलमंत्र पर ही चलती है.
आॅस्ट्रेलिया के खिलाफ वनडे विश्व कप 2017 के सेमीफाइनल में खेली गयी नाबाद 171 रन की पारी हो या न्यूजीलैंड के खिलाफ विश्व टी-20 में खेली गयी 103 रन की पारी, हरमनप्रीत को देखकर लगता है कि उनका लक्ष्य गेंद को सीमा पार पहुंचाना ही होता है.
विस्फोटक तेवर
अपने विस्फोटक तेवरों के कारण हीहरमनप्रीतकौर आॅस्ट्रेलिया के बिग बैश लीग और इंगलैंड की किया सुपर लीग में खेलने वाली पहली भारतीय क्रिकेटर बनी. अब वह भारत की टी-20 टीम की कप्तान हैं और यही आक्रामकता उसकी कप्तानी में दिखती है.
सचिन की सिफारिश पर रेलवे में मिली नौकरी
पूर्व क्रिकेटर और अब सीओए सदस्य डायना एडुल्जी की पहल और सचिन तेंडुलकर की सिफारिश पर रेलवे में नौकरी पाने वाली हरमनप्रीत का पिछले दो वर्षों के दौरान विवादों से भी वास्ता पड़ा. महिला टीम के कोच तुषार अरोठे ने पद से हटाये जाने के बाद हरमनप्रीत पर निशाना साधा और पंजाब पुलिस में नौकरी मिलने पर उनकी डिग्री को जाली बताया गया, लेकिन यह 29 वर्षीय क्रिकेटर सीख गयी है कि मैदान से इतर की चीजें उसका ध्यान भंग नहीं कर सकती हैं.