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दक्षिण भारत में मनाया जाता है ‘कार्तिगई दीपम’

केरल और तमिलनाडु में कार्तिगई दीपम मनाया जाता है. यह प्रति महीने पूर्णिमा के दिन मासिक कार्तिगई एवं कार्तिक महीने (नवंबर-दिसंबर) में भव्य रूप से वार्षिक तौर पर कार्तिगई दीपम के रूप में मनाया जाता है. दक्षिण भारत में इसका महत्व दीपावली जैसा ही है. इस दिन तेल के दीपक से घर को सजाया जाता […]

केरल और तमिलनाडु में कार्तिगई दीपम मनाया जाता है. यह प्रति महीने पूर्णिमा के दिन मासिक कार्तिगई एवं कार्तिक महीने (नवंबर-दिसंबर) में भव्य रूप से वार्षिक तौर पर कार्तिगई दीपम के रूप में मनाया जाता है. दक्षिण भारत में इसका महत्व दीपावली जैसा ही है. इस दिन तेल के दीपक से घर को सजाया जाता है. कार्तिगई दीपम के साथ छह नक्षत्रों (तत्पुरुषम्, अघोरम, सद्योजतम, वामदेवम्, ईसनम और अधोमुखम) की कहानी जुड़ी हुई है. इन्हें भगवान मुरुगा कहा जाता है.

हिंदू मिथक के अनुसार, यह छह नक्षत्र छह आकाशीय देवियां हैं, जिन्होंने छह शिशुओं को पाला, जो एक साथ मिलकर छह मुख के देव के रूप में प्रकट हुए. इन्हें कार्तिकेय के नाम से जाना जाता है. इस पर्व से भगवान शिव, विष्णु और ब्रह्मा की एक कथा भी जुड़ी हुई है. एक बार भगवान विष्णु एवं ब्रह्मा में श्रेष्ठता को लेकर मतभेद हो गया. भगवान शिव ने इस मतभेद का फैसला करने के लिए अनंत दीप शिखा का रूप लिया और दोनों देवताओं को कहा कि दोनों को उनके इस रूप का आदि और अंत ढूंढ़ना है.

जल्द ही भगवान विष्णु ने हार मान ली, लेकिन ब्रह्मा जी ने झूठ बोला कि उन्होंने भगवान शिव का सर ढूंढ़ निकाला है. भगवान शिव इस झूठ को समझ गये. उन्होंने भगवान विष्णु को ब्रह्मा से श्रेष्ठ कहा. इस दिन लोग भगवान शिव की आराधना करते हैं और बाद में इस दिन को कार्तिकेय महादीपम नाम से मनाया जाने लगा. कार्तिगई दीपम श्रीलंका में भी मनाया जाता है.

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