धर्मशाला : राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में दाखिला ना होने पर उन्होंने आत्महत्या करने की सोची थी लेकिन अपने दमदार अभिनय से लोह मनवाने वाले अभिनेता मनोज वाजपेयी का कहना है कि उन्होंने ‘ना’ शब्द सुनने के ‘‘अपमान’ का आनंद उठाना शुरू कर दिया.
अभिनेता का मानना है कि शुरुआती दौर में उन्होंने जितनी बार ना सुना उसने उन्हें व्यावहारिक बनाया और कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित किया. वाजपेयी (49) ने कहा, ‘‘मैंने महसूस किया कि इनकार सुनना कुछ नहीं है बल्कि यह संकेत है कि आपको और कड़ी मेहनत की जरुरत है. इनकार सुनना नकारात्मक बात नहीं है बल्कि यह आपको चीजों को यथार्थवादी और व्यावहारिक रूप से देखने के काबिल बनाती है. मैंने लोगों से इनकार सुनने, परेशानियों और ‘ना’ सुनने की बेइज्जती का आनंद उठाना शुरू कर दिया.’
उन्होंने कहा, ‘‘इससे मुझे अगली बार दोगुनी ताकत के साथ दरवाजा खटखटाने की ताकत मिलती. मेरा मानना है कि यह इस पर निर्भर करता है कि आप कैसे इसे देखते हैं। मैं यह नहीं कहूंगा कि आपको दुख नहीं हो या आप उदास महसूस नहीं करोगे लेकिन मायने यह रखता है कि आप कैसे बेहतर तरीके से इससे बाहर आ सकते हैं.’ हालांकि, वाजपेयी ने कहा कि खाली थिएटर अब भी उन्हें डराते हैं.
उन्होंने कहा कि उनका भरोसा वो समर्पित दर्शक हैं जो उनके सिनेमा की कद्र करते हैं और उसे समझते हैं. अभिनेता ने कहा, ‘‘जो बातें मुझे प्रेरित करती हैं वे दर्शक हैं जो मेरे काम को पसंद करते हैं. मुझे पता है कि अगर मेरी फिल्म थिएटर में है तो जो मेरे दर्शक हैं वे कम नहीं होंगे. मुझे उन दर्शकों को खोने का डर नहीं है जिन्हें मैंने कमाया है. मेरा मकसद संख्या बढ़ाना है.’
वाजपेयी ने कहा, ‘‘भविष्य इससे बुरा नहीं हो सकता। यह बेहतर और बेहतर बनाने की बात है. मुझे और लोगों की जरुरत है जो मेरी तरह अड़ियल हो.’ वाजपेयी धर्मशाला अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में थे जहां उनकी फिल्म ‘भोंसले’ दिखायी गयी.