नेशनल कंटेंट सेल
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सुप्रीम कोर्ट के आदेश का असर: पटाखा बाजार पड़ा ठंडा, शिवकाशी बेरौनक
नेशनल कंटेंट सेल -धंधा हुआ मंदा, बिका हुआ माल आ रहा वापस साल 2002 में रामगोपाल वर्मा की एक फिल्म आयी थी ‘कंपनी.’ इस फिल्म में एक गाना था ‘सब गंदा है पर धंधा है ये’. कुछ ऐसा ही है पटाखा बनाने वालों के साथ. सुप्रीम कोर्ट के ग्रीन पटाखों (कम आवाज और कम प्रदूषण […]
-धंधा हुआ मंदा, बिका हुआ माल आ रहा वापस
साल 2002 में रामगोपाल वर्मा की एक फिल्म आयी थी ‘कंपनी.’ इस फिल्म में एक गाना था ‘सब गंदा है पर धंधा है ये’. कुछ ऐसा ही है पटाखा बनाने वालों के साथ. सुप्रीम कोर्ट के ग्रीन पटाखों (कम आवाज और कम प्रदूषण फैलाने वाले) का ही इस्तेमाल करने के आदेश के बाद पटाखा उद्योग से जुड़े लाखों कामगारों का सांस लेना मुश्किल हो गया है. देश में पटाखों के सबसे बड़े उत्पादक शहर तमिलनाडु के शिवकाशी में इस बार रौनक नहीं है.
शिवकाशी का पटाखा उद्योग सात हजार करोड़ रुपये से अधिक का है. असंगठित उद्योग होने के कारण संभव है कि यह 10 हजार करोड़ से अधिक का कारोबार हो. लेकिन, दिक्कत यह नहीं है कि बाजार में पटाखे नहीं निकल रहे हैं. परेशानी तो यह है कि जिन लोगों ने एडवांस में पटाखे उठा लिये थे, या पटाखों के लिए एडवांस में पैसे दे रखे थे, वे अब अपने पैसे की मांग कर रहे हैं. माल वापस लेने को कह रहे हैं. सिर्फ दिल्ली में व्यापारियों के पास करीब तीन करोड़ रुपये के पटाखों का स्टॉक है, लेकिन इनमें एक भी ग्रीन पटाखा नहीं है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में पटाखा उत्पादक यह मान चुके हैं कि दो या तीन ही उत्पाद ऐसे हैं जो ग्रीन पटाखे की कैटेगिरी में आते हैं.
बता दें कि पटाखों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला 23 अक्टूबर को आया था. यह फैसला तीन बच्चों की तरफ से कोर्ट में दायर याचिका में सुनाया गया था. दुबारा कोर्ट जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीन पटाखों के इस्तेमाल और वक्त की सीमा तय कर दी.
व्यापारियों को नहीं है ग्रीन पटाखे की जानकारी
दिल्ली के व्यापारी ग्रीन पटाखों से अनजान है. उनका कहना है कि यह पहली बार सुनने में आया है कि इस तरह के भी पटाखे होते हैं जिनसे प्रदूषण या आवाज नहीं होती. कुछ विक्रेता हरी सब्जियों को बम के रूप में प्रदर्शित कर सांकेतिक विरोध कर रहे हैं. पटाखे का नाम रखा गया है, भिंडी पटाखा, शिमला मिर्च पटाखा, प्याज चकरी आदि.
क्या है ग्रीन पटाखे
काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के वैज्ञानिकों ने कम प्रदूषण करने वाले पटाखे बनाये हैं. पारंपरिक पटाखों से इनकी कीमत 15-20 फीसदी कम है. सेफ वॉटर रिलीजर, सेफ मिनिमल एल्यूमिनियम, सेफ थर्माइट क्रैकर इन पटाखों की खूबी है. इन पटाखों से तेज आवाज के साथ हानिकारक धूल और धुएं की जगह भाप और हवा निकलेगी. पटाखों में यूज होने वाले पोटेशियम नाइट्रेट और सल्फर का इससे प्रयोग कम हो जायेगा. सामान्य पटाखों के जलाने से भारी मात्रा में नाइट्रोजन और सल्फर गैसें निकलती हैं, लेकिन ग्रीन पटाखे में इनकी मात्रा कम होती. इसके अलावा, करीब 60 फीसदी पटाखों में बेरियम सॉल्ट होता है, जो पूरी तरह बैन है.
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