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इप्टा राष्ट्रीय प्लैटिनम जुबली समारोह में बोले जावेद अख्तर खां, अभिनेता रंगमंच का केंद्र

पटना : इप्टा राष्ट्रीय प्लैटिनम जुबली समारोह का आज 31 अक्तूबर को 5वां और अंतिम दिन राष्ट्रीय संगोष्ठी-4 में बोलते हुए वरिष्ठ अभिनेता जावेद अख्तर खां ने कहा कि रंगमंच के केंद्र में अभिनेता ही होता है. शंभु मित्रा व उत्पल दत्त की याद में भारतीय नृत्य कला मंदिर में “अभिनय और रंगमंच” पर आयोजित […]

पटना : इप्टा राष्ट्रीय प्लैटिनम जुबली समारोह का आज 31 अक्तूबर को 5वां और अंतिम दिन राष्ट्रीय संगोष्ठी-4 में बोलते हुए वरिष्ठ अभिनेता जावेद अख्तर खां ने कहा कि रंगमंच के केंद्र में अभिनेता ही होता है. शंभु मित्रा व उत्पल दत्त की याद में भारतीय नृत्य कला मंदिर में “अभिनय और रंगमंच” पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी-4 में आज जावेद अख्तर खां अपनी बात रख रहे थे. इसमें मुख्य वक्ता के रूप में निर्देशिका और अभिनेत्री वेदा राकेश, अभिनेता जावेद अख्तर खां और अभिनय शिक्षक और नाटकार आसिफ अली उपस्थित थे. संगोष्ठी का संचालन इप्टा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हिमांशु रॉय ने किया.

जावेद अख्तर खां ने कहा कि नाटकों में दर्शक अपनी नजर से अभिनेता को देखता है, बल्कि उसे कहां से देखना है यह भी दर्शक तय कर सकता है. उसी तरह अभिनेता भी मंच पर अपनी स्थिति तय करता है. यही अभिनेता की ताकत है, लेकिन सिनेमा में यह संभव नहीं है. सिनेमा में अभिनेता को कैमरे की नजर से देखना पड़ता है. सिनेमा में अभिनेता अपनी स्थिति तय नहीं कर सकता, वह सब निर्देशक के हाथ में होता है. महान ब्रिटिश नाटककार जी बी प्रिस्टले को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि सच और भ्रम के जादू को ही अभिनय कहते हैं. अभिनेता अपने टाइम और स्पेस से दर्शकों को निकाल कर चरित्र के टाइम-स्पेस में लेकर चला जाता है. उन्होंने आगे अपनी बात बढ़ाते हुए कहा कि कोई भी जन्म से अभिनेता नहीं होता, उसे सीखना पड़ता है. इसलिए जावेद अख्तर खां ने एक्टिंग-ट्रेनिंग को अनिवार्य बताया.

अभिनेता स्वयं अपना माध्यम : जावेद
अभिनय कला की बारीकियों पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि अभिनेता स्वयं अपना माध्यम है. उसका शरीर उसका माध्यम है इसलिए शरीर का ध्यान रखा जाना चाहिए. निरंतर अभ्यास करना चाहिए. किसी भी तरह के आवेश में अभिनय नहीं करना चाहिए. अंत में उन्होंने कहा कि अभिनय सबसे पहले नकल है, लेकिन जब नकल असल का भ्रम देने लगे तो अभिनय हो जाता है.

गुुरु शिष्य परंपरा से भी होती है ट्रेनिंग : आसिफ अली

आसिफ अली ने ट्रेनिंग के अलग-अलग रूप को समझाते हुए कहा कि परंपरागत रूप से नाटक करने वाले भी एक तरह की ट्रेनिंग अपनी परंपरा से लेते हैं. गुरु शिष्य परंपरा से भी ट्रेनिंग होती है. गुरु अपना शिष्य चुनता है कि उसके अर्जित ज्ञान का वह (शिष्य) पात्र भी है या नहीं. इस तरह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जो ज्ञान परंपरा के जरीये मिलता वह एक तरह की ट्रेनिंग ही है.

उन्होंने आगे कहा कि रंगमंच जीवन जैसा जरूर है, लेकिन जीवन नहीं है. वैसे ही अभिनय भी जीवन जैसा होता है लेकिन जीवन नहीं होता. अभिनय में हमें कार्य और कारण को समझना चाहिए. अभिनय विज्ञान की तरह है यानी उसमें तर्क होता है. तभी हम चरित्र के सत्य तक पहुंच पाते हैं. इसलिए सवाल करना जरूरी है यही वैज्ञानिक प्रक्रिया है अभिनय का.

आसिफ अली ने आगे बात करते हुए कहा कि अभिनय दो तरह से किया जाता है, चरित्र की प्रस्तुति और चरित्र का प्रतिनिधित्व. रंगमंच के अभिनय में चरित्र का प्रतिनिधित्व हो सकता है लेकिन सिनेमा में अभिनेता को चरित्र की प्रस्तुति करनी होती है. इस संगोष्ठी की तीसरी और अंतिम वक्ता वेदा राकेश ने अभिनय और रंगमंच को समझाने के लिए अपने तीन नाटकों के छोटे छोटे एकल टुकड़े दिखाए. जिनमें “ट्रॉय की औरतें” के उनके अभिनय पर दर्शक भावुक हो गये.

… उस दिन वह अभिनेता बन जायेगा : अखिलेंद्र मिश्रा
बातचीत के दौर में अभिनेता अखिलेंद्र मिश्रा ने कहा कि शरीर के अंदर पूरा ब्रह्मांड है, जिस दिन अभिनेता अपने अंदर झांकना सीख जाएगा उस दिन वह अभिनेता बन जायेगा.

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