देश की शीर्ष जांच एजेंसी होने के नाते सीबीआइ को संदेह से परे होना चाहिए. भ्रष्टाचार की हल्की-सी आहट से भी इस संस्था की साख को धक्का पहुंचता है.
एनडीए सरकार के पास इस गंदगी को साफ करने का मौका था, लेकिन इसके बजाय उसने भी विवादित अफसरों को संदेह का लाभ देने के यूपीए मॉडल पर ही चलना पसंद किया. लगता है कि अस्थाना भाजपा के लिए सिरदर्द बन गये हैं. उन्हें भाजपा का करीबी माना जाता है. दूसरी बात, उन्हें सीबीआइ के तत्कालीन निदेशक द्वारा भ्रष्टाचार के आधार पर विरोध के बावजूद विशेष निदेशक नियुक्त किया गया.
तीसरी बात, उनके खिलाफ घूस लेकर मोइन कुरैशी का केस बंद करने की साजिश रचने का मामला दर्ज किया गया. दोनों शीर्ष अफसरों को छुट्टी पर भेजकर सही किया गया, लेकिन नुकसान तो पहले ही हो चुका है.
डाॅ हेमंत कुमार, गोराडीह, भागलपुर