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खतरनाक होता पाकिस्तान
गृहयुद्ध, आंतकवाद तथा क्षेत्रीय तनातनी का खूनी रंगमंच बनकर उभरे सीरिया की तुलना में वैश्विक शांति को पाकिस्तान से तीन गुना ज्यादा खतरा है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और स्ट्रेटजिक फोरसाइट ग्रुप द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह निष्कर्ष दिया गया है. इसके मुताबिक, पाकिस्तान में आतंकवादियों के सबसे सुरक्षित ठिकाने कायम हैं तथा वहां सक्रिय लश्कर-ए-तैयबा, […]
गृहयुद्ध, आंतकवाद तथा क्षेत्रीय तनातनी का खूनी रंगमंच बनकर उभरे सीरिया की तुलना में वैश्विक शांति को पाकिस्तान से तीन गुना ज्यादा खतरा है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और स्ट्रेटजिक फोरसाइट ग्रुप द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह निष्कर्ष दिया गया है. इसके मुताबिक, पाकिस्तान में आतंकवादियों के सबसे सुरक्षित ठिकाने कायम हैं तथा वहां सक्रिय लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, जमातुद्दावा जैसे कुख्यात आतंकी गिरोहों की ताकत अन्य जगहों के आतंकी संगठनों से ज्यादा है.
हाल के सालों में आतंकवाद के मामले में आइएसआइएस की चर्चा अधिक रही है, पर इस समूह के उभार और पतन की अवधि बहुत ज्यादा नहीं रही है. फिलहाल सबसे ज्यादा ताकतवर आतंकी संगठन अल-कायदा है और उसे मुख्य रूप से शह उसके पाकिस्तान में मौजूद ठिकानों से मिल रही है. पाकिस्तानी राज्यसत्ता के एक हिस्से की मदद के बिना अल-कायदा का सरगना ओसामा बिन लादेन बरसों तक बचा नहीं रहा सकता था.
अमेरिका, भारत, अफगानिस्तान समेत अनेक देशों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा हिंसा और तबाही पर आमादा गिरोहों को पाकिस्तान में मिल रही पनाह को लगातार रेखांकित किया जाता रहा है. पाकिस्तान की सियासत और सार्वजनिक जीवन का यही पहलू विश्व शांति के लिए बड़ा खतरा है. रिपोर्ट इसी तथ्य की पुष्टि करती है.
अपनी धरती पर कायम गिरोहों को लेकर पाकिस्तान एक लचर और टालू तर्क देता रहा है कि उनके पीछे सरकार या सेना का कोई हाथ नहीं है तथा पाकिस्तान भी उनकी हिंसा का भुक्तभोगी है. उसका यह भी दावा रहा है कि आतंकवादियों पर अंकुश लगाने की हरसंभव कोशिशें की जाती रही हैं.
परंतु, पाकिस्तानी सत्ता-तंत्र, कट्टरपंथी जमातों और हिंसक गिरोहों के आपसी मिलीभगत के प्रमाण समय-समय पर मिलते रहते हैं. मिसाल के लिए, इमरान खान के नेतृत्व में बनी नयी सरकार ने मुंबई आतंकी हमले के षड्यंत्रकारी हाफीज सईद के संगठनों को प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों की सूची में शामिल नहीं किया है. संयुक्त राष्ट्र के निर्देश पर पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति ममनून हुसैन ने एक अध्यादेश के जरिये इन्हें प्रतिबंधित किया था.
उसकी प्रभावी अवधि समाप्त होते ही अब ये संगठन पाबंदी के दायरे से बाहर निकल आये हैं. जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी भावना भड़काने, आतंकी नेटवर्क को धन मुहैया कराने, नशीले पदार्थों की तस्करी तथा घुसपैठ कराने में पाकिस्तानी सेना और आतंकवादी गिरोह गठजोड़ बनाकर काम कर रहे हैं.
अफगानिस्तान में भी तालिबान की गतिविधियां तेज हुई हैं और इनका असर हालिया चुनाव पर भी पड़ा है. तालिबान, अल-कायदा और पाकिस्तानी सेना की खुफिया एजेंसी आइएसआइ का पुराना संबंध है. पाकिस्तान पर वैश्विक दबाव बनाने की जरूरत है तथा इस कोशिश में अमेरिका, चीन और रूस अहम भूमिका निभा सकते हैं. इस रिपोर्ट और पहले के साक्ष्यों के आधार पर भारत को नये सिरे से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा शुरू कराने की कोशिश करनी चाहिए.
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