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आज ही हुआ था JK का भारत में विलय, जानें क्यों पहले मना करने वाले हरि सिंह से भारत से मांगी थी मदद…

जिस वक्त भारत को आजादी मिली उस वक्त देश में कई राजे -रजवाड़े ऐसे थे जो स्वतंत्र थे, लेकिन आजादी के बाद अधिकतर ने भारत में अपना विलय कर लिया. लेकिन कई रियासतें ऐसी थीं, जो भारत से खुद को अलग रखना चाहती थी. इनमें कश्मीर के राजा कर्ण सिंह और हैदराबाद के निजाम प्रमुख […]

जिस वक्त भारत को आजादी मिली उस वक्त देश में कई राजे -रजवाड़े ऐसे थे जो स्वतंत्र थे, लेकिन आजादी के बाद अधिकतर ने भारत में अपना विलय कर लिया. लेकिन कई रियासतें ऐसी थीं, जो भारत से खुद को अलग रखना चाहती थी. इनमें कश्मीर के राजा कर्ण सिंह और हैदराबाद के निजाम प्रमुख थे.

आजादी के बाद कश्मीर स्वतंत्र था, उसने ना तो भारत और ना ही पाकिस्तान में विलय को स्वीकारा. लेकिन मुस्लिम बहुल होने के कारण पाकिस्तान की इसपर नजर थी, जबकि हरि सिंह हिंदू थे इसलिए पाकिस्तान में विलय नहीं चाहते थे. यही कारण था कि कश्मीर को अपने साथ रखने के लिए पाकिस्तान ने साजिश रची. 24 अक्टूबर, 1947 को तड़के हजारों कबायली पठानों ने कश्मीर में घुसपैठ की, जिसके बाद महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद की अपील की. जिसके बाद वल्लभभाई पटेल ने वीपी मेनन को श्रीनगर भेजा और महाराजा हरि सिंह को भारत में विलय के लिए कहा. जिसके बाद 26 अक्तूबर को महाराजा हरि सिंह ने भारत में जम्मू-कश्मीर के विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किये.

कौन थे महाराजा हरि सिंह

महाराजा हरि सिंह जम्मू- कश्मीर रियासत के अंतिम शासक थे. वे महाराज रणबीर सिंह के पुत्र और पूर्व महाराज प्रताप सिंह के भाई, राजा अमर सिंह के सबसे छोटे पुत्र थे. इन्हें जम्मू-कश्मीर की राजगद्दी अपने चाचा, महाराज प्रताप सिंह से विरासत में मिली थी. इन्होंने चार शादियां की थीं इनकी चौथी पत्नी तारा देवी से उन्हें एक बेटा हुआ था जिसका नाम कर्ण सिंह था. कर्ण सिंह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे.

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