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इस आपराधिकता से मुक्ति मिले

पवन के वर्मा लेखक एवं पूर्व प्रशासक pavankvarma1953@gmail.com सात मई 2016 को बिहार की विधान पार्षद मनोरमा रंजन का पुत्र रॉकी यादव उर्फ राकेश रंजन अपनी कार से बोध गया से गया जा रहा था और वह इस बात पर क्रुद्ध था कि उसके आगे चल रही कार उसे रास्ता नहीं दे रही थी. अगली […]

पवन के वर्मा
लेखक एवं पूर्व प्रशासक
pavankvarma1953@gmail.com
सात मई 2016 को बिहार की विधान पार्षद मनोरमा रंजन का पुत्र रॉकी यादव उर्फ राकेश रंजन अपनी कार से बोध गया से गया जा रहा था और वह इस बात पर क्रुद्ध था कि उसके आगे चल रही कार उसे रास्ता नहीं दे रही थी.
अगली कार को 12वीं कक्षा का एक छात्र आदित्य सचदेव चला रहा था. जब रॉकी उस कार से आगे निकल पाने में सफल हुआ, तो उसने पिस्तौल निकाली और आदित्य को गोली मार दी. मामले की जांच तथा सुनवाई तेजी से चली और अंततः रॉकी, उसके चचेरे भाई तथा विधान पार्षद के अंगरक्षक को, जो दोनों उस वक्त रॉकी के साथ ही थे, आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी. रॉकी के पिता को, जिसने उसे पुलिस के हाथों पड़ने से बचाने की कोशिश की, अदालत ने पांच वर्षों की सजा दी.
पिछले ही सप्ताह एक बार फिर इसी तरह की वीवीआइपी अराजकता बहुजन समाज पार्टी के एक पूर्व सांसद के पुत्र आशीष पांडेय द्वारा प्रदर्शित की गयी. इस बार यह घटना इसी 16 अक्तूबर को नयी दिल्ली के पांच सितारा होटल हयात रीजेंसी के परिसर में हुई.
आशीष और उसके कुछ दोस्तों की, जिनमें यूके में रहनेवाली तीन महिलाएं भी शामिल थीं, गौरव तथा उसकी मित्र हिना से कोई कहासुनी हुई. जब वे होटल के पोर्च में पहुंचे, तो आशीष अपनी कार से पिस्तौल निकाल उसे लहराने लगा. जमकर अपशब्दों की बौछारें हुईं. इस उत्तेजक माहौल में पिस्तौल के ट्रिगर पर कसी उंगली की बस एक हरकत रॉकी यादव जैसी एक और वारदात कर गुजरने को काफी थी.
सौभाग्य से, होटलकर्मी उन्हें अलग करने में सफल हुए, पर महिलाओं समेत दोनों पक्षों द्वारा इस्तेमाल की गयी निकृष्ट भाषा से भरी इस पूरी अशोभनीय घटना का वीडियो ‘वायरल’ हो गया. अंततः, आशीष पांडेय ने पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण किया और उसकी पिस्तौल एवं परित्यक्त बीएमडब्ल्यू कार बरामद कर ली गयी.
क्यों हमारे देश में शक्तिशाली लोगों की संतानें ऐसे बर्ताव किया करती हैं? इसका बेलाग उत्तर यह है कि उनकी समझ में उन्हें ऐसा करने का अधिकार हासिल है. कानून से ऊपर होने की यह अनुभूति उनकी सर्वोपरि विरासत होती है.
वे एक ऐसे अनैतिक गर्त में बड़े हुए हैं, जिसमें कानून की किरणों का शायद ही कोई प्रवेश कभी संभव हो पाता है. कुछ अपवादों को छोड़कर हमारे देश में सियासत भ्रष्ट करती है, और सफल सियासत तो पूर्णतः भ्रष्ट कर देती है.
पूरी संभावना है कि रॉकी एवं आशीष एक ऐसे माहौल में पले-पुसे होंगे, जहां चुनाव ‘जीतने की योग्यता’ आचारनीति से कपट किया करती है और सत्ता की दौड़ नैतिकता का गला घोंट देती है. उन्होंने यह भी देखा होगा कि किस तरह पुलिस सहित कानून पालन करानेवाले सभी अधिकारी सत्ता के खुले दुरुपयोग के समक्ष अपनी नाक रगड़ा करते हैं.
उनकी दबंगई उनके इस यकीन से जन्म लेती है कि वे पैदाइशी रूप से कानून के ऊपर हैं. उन्हें यह समझने को प्रोत्साहित किया जाता है कि वे अपने आप में ही एक कानून हैं और उन पर सवाल उठानेवाले वैसे बेवकूफ हैं, जिन्हें यह नहीं मालूम कि हमेशा सिर्फ शक्ति (पावर) ही सही होती है.
दिखता धनबल नैतिक शून्यता को और भी परिपुष्ट करता है. ये बिगड़ैल संतानें अपनी समृद्धि का भोंडा प्रदर्शन किया करती हैं: महंगी कारें, डिजाइनर लिबास, नवाबी जीवनशैली, आभूषणों की तरह साथ लगी औरतें और खर्च करने को बेशुमार पैसे. उनके माता-पिता यह समझते हैं कि अपने सार्वजनिक पदों को दुहकर जो गंदी कमाई उन्होंने की है, उसका इस्तेमाल उनकी संतानों की हर इच्छा पूरी करने में होना ही चाहिए. इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि इनमें से बहुत बच्चे स्कूल छोड़े हुए अथवा कॉलेज में प्रवेश से वंचित ही हुआ करते हैं.
जो कॉलेज जाते भी हैं, वे संदेहास्पद तरीकों से डिग्री हासिल कर लेते हैं. जब उन्होंने अपने प्रभावशाली माता-पिता को विधायक अथवा सांसद का टिकट खरीदते, चुनाव आयोग द्वारा निश्चित सीमा से कहीं बढ़कर बेतहाशा खर्च करते और परेशानी पैदा करनेवाले राजनीतिक विरोधियों को रास्ते से हटाने हेतु साजिशें करते देखा है, तो उनके सामने परीक्षाओं में नकल करना उन्हें शायद ही कोई बड़ा अपराध नजर आता है.
घृणास्पद चीज यह है कि इन बिगड़ैलों को चापलूसों की कोई कमी नहीं होती. मैंने प्रायः यह कहा है कि भारत में अनाथ की एक ही वास्तविक परिभाषा है: ऐसा व्यक्ति जिसके पास न तो सत्ता है, न ही पैसे.
इस दुनिया के रॉकी और आशीष के पास दोनों है. इसलिए, वे ऐसे व्यक्तियों से घिरे रहते हैं, जो उनकी अय्याश लंपटता को बढ़ावा दिया करते हैं. ऐसा लगता है कि सत्तासीनों के सामने घुटने टेकने को सामाजिक रूप से स्वीकार्य लक्ष्य समझ लिया गया है, जो सुधार के किसी इरादे से बंधनमुक्त है. शक्तिशालियों को उनका अहं सहलाये जाने की जरूरत होती है और उन्हें अपने चापलूसों के बीच इस कला में एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ होती दिखनी ही चाहिए.
चापलूसी में सत्ता और फायदे के ठिकाने को भांप लेने की एक अंतर्निहित शक्ति होती है. सत्ता-केंद्र से अपनी निकटता बढ़ाकर लाभ पाने के इच्छुक व्यक्तियों को हमेशा सही समय पर सही चीज अत्युक्ति और विनम्रता के सही संयोग के साथ कहने की कला आनी चाहिए, ताकि अपनी स्वामीभक्ति और अपने मन में संरक्षक की निर्विवाद शीर्षस्थता को लेकर संरक्षक के दिल में किसी संदेह की गुंजाइश न रहे. इसमें नैतिकता से किसी किस्म का अवरोध महसूस नहीं होता.
जब मनु शर्मा ने जेसिका लाल को गोली मार दी अथवा रॉकी यादव ने आदित्य सचदेव के शरीर में गोली उतार दी या आशीष पांडेय ने हयात रीजेंसी में अपनी पिस्तौल लहरायी, तो वे आश्वस्त थे कि उनकी शक्ति, उनका प्रभाव, उनका पैसा और उनके ब्रांड के चमचे उन्हें उस अपराध से निकाल ले जायेंगे.
जो कुछ वस्तुतः चिंताजनक है, वह यह कि इनमें से बहुतेरे बिगड़ैल अपने माता-पिता के पदचिह्नों पर चलते हुए सियासत में भी शरीक होंगे. यह गंदगी का एक दुश्चक्र है, जिसे उस अनैतिक माहौल ने वैध बना दिया है, जिसमें हम सभी ने अपनी कमोबेश सहमति के पुट डाले हैं. वह वक्त आ गया है, जब इस आपराधिकता से छुट्टी पायी जाये, और यह तभी संभव हो सकेगा, जब एक आम आदमी पुकार उठेगा कि अब घड़ा भर चुका.

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