II उर्मिला कोरी II
फ़िल्म: हेलीकॉप्टर इला
निर्माता: अजय देवगन फिल्म्स
निर्देशक: प्रदीप सरकार
कलाकार: काजोल, रिद्धि सेन और अन्य
रेटिंग: दो
दशकों से हिंदी फिल्मों में मां की ज़िंदगी को अपने बच्चों के इर्द गिर्द रखने को ही आदर्श करार दिया है लेकिन मौजूदा दौर के बदलते सिनेमा ने मां को सिर्फ बच्चों के लिए ही नहीं बल्कि अपने सपनों के लिए भी जीने को प्रेरित किया है. यह बात भी रखी है कि हर रिश्ते में एक स्पेस ज़रूरी है फिर चाहे वो मां बेटे का ही क्यों न हो. इस कांसेप्ट वाली फिल्म ‘हेलीकॉप्टर ईला’ से तीन साल के अंतराल के बाद काजोल नज़र आयी हैं. फ़िल्म की कहानी आनंद गांधी के गुजराती नाटक बेटा कागडो से आधारित है.
फ़िल्म की कहानी सिंगल मदर ईला रायतुरकर (काजोल) की है. जिसका बेटा विवान(रिद्धि सेन) उसकी जिंदगी है. यूं भी कह सकते हैं कि युवा विवान की ज़िंदगी में उसने पूरी घुसपैठ कर ली है और वह अपने लिए जीना भूल गयी है.
शादी से पहले एक कामयाब सिंगर बनने का सपना देखने वाली इला शादी और फिर मां बनने के बाद सिर्फ विवान के लिए ही जी रही है. विवान दरवाजे पर दस्तक भी नहीं देता उसे पहले ही मालूम पड़ जाता है कि उसका बेटा आ गया. विवान को फ़ोन पर बातें करते हुए सुनती है. विवान को फ़ोन पर कम अपने साथ समय बिताने की शिकायत करती रहती है.
कुलमिलाकर ईला की इस घुसपैठ से बेटे विवान को घुटन महसूस होने लगती है. वह अपनी माँ को ज़िन्दगी में अपने लिए कुछ करने को प्रेरित करता है. ईला अपनी अधूरी पढ़ाई को पूरा करने का फैसला करती है लेकिन अपने बेटे के कॉलेज में ही. घर के साथ साथ कॉलेज में भी वह अपने बेटे को फॉलो करने लगती है. जिससे उनके रिश्ते में तकरार और दूरियां बढ़ जाती हैं. क्या माँ बेटे की यह दूरियां इला को उसका सिंगर बनने का अधूरा सपना पूरा करने के लिए प्रेरित करेंगी. यही फिल्म की कहानी है.
फ़िल्म की कहानी का कांसेप्ट बेहतरीन है लेकिन परदे पर वह उस प्रभावी ढंग से आ नहीं पायी है. फ़िल्म की स्क्रिप्ट बहुत कमजोर है. कहानी फ्लैशबैक और वर्तमान में कही गयी है. फ्लैशबैक में 90 के दशक में कहानी गयी है जहां युवा इला का सपना कामयाब सिंगर बनना है और वर्तमान में उसका बेटा ही सपना है.
कहानी के फ़्लैशबैक और वर्तमान में एक ही बात को कई बार दोहराया गया है. मां बेटे की नोंक झोंक तकरार एक सा ही लगता है. जिससे यह कमज़ोर कहानी कुछ समय बाद बोझिल लगने लगती है. खासकर फ़िल्म का सेकंड हाफ कमज़ोर है.
अभिनय की बात करें तो यह फ़िल्म काजोल की है. वह पूरी तरह से अपने किरदार में रची बसी है. उन्होंने हंसाया भी है तो गमगीन भी किया. वह पर्दे पर बहुत खूबसूरत भी नज़र आईं हैं. रिद्धि सेन विवान की भूमिका में जमे हैं. उनके और काजोल के बीच बॉन्डिंग खास है. नेहा धूपिया और जाकिर हुसैन को फ़िल्म में कम ही मौके मिले हैं.
फ़िल्म के गीत संगीत की बात करें तो अमित त्रिवेदी और राघव सच्चर का नाम इससे जुड़ा है. जिन्होंने कहानी के साथ पूरी तरह से न्याय किया है. यादों की अलमारी वाला गीत बहुत खूबसूरत बन पड़ा है. बाकी के गाने औसत हैं. फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी और संवाद अच्छे बन पड़े हैं. फ़िल्म की एडिटिंग पर काम करने की ज़रूरत थी. कुलमिलाकर काजोल के बेहतरीन अभिनय पर फ़िल्म की कमज़ोर स्क्रिप्ट भारी पड़ गयी है.