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कौन थे गंगा के लिए खाना-पीना छोड़ने वाले जीडी अग्रवाल

"उन्होंने कहा था कि मैं गंगा जी को मरते नहीं देखना चाहता हूं और गंगा को मरते देखने से पहले मैं अपने प्राणों को छोड़ देना चाहता हूं." उत्तराखंड के पत्रकार सुनील दत्त पांडे पर्यावरणविद जीडी अग्रवाल को याद करते हुए कह रहे थे. उत्तराखंड के ऋषिकेश में जीडी अग्रवाल ने गुरुवार को आखिरी सांसें […]

"उन्होंने कहा था कि मैं गंगा जी को मरते नहीं देखना चाहता हूं और गंगा को मरते देखने से पहले मैं अपने प्राणों को छोड़ देना चाहता हूं."

उत्तराखंड के पत्रकार सुनील दत्त पांडे पर्यावरणविद जीडी अग्रवाल को याद करते हुए कह रहे थे. उत्तराखंड के ऋषिकेश में जीडी अग्रवाल ने गुरुवार को आखिरी सांसें ली.

सुनील ने बताया कि मंगलवार दोपहर के बाद उन्होंने पानी पीना भी छोड़ दिया था.

जी डी अग्रवाल गंगा की सफ़ाई को लेकर 111 दिनों से अनशन कर रहे थे. 86 साल के अग्रवाल 22 जून से अनशन पर थे.

वो गंगा में अवैध खनन, बांधों जैसे बड़े निर्माण को रोकने और उसकी सफ़ाई को लेकर लंबे समय से आवाज़ उठाते रहे थे. इसे लेकर उन्होंने प्रधानमंत्री को इसी साल फरवरी में पत्र भी लिखा था.

उन्होंने पिछले हफ्ते ही ऐलान किया था कि अगर 9 अक्टूबर तक उनकी मांगे नहीं मानी गई तो वो पानी भी त्याग देंगे.

https://twitter.com/narendramodi/status/1050402246008217600

फिलहाल तो जीडी अग्रवाल एक संन्यासी का जीवन जी रहे थे. उन्हें स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद के नाम से भी जाना जाता था.

लेकिन वे आईआईटी में प्रोफेसर रह चुके थे और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य की ज़िम्मेदारी भी उन्होंने निभाई.

क्या चाहते थे प्रोफेसर जीडी अग्रवाल

गंगा की सफ़ाई के लिए कानून बनाने को लेकर जी डी अग्रवाल ने केंद्र सरकार को एक मसौदा भी भेजा था.

उनका कहना था कि केंद्र सरकार के कानून में गंगा की पूरी सफाई का ज़िम्मा सरकारी अधिकारियों को दिया गया है, लेकिन सिर्फ उनके बूते गंगा साफ नहीं हो पाएगी.

वो चाहते थे कि गंगा को लेकर जो भी समिति बने उसमें जन सहभागिता हो. लेकिन कहीं ना कहीं केंद्र सरकार और उनके बीच उन मुद्दों पर सहमति नहीं बनी.

पत्रकार सुनील दत्त पांडे बताते हैं कि उनके अनशन पर बैठने के बाद केंद्र सरकार ने हरिद्वार के सांसद को उन्हें मनाने के लिए भेजा था. लेकिन अपने साथ जो प्रस्ताव वो लेकर आए थे जी डी अग्रवाल ने उसे स्वीकार नहीं किया.

उनके अनशन के 19वें दिन पुलिस ने उन्हें अनशन की जगह से ज़बरदस्ती हटा दिया था.

अपने अनशन से पहले उन्होंने 2 बार प्रधानमंत्री को चिट्ठी भी लिखी लेकिन जवाब नहीं मिला.

पहले भी किया था अनशन

बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके निधन पर दुख जताया है. उन्होंने ट्वीट किया, "शिक्षा, पर्यावरण की सुरक्षा, खासकर गंगा सफाई को लेकर उनके जज़्बे को याद किया जाएगा."

लेकिन उनके ट्वीट पर लोग उनसे जवाब मांग रहे हैं कि जीडी अग्रवाल की मांगें कब मानी जाएंगी. एक ट्वीटर यूज़र मुग्धा ने पूछा है कि क्या नमामी गंगे के लिए दिया गया पैसा इस्तेमाल हुआ? क्या सरकार दिखा सकती है कि गंगा के लिए अभी तक क्या-क्या काम किया गया है?

https://twitter.com/Mugdha51825/status/1050436592018501632

एक ट्वीटर यूज़र ने उन्हें अनशन से हटाने के लिए पुलिस कार्रवाई की फ़ोटो भी ट्वीट की है.

https://twitter.com/zoo_bear/status/1050412579233775616

ट्वीटर यूज़र ध्रुव राठी ने प्रधानमंत्री के ट्वीट के जवाब में लिखा है कि याद करना बंद करिये और काम शुरू करिए. प्रोफेसर जीडी अग्रवाल गंगा प्रोटेक्शन मैनेजमेंट एक्ट लागू करवाना चाहते थे और गंगा के तटों पर हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट बंद करवाना चाहते थे.

https://twitter.com/dhruv_rathee/status/1050409076784545794

जीडी अग्रवाल ने पांच साल पहले भी हरिद्वार में आमरण अनशन किया था.

उस वक्त तत्कालीन केंद्र सरकार ने उत्तरकाशी में बन रही तीन जल विद्युत परियोजनाओं पर काम बंद कर दिया था.

तब उनको मनाने के लिए केंद्रीय मंत्री रमेश जयराम आए थे और सरकार ने उनकी बात मान ली थी.

सुनील दत्त पांडे कहते हैं, "लेकिन इस बार जब वो अनशन पर बैठे तो उनकी केंद्र सरकार से पटरी नहीं बैठ पाई. केंद्र सरकार उनसे अपनी शर्ते मनवाना चाहती थी, लेकिन वो केंद्र सरकार की बातों को नहीं मानना चाहते थे."

द प्रिंट के मुताबिक़ नमामी गंगे प्रोजेक्ट भाजपा सरकार ने तीन साल पहले शुरू किया था लेकिन सीवेज प्रोजक्ट के लिए दिये गए बजट का अभी तक 3.32 फीसदी ही खर्च हो पाया है.

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