छत्तीसगढ़ में शनिवार का दिन मुख्यमंत्री रमन सिंह और उनके मंत्रियों के लिये हड़बड़ी भरा था. पिछले 15 साल के शासनकाल में संभवतः यह पहला अवसर था, जब एक सप्ताह में तीसरी बार मंत्रीमंडल की बैठक आयोजित की गई थी और उसमें कई बड़े फ़ैसलों पर मुहर लग रही थी.
चुनाव आयोग की प्रेस कांफ्रेस की ख़बर जैसे ही पहुंची, मंत्री, विधायक हड़बड़ाये से अपने-अपने इलाकों में भागे.
राज्य के लोक निर्माण मंत्री राजेश मूणत रायपुर में आधी-अधूरी सड़क, अंडरब्रिज और ओवरब्रिज का उद्घाटन के लिये पहुंचे तो भिलाई में महिला एवं बाल विकास मंत्री रमशीला साहू निर्माणाधीन रेलवे ओवरब्रिज का उद्धाटन करने के लिये रवाना हो गईं.
मुख्यमंत्री रमन सिंह, रेल मंत्री पीयूष गोयल के साथ छह हजार करोड़ रुपये की दो रेल परियोजनाओं का शिलान्यास कर रहे थे तो कोरबा में चार साल बाद शुरू की गई हसदेव एक्सप्रेस को सांसद-विधायक हरी झंडी दिखा रहे थे. रायपुर में फुटबॉल स्टेडियम के लिये भूमिपूजन अलग चल रहा था तो सुकमा में केन्द्रीय जनजाति कार्य मंत्री जुएल उरांव कई निर्माण कार्यों का शिलान्यास कर रहे थे.
आनन-फानन में सरकार में शामिल मंत्री-विधायक और सांसदों में से जिसे जो सूझा, उसने उसका उद्घाटन, शिलान्यास और भूमिपूजन का कोई अवसर नहीं जाने दिया.
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष और विधायक भूपेश बघेल कहते हैं-"सरकार हड़बड़ी में थी और आज से उसकी उल्टी गिनती शुरू हो गई है."
चुनावी बिगुल
छत्तीसगढ़ की 90 सीटों पर 12 और 20 नवंबर को दो चरणों में चुनाव होने हैं.
इस बार सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और विपक्षी दल कांग्रेस के अलावा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी जैसे राजनीतिक दल मैदान में होंगे.
इसके साथ ही कांग्रेस से अलग अपनी पार्टी बनाने वाले राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस और मायावती की बहुजन समाज पार्टी को लेकर राजनीतिक गलियारे में सबसे अधिक चर्चा हो रही है.
पिछले महीने ही छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी ने मिल कर चुनाव लड़ने की घोषणा की है.
छत्तीसगढ़ में बसपा 35 और छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस 55 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. मायावती ने कहा कि अगर हम चुनाव जीतते हैं तो अजीत जोगी मुख्यमंत्री बनेंगे.
90 सीटों वाली छत्तीसगढ़ विधानसभा में 2013 में हुए चुनाव में बसपा को 1 सीट मिली थी. वहीं कांग्रेस से निष्कासित किये जाने के बाद अपनी पार्टी बनाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के बैनर तले पहली बार चुनाव मैदान में उतरेंगे.
छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी इस गठबंधन से काफी ख़ुश हैं.
जोगी का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी 15 वर्षों से छत्तीसगढ़ में राज कर रही है और सत्ता, पैसे, पद, प्रशासनिक तंत्र का दुरुपयोग कर के वो फिर सत्तारुढ़ होना चाहती है.
जोगी कहते हैं- " 45 सीटों से सरकार बनती है और हमारा गठबंधन उससे अधिक सीटें लायेगा, यह बात आप जान लीजिए."
आरक्षित सीटों का हाल
90 सीटों वाली छत्तीसगढ़ विधानसभा में 10 सीटें अनुसूचित जाति के लिये और 29 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित हैं. जबकि 51 सीटें सामान्य वर्ग के लिये हैं.
पिछले विधानसभा चुनाव के आंकड़े देखें तो 2013 में भारतीय जनता पार्टी को 49 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस पार्टी को 39 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. एक-एक सीट पर बसपा और निर्दलीय प्रत्याशी ने अपनी जीत दर्ज़ की थी. हालांकि कांग्रेस और भाजपा के बीच वोटों का अंतर महज 0.75 प्रतिशत का था.
अब जबकि छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस और बसपा मिल कर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं तो राजनीतिक दांव-पेंच की समझ रखने वालों के सामने यह एक महत्वपूर्ण सवाल है कि आख़िर इस गठबंधन का नुकसान किसे होगा-सत्ताधारी पार्टी भाजपा को या फिर विपक्षी दल कांग्रेस को.
इसका जवाब अगर आंकड़ों में तलाशा जाये तो बसपा और छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस जिस अनुसूचित जाति वर्ग के लिये आरक्षित सीटों पर अपनी सबसे तगड़ी दावेदारी पेश कर रही हैं, उन 10 में 9 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी का कब्ज़ा है.
छत्तीसगढ़ विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव कहते हैं-"इस गठबंधन से भारतीय जनता पार्टी की चिंता बढ़ गई है. जिन सीटों पर इस गठबंधन का सबसे अधिक असर हो सकता है, वहां भारतीय जनता पार्टी के विधायक हैं."
कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता शैलेष नितिन त्रिवेदी का भी दावा है कि बसपा का जनाधार जिन इलाकों में रहा है, वह किसी ज़माने में कांग्रेस पार्टी के प्रभाव वाला हिस्सा था. अब इस गठबंधन और भाजपा के बीच वोटों के बंटवारे से कांग्रेस के परंपरागत वोट, नये समीकरण पैदा करेंगे.
कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष और विधायक भूपेश बघेल यह तो मान रहे हैं कि कांग्रेस और बसपा के बीच गठबंधन की चर्चा थी.
जाहिर है, बसपा के साथ गठबंधन से कांग्रेस को बड़ी उम्मीद रही होगी. लेकिन भूपेश बघेल अब ऐसी किसी उम्मीद को खारिज करते हुये दावा कर रहे हैं कि इस गठबंधन से कांग्रेस को कोई नुकसान नहीं होगा.
भूपेश बघेल तो यह भी आरोप लगा रहे हैं कि छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिये भारतीय जनता पार्टी ने ही बसपा पर दबाव बनाया.
भूपेश बघेल कहते हैं-"बसपा ने खुद कांग्रेस के साथ गठबंधन की पहल की थी लेकिन बसपा के नेताओं पर ईडी-सीबीआई ने शिकंजा कसा तो बसपा ने पलटी मार दी."
लेकिन इन आरोपों से अलग भारतीय जनता पार्टी में इस गठबंधन के बाद खुशी का माहौल है.
भाजपा नेताओं का कहना है कि अनुसूचित जाति के लिये आरक्षित इलाकों में वोट बंटेंगे और भाजपा फिर से उन इलाकों में काबिज होगी.
भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष धरमलाल कौशिक मानते हैं कि राज्य में इस बार होने वाले विधानसभा चुनाव में त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बनेगी.
बसपा का जनाधार
बसपा भी इस गठबंधन के बाद अजीत जोगी के नेतृत्व में सरकार बनाने का दावा कर रही है.
पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश बाजपेयी का कहना है कि दोनों पार्टियों का गठबंधन पिछले 15 सालों से सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी को बेदखल कर देगा.
इस दावे में कितना दम है, इसके लिये तो चुनाव परिणाम की प्रतीक्षा करनी होगी लेकिन बसपा पिछले तीन दशकों से भी अधिक समय से छत्तीसगढ़ में अपना मज़बूत जनाधार बनाने की कोशिश में जुटी रही है.
कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी की स्थापना के बाद अपने जीवन का पहला चुनाव 1984 में छत्तीसगढ़ के जांजगीर इलाके से ही लड़ा था.
राज्य के दूसरे इलाकों की तुलना में पिछड़े और दलित वर्ग की राजनीतिक सक्रियता इस इलाके में अधिक है.
जब छत्तीसगढ़ अलग राज्य बना तब विधानसभा में बहुजन समाज पार्टी के तीन विधायक थे. साल 2003 और 2008 में बहुजन समाज पार्टी के दो-दो विधायक विधानसभा पहुंचे, जबकि 2013 में बहुजन समाज पार्टी का केवल एक विधायक चुना गया.
2003 में बसपा को 4.45 फीसदी वोट मिले, जबकि 2008 में पार्टी का वोट शेयर 6.11 प्रतिशत जा पहुंचा. लेकिन 2013 में यह आंकड़ा फिर घट कर 4.27 प्रतिशत रह गया.
हालांकि 2013 में बसपा 2 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही और 9 सीटों पर पार्टी ने तीसरे स्थान पर जगह बनाई.
वरिष्ठ पत्रकार रुद्र अवस्थी यह तो मानते हैं कि बसपा के प्रभाव वाले इलाके में इस ताज़ा गठबंधन के कारण सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी को वोटों का नुकसान हो सकता है. लेकिन अवस्थी इन दोनों पार्टियों के अपने-अपने वोट बैंक को इतना मजबूत नहीं मानते कि उसका असर सरकार बनने-बिगड़ने पर हो.
रुद्र अवस्थी कहते हैं-"पिछले चुनावों के अनुभव बताते हैं कि अधिकांश अवसरों पर जब वोटों का ध्रुवीकरण होता है तो मतदाता या तो भाजपा या फिर कांग्रेस की ओर ही मुड़ जाता है क्योंकि उसे लगता है कि अंततः सरकार तो इनकी ही बनेगी. मुझे नहीं लगता कि इस ट्रेंड में इस साल कोई बदलाव होगा."
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