26.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

आइआइटी आइएसएम की मदद से इसरो करेगा अग्नि प्रभावित क्षेत्र की सटीक पहचान

आसनसोल : विगत तीन दशकों से पश्चिम बंगाल और झारखंड के कोयलांचल में लगी भूमिगत आग सरकार के साथ ही वैज्ञानिकों के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है. सौ वर्षों से अधिक समय से यहां धरती के गर्भ में मौजूद कोयला के भंडार में धधक रही भूमिगत आग की वजह से यह क्षेत्र विस्थापन की […]

आसनसोल : विगत तीन दशकों से पश्चिम बंगाल और झारखंड के कोयलांचल में लगी भूमिगत आग सरकार के साथ ही वैज्ञानिकों के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है. सौ वर्षों से अधिक समय से यहां धरती के गर्भ में मौजूद कोयला के भंडार में धधक रही भूमिगत आग की वजह से यह क्षेत्र विस्थापन की समस्या से जूझ रहा है. सरकार भूमिगत आग प्रभावित क्षेत्र में रह रहे लोगों के पुनर्वास प्लान के लिए हजारों करोड़ रूपये खर्च कर रही है, लेकिन सरकार के पास भी भूमिगत आग से प्रभावित क्षेत्र की सटीक जानकारी नहीं है.
नये क्षेत्रों में भू-धंसान
अब तक सेटेलाइट से लिए गये आंकड़े ही सटीक माने जाते थे. क्योंकि हाल के वर्षों में इस भूमिगत आग की वजह से कुछ नये क्षेत्र में भू-धंसान की घटना हो चुकी है. यह वैसे क्षेत्र थे, जो सेटेलाइट के मौजूदा आंकड़ों में प्रभावित क्षेत्र में नहीं आते हैं. इसको देखते हुए नये सिरे से भूमिगत आग से प्रभावित क्षेत्र की पहचान की जरूरत महसूस की गई.
इसके लिए कोयला मंत्रालय ने इसरो को प्रोजेक्ट सौंपा है. जबकि इसरो की ओर से यह कार्य आइआइटी आइएसएम को सौंपा गया है. आइआइटी में इस प्रोजेक्ट पर माइनिंग इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. धीरज कुमार कार्य कर रहे हैं. इस प्रोजेक्ट को 2019-20 तक पूरा करना है.
सेटेलाइट गणना में है खामी
वर्त्तमान तकनीक से सेटेलाइट अधिक गहराई में मौजूद कोयला भंडारों में लगी आग की गणना नहीं कर सकती है. सेटेलाइट धरती के सतह की तापमान के आधार पर भूमिगत आग की पहचान करता है. इसके लिए सेटेलाइट थर्मोइमेज कैमरा का इस्तेमाल करता है. लेकिन जिन क्षेत्रों में अधिक गहराई में आग थी, वहां सतह पर लगभग सामान्य तापमान होते हैं. ऐसे में सेटेलाइट में लगे ये कैमरे इन क्षेत्रों की पहचान अग्नि प्रभावित क्षेत्र के रूप में नहीं कर पाते हैं.
क्या है गोंडवाना क्षेत्र
गोंडवाना क्षेत्र अपने क्षेत्र का सबसे पुरातन हिस्सा माना जाता है. यहां की चट्टानों की रचना सबसे पुरानी है. इस क्षेत्र को भी दो भागों में बांटा गया है. लोअर और अपर गोंडवाना. अपर गोंडवाना क्षेत्र में गुजरात का कच्छ, मध्य प्रदेश की हीरन नदी का बेसिन व महाराष्ट्र का चिकिल्या क्षेत्र शामिल हैं.
वहीं लोअर गोंडवाना इलाके में पश्चिम बंगाल, झारखंड, ओड़िसा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम के कोलफील्ड इलाके शामिल हैं. अपने देश में कोयले का कुल उत्पादन प्रतिशत का 60 फीसदी हिस्सा पश्चिम बंगाल और झारखंड से होता है. यहां खनन गतिविधियां काफी अधिक होने के कारण भूमिगत कोयला भंडार आसानी से वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन के संपर्क में आकर गर्म होकर जल उठते हैं. ‍

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें